बोले हजारीबाग: खाजा बनाने वालों की हालत खस्ता, संकट में है व्यवसाय
हजारीबाग में हलवाई समाज को बढ़ती महंगाई और ग्राहकों की बदलती पसंद के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। खाजा जैसे पारंपरिक मिठाई की बिक्री में कमी आई है। कच्चे माल के दाम बढ़ने के साथ, कारीगरों...
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हजारीबाग। शादी और त्योहारों में मिठास घोलने वाला हलवाई समाज कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है। बढ़ती महंगाई और बदलते ग्राहकों के व्यवहार के कारण आजीविका पर संकट गहरा गया है। एक ओर कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, वहीं ग्राहक मिठाइयों की कीमत बढ़ाने को तैयार नहीं हैं। हजारीबाग के कोलटैक्स चौक पर खाजा बेचने वाले हलवाई समाज के लोगों को हाल अब खस्ता हो चला है। अब उतनी ब्रिकी नहीं रही है। सिर्फ सिजनल बिक्री होती है। ऐसे में उनके समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं। हजारीबाग। खाजा, एक ऐसी मिठाई जो खास्ते में लाजवाब होती है, खाने वालों लगता है कि कुछ भी नहीं खाया और देखने वालों को लगता है कितना खा लिया। यह प्रसिद्ध पारंपरिक मिठाई है। जो शादी-ब्याह और विशेष आयोजनों का अहम हिस्सा होती है। इस मिठाई का स्वाद लोगों को लुभाता है। वहीं इसकी पारंपरिक बनाने की प्रक्रिया और कारीगरी में भी एक विशेषता है। लेकिन आजकल हजारीबाग के कोलटैक्स चौक में खाजा बनाने वालों की हालत खस्ता हो गई है। यह क्षेत्र, जो पहले खाजा बनाने के कारीगरों का गढ़ हुआ करता था, अब मुश्किल दौर से गुजर रहा है।
खाजा बनाने का यह पारंपरिक व्यवसाय एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है। यदि इसे बचाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह कला और व्यवसाय जल्द ही समाप्त हो सकता है। समय रहते कारीगरों को सहायता और उचित नीति की आवश्यकता है, ताकि यह अनमोल धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके। खाजा बनाने का पारंपरिक तरीका कानू समाज के कारीगरों वर्षों से अपना रहे हैं। यह मिठाई खासतौर पर खस्ता, कुरकुरी और स्वाद में अविस्मरणीय होती है। कोलटैक्स चौक में पहले यहां दस से अधिक दुकानें हुआ करती थीं, लेकिन अब केवल छह दुकानें ही बची हैं।
इससे साफ है कि यह व्यवसाय मुश्किल दौर से गुजर रहा है। खाजा बनाने की विधि में बारीकी और समय की आवश्यकता होती है। कारीगर पहले आटे, घी, चीनी, और पानी से खाजा का बेस तैयार करते हैं। फिर इसे गरम तेल में तलकर परोसते हैं। यह मिठाई विशेष रूप से शादी-ब्याह और धार्मिक आयोजनों में आदान-प्रदान की जाती है, और कई बार तो मेहमानों के बीच इसकी खपत बड़े पैमाने पर होती है। हालांकि, इस पारंपरिक तरीका में कई चुनौतियां भी हैं। कोलटैक्स के खाजा बनाने वाले दुकानदार कहते हैं हमने हमेशा पारंपरिक तरीके से खाजा बनाया है, लेकिन अब ग्राहक कम होते जा रहे हैं। आजकल लोग नए-नए प्रकार के मीठे पसंद करने लगे हैं, और खाजा के प्रति रुचि घट रही है। उन्होंने आगे कहा, हमें अपनी पूंजी को बाहर निकालने में भी कठिनाई हो रही है, क्योंकि पुराने तरीके से खाजा बनाना महंगा पड़ता है। महंगे घी, चीनी और अन्य सामग्री की कीमतों में वृद्धि ने इस व्यवसाय को और भी कठिन बना दिया है। खाजा बनाने वालों का यह व्यवसाय लंबे समय से कानू समाज का पारंपरिक धंधा रहा है। लेकिन अब इसके सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया है।
कारीगरों का कहना है कि पहले जहां खाजा बनाने का काम मुनाफे वाला था, अब वह आर्थिक दबाव में बदल गया है। कच्चे माल की बढ़ती कीमतें और प्रतिस्पर्धा के कारण इन कारीगरों को पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। कानू समाज के कारीगरों ने यह भी बताया कि उनकी दुकानें अब बंद होने की कगार पर हैं। कुछ कारीगर तो अब दूसरे व्यवसायों में भी हाथ आजमा रहे हैं क्योंकि खाजा बनाने से होने वाली आय में कोई खास फर्क नहीं आ रहा है। पहले दिन-प्रतिदिन खाजा बनाने से अच्छा मुनाफा मिलता था, लेकिन अब यह कठिन होता जा रहा है। अब हमें खुद को बनाए रखने के लिए बदलाव की आवश्यकता है।
इस संकट का हल निकालने के लिए खाजा बनाने वाले कारीगरों ने समाज और सरकार से मदद की अपील की है। कारीगरों का मानना है कि यदि उन्हें सही दिशा और समर्थन मिले, तो वे पारंपरिक खाजा बनाने की कला को बचा सकते हैं। अगर सरकार और समाज हमारी मदद करें, तो हम अपनी कला और व्यवसाय को फिर से चलाने की कोशिश करेंगे। हलवाइयों के लिए सबसे बड़ी चुनौती कच्चे माल की बढ़ती कीमतें हैं। रिफाइंड तेल, चीनी, मैदा और कोयले की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। पिछले वर्ष जो रिफाइंड तेल 900 रुपए में मिलता था, वह अब 2200 रुपए प्रति 15 लीटर हो गया है। मैदा की कीमत 50 किलो के लिए 1800 रुपए हो गई है, जबकि चीनी 4600 रुपए प्रति 50 किलो बिक रही है। कोयले की कीमत भी 1200 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 1800 रुपए तक पहुंच गई है। पहले 1200-1300 रुपए में 50 किलो मैदा खरीदते थे, लेकिन अब यह 1800 रुपए हो गया है। इसी तरह रिफाइंड और चीनी के दाम भी बढ़ गए हैं।
पारंपरिक मिठाई परंपरा और संस्कृति का है अहम हिस्सा
पारंपरिक मिठाई बनाने की कला और तकनीक की कमी होना एक बड़ी समस्या है। यह कला और तकनीक न केवल हमारी संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे समाज की पहचान भी है। पारंपरिक मिठाई किसी भी विवाह में किसी भी शुभकामनाएं के लिए अनिवार्य माना जाता था। यह हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। यह हमारे समाज की पहचान है। आज के समय में इसकी जगह कई अन्य मिठाइयां ने ले लिया है, जो हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा नहीं हैं। इससे हमारी पारंपरिक मिठाई बनाने की कला और तकनीक को खतरा हो रहा है। सरकार और समाज को इस समस्या का समाधान करने के लिए कदम उठाने चाहिए, जैसे कि पारंपरिक मिठाई बनाने की कला और तकनीक को बढ़ावा देना, नए लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करना और पारंपरिक मिठाई के महत्व को बढ़ावा देना। बाल बच्चों को पढ़ाने से लेकर बढ़ती महंगाई के बीच समन्यव बिठाने में इस समाज के लोगों का हाल खस्ता है। अभी भी पारंपरिक मिठाई बनाने के लिए कोयला एक आवश्यक तत्व है क्योंकि कोयले में धीमी गति से मिठाई का निर्माण होता है दम में वृद्धि से काफी परेशानी होती है। इससे कमाई घट गई है।
घटती मांग से बढ़ी चिंता
पहले शादी-ब्याह और त्योहारों में लड्डू, खाजा, टिकरी और खुरमा की मांग अधिक होती थी, लेकिन अब रसगुल्ला, गुलाब जामुन और चॉकलेट बर्फी की मांग बढ़ रही है। इससे पारंपरिक मिठाई बनाने वाले हलवाइयों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। मिठाई बनाने के लिए जितनी भी सामग्री लगती है सभी महंगे हो गए हैं पर डैम में वृद्धि नहीं हो पाई। पर इसकी भी कीमतों में काफी वृद्धि हुई है उसे अनुसार हलवाइयों की कमाई नहीं होती।
इनकी भी सुनिए
खाजा व्यापारियों को फिर से नए सिरे से अपने व्यापार को आगे बढ़ाने में मेहनत करनी होगी। पुराने खाजा की खुशबू को लौटाने के लिए अधिक से अधिक गुणवत्ता बरकरार रखनी होगी। पहले पारंपरिक मिठाई किसी भी वैवाहिक कार्यक्रम के लिए शुभ माना जाता था लेकिन आज के समय में स्थिति कुछ और है। लगातार कच्चे माल की बढ़ती कीमत से मिठाई बनाने की लागत में वृद्धि होती जा रही है -शंभूनाथ अग्रवाल अध्यक्ष, फेडरेशन का चैंबर एंड कॉमर्स, हजारीबाग
खाजा व्यापारियों की समस्या बढ़ रही है चेंबर के संज्ञान में यह बात है। यह व्यापार वास्तव में सीजनल व्यापार है फिर भी हजारीबाग में सालों भर खाजा का व्यापार किया जाना काबिले तारीफ है। व्यापारियों की समस्या का समाधान निकालने के लिए बैंक और उद्योग विभाग को इसपर ध्यान देने की अपील करता हूं। लोग पारंपरिक मिठाई की जगह ब्रांडिंग मिठाई को दे रहे हैं। जो एक समस्या का विषय है।
-विजय केसरी, सचिव, चेंबर ऑफ कॉमर्स, हजारीबाग
कोयले की बढ़ती कीमतें बहुत ही परेशानी का कारण है। कोयले की कीमतें बढ़ने से हलवाइयों की उत्पादन लागत बढ़ गई है। इससे उनकी कमाई घट गई है और वे मिठाइयों के दाम नहीं बढ़ा पा रहे हैं। पहले कोयला सस्ता था उसी अनुसार मिठाई जैसे की खाजा, लड्डू के दाम भी थे। -प्रदीप कुमार
मिठाइयों के दाम नहीं बढ़ाने की समस्या एक घड़ी समस्या है। वर्तमान समय में पारंपरिक मिठाई जैसे लड्डू खाजा इत्यादि के दाम के अलावा सभी मिठाइयों के दामों में वृद्धि हुई है।हलवाइयों को पारंपरिक मिठाइयों के दाम नहीं बढ़ाने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। -मुनेश्वर प्रजापति
रसोई गैस की महंगाई भी काफी परेशानी कारण है। रसोई गैस की कीमतें बढ़ने से हलवाइयों को अपने व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। इससे उत्पादन लागत बढ़ गई है और वे मिठाइयों के दाम नहीं बढ़ा पा रहे हैं। कोयले के अलावा दूसरा सबसे बड़ा विकल्प रसोई गैस है। -गुड्डू कुमार
कच्चे माल जैसे की चीनी तेल बेसन मैदा इत्यादि के दाम पिछले कुछ दिनों में काफी बढ़ गए हैं। इससे व्यवसाइयों को पारंपरिक मिठाई बनाने में लागत बढ़ गई है और आमदनी अभी उतनी ही है। समय के साथ कीमत में वृद्धि अनिवार्य है नहीं तो मिठाई का व्यापार मुश्किलों में पड़ जाएगा। -शैलेश कुमार
ब्रांडेड मिठाइयों की बढ़ती मांग से हलवाइयों को अपने व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। व्यवसाय में कमाई घट गई है और अपने व्यवसाय को चलाने में मुश्किल का सामना कर रहे हैं। वर्तमान समय में लोग अपनी पारंपरिक मिठाइयों से दूर होते जा रहे हैं। -जितेंद्र कुमार राणा
परंपरागत मिठाइयों की घटती मांग से इस क्षेत्र में काम कर रहे हलवाइयों को काफी परेशानी हो रही है। इससे उनकी कमाई घट गई है और वे अपने व्यवसाय को चलाने में मुश्किल का सामना कर रहे हैं। अब धिरे-धिरे कई लोग पारंपरिक मिठाई बनाने के व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं। -गोपाल प्रसाद
कोयले की खराब गुणवत्ता से हलवाइयों को अपने व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कोयले की कीमत बढ़ गई है ऐसे में कई कोयल व्यापारी खराब गुणवत्ता वाले कोयले महंगे दामों में बेच देते हैं जिससे हलवाइयों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। -नरेश राम
बिजली की समस्या से हलवाइयों को व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। व्यवसाय और दुकान को चलाने के लिए बिजली का होना अनिवार्य है बिजली सही तरीके से नहीं आने से मुश्किलें होती है। त्योहारों में मिठाई की मांग बढ़ने से रात में उसकी पूर्ति के लिए मिठाई बनाना पड़ता है। -लोचन यादव
पानी की समस्या से हलवाइयों को अपने व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। पारंपरिक मिठाइयों को बनाने में पानी की समस्या आती है। पानी की कमी होने से मिठाई की गुणवत्ता खराब होती है जिससे मिठाई की बिक्री पर असर पड़ता है। इससे आर्थिक क्षति होती है। -विनोद प्रसाद गुप्ता
श्रमिकों की कमी से हलवाइयों को अपने व्यवसाय में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कोई भी लोग इस व्यवसाय से नहीं जुड़ना चाह रहे क्योंकि इसमें मुनाफा कम होता जा रहा है। जो लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं वह भी दोनों के दिन पारंपरिक मिठाई बनाने से दूर होते जा रहे हैं। -मुकेश कुमार
मिठाई बनाने वाले हलवाई पीढ़ियों से इस पारंपरिक कार्य में लगे हुए हैं। लेकिन अब वे अपने इस पारंपरिक कार्य से दूर होते जा रहे हैं और रोजगार की तलाश में शहर का रुख कर रहे हैं। कारण पारंपरिक मिठाइयों की मांग कम होना। नए पीढ़ी में पारंपरिक कार्यों के प्रति रुचि की कमी है। -नीलम देवी
सरकार की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को सहयोग राशि और प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है, लेकिन मिठाई बनाने वाले हलवाइयों को इस क्षेत्र में नए लोगों को प्रशिक्षण और प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है।
पारंपरिक मिठाई बनाने की कला और तकनीक का ह्रास हो रहा है। -ललिता देवी
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