बसंत पंचमी पर बाबा वैद्यनाथ का तिलकोत्सव
देवघर में, बसंत पंचमी के अवसर पर बाबा वैद्यनाथ का तिलकोत्सव वैदिक रीति-रिवाज से मनाया गया। लाखों श्रद्धालुओं ने बाबा को तिलक अर्पित किया और गुलाल खेलकर खुशियाँ मनाईं। यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही...

देवघर, राकेश कर्म्हे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा वैद्यनाथ का तिलकोत्सव बसंत पंचमी के अवसर पर सोमवार को परंपरानुसार वैदिक रीति-रिवाज के साथ किया गया। बाबा वैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन की ओर से सरदार पंडा गुलाब नंद ओझा की अगुवायी में बाबा वैद्यनाथ को तिलक चढ़ाया गया। बाबा मंदिर प्रांगण स्थित भगवान लक्ष्मी-नारायण मंदिर के चबूतरे पर परंपरानुसार संध्या बेला में तिलक पूजा की गई।
परंपरानुसार आम्र मंजर, धान की पहली बाली, घी आदि के साथ तिलकोत्सव किया गया। उसके बाद बाबा वैद्यनाथ की संध्याकालीन शृंगार पूजा में बाबा वैद्यनाथ को तिलक स्वरूप गुलाल अर्पण किया गया। बसंत पंचमी पर तिलकोत्सव के साथ बाबा वैद्यनाथ की दैनिक पूजा-अर्चना में गुलाल अर्पण की भी शुरुआत हो गयी। फाल्गुन पूर्णिमा तक बाबा वैद्यनाथ को गुलाल अर्पण किया जाएगा। इसके अलावा मिथिलांचल से बाबानगरी पहुंचे करीब सवा लाख से अधिक तिलकहरुओं ने बाबा वैद्यनाथ का तिलकोत्सव किया। तिलकोत्सव को लेकर पिछले चार दिन से बाबानगरी में तिलकहरुओं का जुटान है। सोमवार को भी कांवर लिए तिलकहरुओं की भीड़ बाबानगरी में जुटी। बसंत पंचमी के अवसर पर सोमवार को मिथिलांचल से आनेवाले सवा लाख तिलकहरुओं ने बाबा वैद्यनाथ की पूजा-अर्चना के साथ परंपरानुसार बाबा को तिलक अर्पण किया। वहीं तिलकोत्सव के बाद बाबा वैद्यनाथ मंदिर प्रांगण सहित आवासन स्थल में सभी तिलकहरुओं ने गुलाल खेलने के साथ लड्डू बांटकर खुशी मनायी।
तीन प्राचीन पंजीकृत मेलों में एक है बसंत पंचमी मेला: बाबा वैद्यनाथ मंदिर से तीन प्राचीन पंजीकृत मेले प्रमुख हैं। यह मेले लंबे समय से बाबानगरी में आयोजित हो रहे हैं। बाबानगरी के प्राचीन पंजीकृत मेलों में मासव्यापी भादो मेला, तीन दिवसीय महाशिवरात्रि मेला और बसंत पंचमी मेला। बसंत पंचमी मेले की ख्याति विशेष तौर पर बिहार के मिथिलांचल से जुड़ी है। बसंत पंचमी मेले में मिथिलांचल के श्रद्धालु बाबा दरबार विशेष कांवर लेकर पहुंचते हैं। मिथिलांचल के दरभंगा से लेकर सीतामढ़ी तक से श्रद्धालु जिन्हें तिलकहरु कहा जाता है, यहां पहुंचे हैं।
त्रेता युग से चली आ रही है परंपरा: बसंत पंचमी पर बाबा वैद्यनाथ का तिलकोत्सव प्राचीन परंपरा है। बसंत पंचमी पर मिथिलावासी बाबा वैद्यनाथ को उत्तरवाहिनी गंगाघाट से कांवर में लाए गए गंगाजल अर्पण के साथ अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित करते हैं। तिलकहरुए बाबा वैद्यनाथ को गुलाल अर्पित करते हैं, जिसे तिलक अर्पण करना कहा जाता है। इसके अलावा तिलकहरु बाबा वैद्यनाथ को बूंदी के लड्डू भी अर्पित करते हैं। उसके बाद एक-दूसरे को गुलाल लगाकर तिलकोत्सव की खुशियां मनाते हैं। मान्यता है कि तिलकोत्सव के साथ ही बाबानगरी में फाग की शुरुआत हो जाती है। मान्यता है कि यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। तिलकोत्सव के लिए पहले ऋषि-मुनी भी बसंत पंचमी पर बाबानगरी आते थे। वहीं मिथिलांचलवासी भी सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
खुद को वधू पक्ष मानते हैं मिथिला के लोग: मिथिलांचल हिमालय की तराई में बसा है। वहां के लोगों का मानना है कि वह लोग हिम राजा की प्रजा हैं और माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं। मिथिलांचलवासी अपने को वधू पक्ष मानते हैं और बसंत पंचमी के दिन बाबा को तिलक चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बारात लेकर आने का न्योता बाबा वैद्यनाथ को देते हैं।
पुरोहित दुलर्भ मिश्र की मानें तो बाबा वैद्यनाथ को तिलक अर्पण करने की परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। मिथिलांचल के लोग बसंत पंचमी के दिन वधु पक्ष की तरह अपने साथ लाई गयी धान की बाली, घी, बेसन के लड्डू के साथ बाबा को तिलक अर्पण करते हैं। बसंत पंचमी के दिन तिलकोत्सव के लिए थाल सजाकर बाबा वैद्यनाथ का जलार्पण करने के बाद भैरव पूजा करते हैं। उसके बाद तिलकोत्सव होता है। बाबा वैद्यनाथ के साथ भगवान भैरवनाथ की पूजा कर गुलाल खेलकर खुशी मनाते हुए सभी वापस मिथिला लौट जाते हैं।
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