कहीं MP की तरह न हो जाए 'खेला', हिमाचल सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने होंगी कई चुनौतियां
Himachal CM Sukhwinder Singh Sukhu: हिमाचल के नए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने पार्टी के सभी विधायकों को एकजुट रखने की सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है। वहीं, उन्हें वादों को भी पूरा करना होगा।
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Sukhwinder Singh Sukhu News: हिमाचल प्रदेश को सुखविंदर सिंह सुक्खू के रूप में नया मुख्यमंत्री मिल गया है। मुकेश अग्निहोत्री को राज्य का डिप्टी सीएम बनाया गया है। आठ दिसंबर को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस को 68 सीटों में से 40 सीटों पर जीत मिली थी, जिसके बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू को अगले मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। हालांकि, सीएम पद की रेस में कइयों के नाम आगे चल रहे थे। प्रतिभा सिंह को पिछाड़ते हुए सुक्खू मुख्यमंत्री चुने गए। भले ही रविवार को शपथ लेने के साथ ही सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हों, लेकिन आने वाले समय में उनकी चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। सरकार से लेकर संगठन तक में उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। सुक्खू के लिए पहाड़ी राज्य को चलाना आने वाले समय में इतना आसान नहीं होने वाला है। पिछले कुछ सालों में जिस तरह मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, सुक्खू के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वे अपने सभी विधायकों को पांच सालों तक एकजुट रख सकें।
वादों को पूरा करने की होगी पहली चुनौती
हिमाचल प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री बने सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने एक चुनौती यह भी होगी कि वे कांग्रेस के किए गए वादों को पूरा कर सकें। अपने घोषणा पत्र को कांग्रेस ने प्रतिज्ञा पत्र बताते हुए 300 यूनिट फ्री बिजली, पुरानी पेंशन बहाली समेत दस गारंटियां दी थीं। युवाओं को पांच लाख रोजगार, स्टार्टअप के लिए करोड़ों रुपये का फंड, हर गांव में मुफ्त इलाज समेत कई वादे किए गए थे। इनमें से ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली करना बड़ा वादा माना गया था। अब जब सुक्खू मुख्यमंत्री बन गए हैं, तो उन पर इन वादों को पूरा करने की भी चुनौती होगी। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और खुद सुक्खू ने भी कहा है कि हिमाचल सरकार किए गए वादों को पूरा करेगी। मुख्यमंत्री बनने के बाद ओपीएस पर बोलते हुए सुक्खू ने कहा कि हम सभी गारंटियों को लागू करेंगे। पहली ही कैबिनेट बैठक में ओल्ड पेंशन स्कीम को भी लागू करने का फैसला लिया जाएगा।
विधायकों को रखना होगा एकजुट
छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं के बीच टकराव देखने को मिल चुका है। राजस्थान में जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने हैं तो वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद चलता रहता है। इससे पहले, मध्य प्रदेश की सरकार कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच उपजे विवाद को लेकर गिर चुकी है। सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। अब हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने सभी 40 विधायकों को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती होगी। उल्लेखनीय है कि प्रतिभा सिंह भी खुद को मुख्यमंत्री की रेस में होने का संकेत देती रही थीं, लेकिन आखिरकार न तो उन्हें सीएम बनाया गया और न ही उनके बेटे विक्रमादित्य को डिप्टी सीएम। कैबिनेट में जरूर कोई बड़ा पद दिया जा सकता है। यदि आने वाले सालों में प्रतिभा सिंह के गुट के कुछ विधायक विवाद पैदा करते हैं तो सुक्खू सरकार के लिए परेशानी का सबब हो सकता है। सभी विधायकों की सुनकर पांच सालों तक कांग्रेस सरकार को चलाना सुखविंदर सिंह के लिए किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव का चैलेंज
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में हिमाचल प्रदेश की सीटें भी अहम भूमिका निभा सकती हैं। कांग्रेस को यदि आम चुनाव में ज्यादा सीटें जीतनी हैं, तो जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां पर अच्छा प्रदर्शन करना ही होगा। इस वजह से हिमाचल की कांग्रेस सरकार को कुछ ऐसे फैसले लेने होंगे, जिससे जनता आम चुनाव में अपना आशीर्वाद दे। हिमाचल में लोकसभा की सिर्फ चार सीटें ही हैं, जिसमें से तीन बीजेपी और एक कांग्रेस के पास है। सुक्खू के सामने इन सीटों को बढ़ाने का अच्छा मौका होगा। यदि राज्य में कांग्रेस सरकार और संगठन अपनी-अपनी जगह अच्छी तरह से फैसला लेते हैं तो लोकसभा सीटें बढ़ सकती हैं। यह हिमाचल की सुक्खू सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होने वाला है।
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