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UGC : विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर भर्ती के क्या हैं नए नियम, कौन से राज्य क्यों कर रहे विरोध, जानें बदलाव

  • केरल, कर्नाटक व तमिलनाडु राज्य सरकारों का कहना है कि ये नियम संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं और राज्यों के अधिकारों को कमजोर करते है

Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तानWed, 15 Jan 2025 10:51 PM
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UGC : विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर भर्ती के क्या हैं नए नियम, कौन से राज्य क्यों कर रहे विरोध, जानें बदलाव

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से हाल ही में जारी विनियम 2025 के मसौदे पर कई राज्य कड़ा विरोध दर्ज करा रहे हैं। यूजीसी ने कुछ दिनों पहले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति तथा पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यताएं तथा उच्च शिक्षा विनियमों में मानकों के रखरखाव के उपायों के लिए अपने मसौदे को सार्वजनिक कर राय मांगी थी। मसौदे में विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति नियमों को लेकर कर्नाटक व तमिलनाडु समेत कई राज्य खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि ये नियम संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं और राज्यों के अधिकारों को कमजोर करते हैं। इन राज्यों का कहना है कि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के चयन में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है। ये राज्य के राज्यपालों को (जो राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर होते हैं) वाइस चांसलर की नियुक्ति में ज्यादा अधिकार देते दे सकते हैं।

नए यूजीसी नियम

अभी तक वाइस चांसलर के पद पर नियुक्त होने के लिए जो अहर्ताएं हैं, उनमें उम्मीदवार को एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् होना जरूरी है जिनके पास प्रोफेसर के रूप में या रिसर्च लीडरशिप की भूमिका में कम से कम 10 साल का अनुभव होना चाहिए। लेकिन नए मसौदे में वाइस चांसलर के पद के लिए प्रोफेसर होना अनिवार्य नहीं है। यूजीसी के ड्राफ्ट के मुताबिक वैसे लोग भी अब वीसी बन सकते हैं जिनके पास इंडस्ट्री, लोक प्रशासन या सरकारी क्षेत्र में कम से कम 10 साल काम करने का अनुभव हो और जो शिक्षा या शोध के क्षेत्र में अहम योगदान देने का ट्रैक रिकॉर्ड रखते हों।

- मसौदे के नियम कहते हैं कि कुलपति/विजिटर तीन विशेषज्ञों वाली सर्च कम सेलेक्शन कमिटी का गठन करेंगे। 2018 के नियमों में यह साफ नहीं किया गया था कि समिति का गठन कौन करेगा।

- 2018 के नियमों के उलट नए नियम समिति में कौन कौन होगा, इसे स्पष्ट करते हैं - विजिटर/कुलपति, यूजीसी अध्यक्ष और विश्वविद्यालय के शीर्ष निकाय (सीनेट/सिंडिकेट/कार्यकारी परिषद) द्वारा नामित प्रत्येक सदस्य। इससे केंद्र द्वारा चयनित लोगों को समिति में बहुमत मिलता है।

यूजीसी की ओर से 2018 में अधिसूचित गाइडलाइंस में कहा गया है कि उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठित व्यक्तियों वाली एक सर्च कम सेलेक्शन कमिटी पब्लिक नोटिफिकेशन, नोमिनेशन, टैलेंट सर्च प्रक्रिया या इन प्रक्रियाओं को मिलाकर 3-5 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करेगी। सेंट्रल यूनिवर्सिटी में चांसलर (कुलाधिपति) या विजिटर सिफारिश किए गए नामों में से किसी एक को वीसी नियुक्त करेंगे।

राज्य और निजी विश्वविद्यालयों के मामले में सर्च सेलेक्शन कमिटी के एक सदस्य को यूजीसी अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है। राज्य विश्वविद्यालयों के लिए कमिटी के बाकी सदस्यों का गठन राज्य के कानून के अनुसार किया जाता है।

टकराव

पिछले कई वर्षों से कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्यों में गैर भाजपा सरकारों और राज्यपालों में टकराव की स्थिति रही है। राज्यपाल केंद्र द्वारा मनोनीत होते हैं।

केरल: यह टकराव 2021 में शुरू हुआ जब तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दावा किया कि एलडीएफ सरकार ने गोपीनाथ रवींद्रन को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करके उन्हें अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध काम करने के लिए मजबूर किया था।

2023 में विधानसभा ने राज्यपाल की जगह राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में प्रख्यात शिक्षाविदों को नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया। इस विधेयक को अभी राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलनी बाकी है।

कर्नाटक: दिसंबर 2024 में विधानसभा ने राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को कर्नाटक राज्य ग्रामीण विकास और पंचायती राज विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया था। इस विधेयक को अभी राज्यपाल की स्वीकृति मिलनी बाकी है। नवंबर में कर्नाटक मंत्रिमंडल ने अन्य राज्य विश्वविद्यालयों के लिए भी ऐसा ही करने का फैसला किया था। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा था कि राज्य सरकार के अधीन 42 विश्वविद्यालयों के लिए महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधार लाने के लिए कर्नाटक राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करने के लिए एक मसौदा विधेयक पर काम चल रहा है।

महाराष्ट्र: 2021 में उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने विधानमंडल ने एक विधेयक पारित किया जिसने राज्यपाल की शक्ति को केवल राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित कुलपति उम्मीदवारों को मंजूरी देने तक सीमित कर दिया। राज्यपाल की बजाय राज्य के उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री को अधिक अधिकार दिए। यह विधेयक राज्यपाल के पास लंबित रहा। 2022 में एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद नई सरकार ने विधेयक वापस ले लिया और मूल प्रक्रिया, जिसमें कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल का अंतिम निर्णय होता था, को बहाल कर दिया गया।

तमिलनाडु: 2022 में डीएमके के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य सरकार को राज्य विश्वविद्यालयों के लिए कुलपतियों को चुनने की अनुमति देने के लिए दो विधेयक पारित किए लेकिन इन विधेयकों को राज्यपाल द्वारा मंजूरी नहीं दी गई। पिछले साल राज्यपाल आर एन रवि ने सरकार से कई राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के लिए सर्च कमिटी के गठन की अधिसूचनाओं को वापस लेने के लिए कहा था।

केरल ने किया विरोध

केरल के सीएम विजयन ने 8 जनवरी को एक बयान में नए मसौदा नियमों की आलोचना करते हुए कहा कि यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों के अधिकारों को पूरी तरह से समाप्त करने के एजेंडे का हिस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह यूजीसी और केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई व्यावसायीकरण, सांप्रदायिकरण और केंद्रीकरण की नीतियों का ही विस्तार है। उन्होंने कहा कि कुलपतियों के चयन पर कुलाधिपतियों को अधिक नियंत्रण देने का प्रस्ताव संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है और संविधान के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन करता है।

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कांग्रेस

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया था कि यूजीसी मसौदा विनियम, 2025, राज्य के राज्यपालों को कुलपति नियुक्तियों पर व्यापक नियंत्रण देता है और गैर-शैक्षणिक लोगों को इन पदों पर रहने की अनुमति देता है। उन्होंने इसे “संघवाद और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला” करार दिया। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने उच्च शिक्षण संस्थानों में सहायक प्रोफेसर और कुलपतियों की भर्ती में बड़े बदलाव करने वाले मसौदे को संस्थानों की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला कदम करार देते हुए कहा कि सरकार को इसे वापस लेना चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि इस कदम का एक मकसद शिक्षा जगत में प्रभावशाली पदों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लोगों को बिठाने के लिए राह आसान करना है। रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में यूजीसी (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय) नियमन, 2025 का मसौदा जारी किया है। इममें कई नियम ख़तरनाक उद्देश्य के साथ लाए गए हैं।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘अनुबंध आधारित प्रोफेसर के पदों को 10 प्रतिशत की सीमा को हटाकर उच्च शिक्षा में बड़े पैमाने पर संविदाकरण के लिए द्वार खोला गया है। यह हमारे संस्थानों की गुणवत्ता और शिक्षण स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला है। रमेश के मुताबिक, राज्यों के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार की सभी शक्तियों को छीन लिया गया है। उन्होंने कहा कि गैर-शैक्षणिक व्यक्ति को कुलपति बनाने की छूट देने के लिए भी नियमों में संशोधन किए गए हैं ।

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि यह एक ऐसा कदम है जिसका उद्देश्य पूरी तरह से शिक्षा जगत में प्रभावशाली पदों पर आरएसएस के लोगों को बिठाने के लिए राह आसान करना है।

कुलपतियों की नियुक्ति पर यूजीसी के मसौदा विनियम संघवाद पर हमला : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा विनियम 2025, राज्यपालों को कुलपति की नियुक्तियों के सिलसिले में व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं और गैर-शिक्षाविदों को इन पदों पर नियुक्त करने की अनुमति देते हैं, जो संघवाद और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला है।

तमिलनाडु विधानसभा ने नए यूजीसी विनयम 2025 को वापस लेने की मांग की

तमिलनाडु विधानसभा ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नए विनियम 2025 को तुरंत वापस लेने का आग्रह किया। विधानसभा ने यूजीसी विनियम 2025 को संविधान और संघवाद के मूल सिद्धांत के खिलाफ बताया। भाजपा की सहयोगी पीएमके समेत सभी राजनीतिक दलों के समर्थन से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे तमिलनाडु की उच्च शिक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंच सकता है। विपक्षी एआईएडीएमके ने भी प्रस्ताव पर द्रमुक और उसके सहयोगियों का समर्थन किया।

यूजीसी के नियुक्ति नियमों के बारे में झूठ फैला रही है कांग्रेस: प्रधान

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को कांग्रेस पर हमला करते हुए उस पर यूजीसी द्वारा जारी भर्ती मानदंडों के मसौदे के बारे में “झूठ फैलाने” का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्यपालों द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति की प्रथा आजादी के पहले से ही चली आ रही है।

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