अगर डूबेगा कोई बैंक तो खाते में ₹5 लाख से ज्यादा की रकम रहेगी सुरक्षित! सरकार कर रही बड़ी तैयारी
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, इश्यू डिपॉजिट इंश्योरेंस सीमा बढ़ाने का है... इसपर सक्रियता से विचार किया जा रहा है। जैसे ही सरकार मंजूरी देगी, हम इसकी अधिसूचना जारी कर देंगे।
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फाइनेंशियल सर्विस डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी एम. नागराजू ने सोमवार को कहा कि सरकार डिपॉजिट इंश्योरेंस की लिमिट को मौजूदा के पांच लाख रुपये से बढ़ाने पर विचार कर रही है। न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक का कथित घोटाला सामने आने के कुछ दिन बाद नागराजू ने कहा कि इस तरह के प्रस्ताव पर काम जारी है।
क्या है डिटेल
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘‘ इश्यू डिपॉजिट इंश्योरेंस सीमा बढ़ाने का है... इसपर सक्रियता से विचार किया जा रहा है। जैसे ही सरकार मंजूरी देगी, हम इसकी अधिसूचना जारी कर देंगे।’’ हालांकि, नागराजू ने न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक के संकट पर कुछ भी टिप्प्णी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस मामले को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) देख रहा है।
क्या होता है डिपॉजिट इंश्योरेंस क्लेम
बता दें कि डिपॉजिट इंश्योरेंस क्लेम तब शुरू होता है जब कोई बैंक डूब जाता है। पिछले कुछ सालों में निक्षेप बीमा व प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) ऐसे दावों का भुगतान करता रहा है। यह निकाय अपने द्वारा प्रदान किए जाने वाले ‘कवर’ के लिए बैंकों से प्रीमियम एकत्र करता है और अधिकतर दावे सहकारी ऋणदाताओं के मामले में किए गए हैं। गौरतलब है कि कि पीएमसी बैंक घोटाले के बाद डीआईसीजीसी बीमा सीमा 2020 में एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दी गई थी।
आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा कि सहकारी बैंकिंग क्षेत्र आरबीआई की निगरानी में अच्छी तरह विनियमित है। उन्होंने क्षेत्र की समग्र स्थिति को मजबूत करार दिया। उन्होंने कहा कि किसी एक इकाई में संकट आने से किसी को भी पूरे क्षेत्र पर संदेह नहीं करना चाहिए। दोषी इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करना नियामक का काम है। खबरों के अनुसार, न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक के 1.3 लाख जमाकर्ताओं में से 90 प्रतिशत की पूरी रकम डीआईसीजीसी के अंतर्गत आएगी।
बैंक में घोटाले का पता भौतिक जांच में चला, जिसमें सामने आया कि बही-खाते में दर्शाई गई 122 करोड़ रुपये की नकदी गायब है। जांच में पता चला कि बैंक के महाप्रबंधक-वित्त हितेश मेहता ने कथित तौर पर गबन की गई राशि का एक बड़ा हिस्सा एक स्थानीय बिल्डर को दे दिया है।
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