कोरोना डायरी 9 : मानवता और मजहब का फर्क
30 मार्च 2020, रात 2.30 बजे। आजकल दिन बंजर और रातें बाँझ हो गयी हैं।सुबह उठता हूं। कुछ कसरत करता हूं। नीचे गेट पर जाकर अखबार चुनता हूं। चुनना इसलिए पड़ता है क्योंकि सोसायटी वालों ने बाहर से...

30 मार्च 2020, रात 2.30 बजे।
आजकल दिन बंजर और रातें बाँझ हो गयी हैं।सुबह उठता हूं। कुछ कसरत करता हूं। नीचे गेट पर जाकर अखबार चुनता हूं। चुनना इसलिए पड़ता है क्योंकि सोसायटी वालों ने बाहर से आने वालों पर बंदिश लगा दी है। हॉकर सुबह ही सारे अखबार अलग-अलग एक जगह बिछा देते हैं, लोग जो अखबार पढ़ते हैं, उन्हें चुनकर ले जाते हैं। थोड़ी बेईमानी होती है। कोई एक या दो अखबार अतिरिक्त उठा लेता है पर किसी को परवाह नहीं। बहुत से ऐसे हैं, जो अपनी प्रतियां उठाने की जहमत नहीं फरमाते।
विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम चिकित्सक चीख-चीख कर कह चुके हैं कि अखबार से वायरस फैलने का कोई खतरा नहीं पर डर और आशंका के इन धुआं-धुआं दिनों में कुछ भी असंभव नहीं । अख़बार के लगभग सभी साथी घर से काम करने लगे हैं। इसलिए 12 बजे तक कई ऑडियो और वीडियो कान्फ्रेंसिंग करनी पड़ती हैं। इसके बाद तो वक्त काटे नहीं कटता। कोई और काम आता है, तो उसे भी कुछ मिनट की फोन कॉल में ही निपटा लेते हैं। एक छोटे से वक्फे में लगता है कि जड़ता की काई छंटी पर वह फिर से समय की सतह पर काबिज हो जाती है।
घर में सभी लोग काम-काज वाले हैं। बरसों से हमारी दिनचर्या तय रही है। खाना-पीना, उठना-बैठना, सब कुछ नियत , घड़ी के काँटों से बंधा हुआ ।इस लॉकडाउन ने एक झटके में उस सारी व्यवस्था को तितर-बितर कर दिया। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है, सबके अंदर अनिद्रा और उचटापन पा रहा हूं। कल तक जो लोग छुट्टी के लिए मचलते थे, आज उससे उकता रहे हैं ।समूची दुनिया का यही हाल है । हम किस हश्र की ओर बढ़ रहे हैं ? देखने में सबकुछ पूर्ववत है पर जैसे रस छिन गया है ।।समाज है पर हम सामाजिक नहीं। काम हैं पर कार्यालय नहीं। गाड़ियां हैं पर उनकी सवारी नहीं। फोन पर भी एक-दूसरे की खोज खबर लेने वाले थक गए हैं। किसानों के बीच कभी एक कहावत सुनी थी- ‘संदेशों खेती नहीं होती’। हैं न बंजर दिन !
अभी-अभी जब नींद खुली, तो न्यूयॉर्क के एक डॉक्टर का चेहरा याद आ रहा था। टेलीविजन पर वह कह रही थी कि आज का दिन निकृष्ट था, कल का निकृष्टतम होगा। पूंजी के दम पर खरीदी गई सेहत और सुविधाओं के तिलिस्म को #Covid_19 ने तोड़कर रख दिया है। इटली के एक चर्च का फोटो भी रह-रहकर ज़ेहन में जल - बुझ रहा है। चर्च का विस्तृत हॉल ताबूतों से भरा पड़ा है। पादरी उन पर पवित्र जल छिड़क रहा है, अकेला। उसका चेहरा स्याह पड़ा हुआ है। पद-प्रतिष्ठा से उसने जो कुछ उपार्जित किया था, उसे मौत के इस तांडव ने लील लिया है। ये आव -ताव के नहीं बेचारगी के दिन हैं ।
चर्च के बाहर एक पत्रकार को वह बताता है कि इन शवों को लेने रिश्तेदार आ नहीं पाए। जिन लोगों को जीवन भर हम अपना मानते हैं, उन्हें एक अदृश्य वायरस ने पराया कर दिया है। अमेरिका से भी एक अस्पताल की नर्स कह रही थी कि हमारा मुर्दाघर ‘फुल’ है। अगर अब कोई मरा तो हम उसे कहां रखेंगे? यह बदहाली सिर्फ पश्चिम को नहीं मार रही । उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दो दिन पहले ऐसा ही हादसा हुआ। यहाँ के एक व्यक्ति को कैंसर ने लील लिया। परिजन छूत के डर अथवा लाक्डाउन की वजह से उसके पास तक न फटक सके । देह दुर्गति की ओर बढ़ चली थी। ऐसे में पड़ोस के मुस्लिम युवक इकट्ठा हो आए। उन्होंने हिन्दू रीति-नीति से उसका अंतिम संस्कार किया। गोल टोपी धारियों के मुंह से राम नाम सत्य है, का उच्चारण उन लोगों के मुंह पर एक तमाचा है, जो गंगा और यमुना के जल को सड़े हुए दूध की भांति फटा हुआ देखना चाहते हैं। इंसानियत की अकेली खूबी यही है कि वह भीषणतम आपदा में भी अपने लिए कोई रास्ता खोज लेती है। बरेली की तमन्ना अली ने मददगार पुलिस अफसर के नाम पर अपने बेटे का नाम रणविजय खान रखा तो बुलंदशहर में मुस्लिमों ने बोला- राम नाम सत्य है।
मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, इस उक्ति को धर्मावलम्बी धारण करते हैं पर धर्म प्रचारक बिसरा देते हैं। दिल्ली के निजामुद्दीन और झज्झर में आज तबलीगी जमात के लगभग दो सौ लोगों को पुलिस ने उनके आश्रय स्थलों से निकाला । इनमें से 24 को कोरोना पॉजिटिव पाया गया । जो इतने गैर जिम्मेदार हैं, उन्हें भला धार्मिक कैसे माना जा सकता है? रांची में भी आज इसी जमात के 24 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार करके जांच की तो पता चला कि इनमें से 17 विदेशी मूल के हैं ।उन्होंने प्रशासन को अपने यहां आने की सूचना तक नहीं दी थी। इन सभी का सैंपल लेकर जांच के लिए भेज दिया गया है और उन्हें पाबंद कर दिया गया है। एक हफ्ते में यहां इस तरह की दूसरी घटना है।
शाम 7 बजे।
देर रात नींद खुली तो अब तक जगा हुआ हूं। आज का दिन भी कल की तरह बोझिल तरीके से कटा। दुख इस बात है कि कल भी ऐसा ही होगा। यह अनअपेक्षित ठहराव लोगों की असुरक्षा को दम दे रहा है। वे जो कल तक अपनी सफलताओं के गीत गा रहे थे, आज चिल्लाते नजर आ रहे हैं। रांची की एक मस्जिद के पास कल तक हंसते खेलते युवक पर अचानक बहशत का दौरा पड़ा। वह आयं-बायं-शायं बोलने लगा। उग्रता उस पर सवार होती गई। पहले इधर-उधर पत्थर उछाले और फिर एक मस्जिद में जा घुसा। किसी तरह उस पर काबू पाया गया। तमस के इन दिन-रात में मंदिर बंद हैं, मस्जिदें सूनी पड़ी हैं, पश्चिम के गिरजाघर ताबूतों के भार ढो रहे हैं, ऐसे में इंसान के यकीन की रक्षा करना इंसान पर ही भारी पड़ रहा है।
क्रमश:
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।