Hindi Newsओपिनियन नजरियाHindustan nazariya column 17 February 2025

भगदड़ से बचने के लिए भीड़ की ताकत समझना जरूरी

  • भारत में कुछ ही दिनों के अंतर पर दो भगदड़ की घटनाओं ने सोचने पर विवश कर दिया है। प्रयागराज में भगदड़ की घटना और नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ से सबक लेना चाहिए। अब अपने विशाल आबादी वाले देश में आपदा प्रबंधन की तरह भीड़…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानSun, 16 Feb 2025 11:36 PM
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भगदड़ से बचने के लिए भीड़ की ताकत समझना जरूरी

प्रदीप कुमार मुखर्जी, पूर्व प्रोफेसर एवं विज्ञान लेखक

भारत में कुछ ही दिनों के अंतर पर दो भगदड़ की घटनाओं ने सोचने पर विवश कर दिया है। प्रयागराज में भगदड़ की घटना और नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ से सबक लेना चाहिए। अब अपने विशाल आबादी वाले देश में आपदा प्रबंधन की तरह भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था और संहिता जरूरी हो गई है। भीड़ प्रबंधन की कमियों को दूर करने के साथ ही, लोगों को जागरूक करना चाहिए।

विदेश में भी भगदड़ से लोगों की जान जाती रही है। पिछला हादसा दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल का है, जहां 29 अक्तूबर 2022 को हैलोविन त्योहार के मौके पर 149 लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकतर किशोर और 20-30 वर्ष आयु के युवा शामिल थे। सन 2015 में मक्का के मीना भगदड़ में 2,400 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। अनियंत्रित भीड़ के कारण भगदड़ होना स्वाभाविक है, पर वैज्ञानिक रूप से इसे कैसे समझा जा सकता है? आइए, इस पर विचार करते हैं।

भीड़ की मनोदशा या ‘मॉब मेंटालिटी’ की बात अक्सर की जाती है। भीड़ में लोग अपना असली चरित्र भूलकर भीड़ जैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इससे भीड़ का दबाव बनता है, जिससे कई लोग गिर जाते हैं तथा दब और कुचल कर अपनी जान गंवा बैठते हैं। गौरतलब है कि प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 3 से 4 लोगों का घनत्व होने पर उन्हें अपने हाथ-पैर चलाने अथवा सांस लेने में कोई परेशानी नहीं होती है, पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में अगर 5-6 या उससे अधिक लोग खड़े हो जाएं, तो इससे एक दबाव उत्पन्न होता है, जिसे भीड़-कंप या क्राउड क्वेक का नाम दिया जाता है। भीड़ के दबाव से, वैज्ञानिक रूप से एक तरंग की उत्पत्ति होती है, जिसे संघात तरंग या शॉक वेव का नाम दिया जाता है। असल में, भीड़ से एक हजार पौंड तक का दबाव उत्पन्न हो सकता है, जिसमें इस्पात की छड़ों को भी मोड़ने की क्षमता होती है।

भीड़ के दबाव यानी क्राउड क्वेक के कारण अनेक शारीरिक परेशानियां पैदा होती हैं। सांस लेने में तकलीफ के कारण दिमाग को पूरी मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है, जिससे व्यक्ति बेहोश होकर गिर सकता है। इसके अलावा उसके दिल को भी पूरा ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है, जिससे उसे दिल का दौरा पड़ सकता है। भीड़ में फैली घबराहट और भीड़ के कारण उत्पन्न अत्यधिक गरमी भी व्यक्ति को बेहोश कर सकती है, जिससे वह गिर सकता है। ऐसी स्थिति में लोगों के हाथ-पैर और सिर आपस में टकरा या उलझ सकते हैं, जिससे हालात की गंभीरता और बढ़ जाती है। घबराहट के चलते भीड़ का धकियाते हुए भागना स्थिति को और बिगाड़ देता है। इससे लोग भीड़ में दब जाते हैं या भीड़ द्वारा कुचल दिए जाते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है। भीड़ में फंस कर दम घुट जाने से बेहोश हो जाना या दिल का दौरा पड़ना तो आम बात है ही, इस भागमभाग में दब या कुचल कर मर जाने के अलावा हड्डियां आदि भी टूट सकती हैं।

दुर्भाग्यवश कहीं भीड़ में फंसने पर कुछ एहतियाती उपायों का ध्यान रखने से जीवन रक्षा हो सकती है। सावधान, भीड़ की ताकत का कभी विरोध नहीं करना चाहिए। मतलब भीड़ के बढ़ने की विपरीत दिशा में जाने का प्रयास कभी नहीं करना चाहिए, अन्यथा गिरना तय है, जिससे जान जोखिम में पड़ सकती है। भीड़ के साथ कुछ तिरछे चलते हुए किनारे पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए। याद रहे, भीड़ को सीधे धकिया कर निकल जाना संभव नहीं।

भीड़ में गिरने से बचना चाहिए, नहीं तो उठकर खड़ा होना मुश्किल होगा। मोबाइल या कोई अन्य मूल्यवान वस्तु नीचे गिर जाने पर उसे उठाने के लिए झुकना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे जान को खतरा हो सकता है। दुर्भाग्यवश, भीड़ में गिर जाने पर बाईं करवट हो जाना चाहिए, जिससे दिल और फेफड़े सुरक्षित रहें; अथवा किसी भी करवट में, एक गेंदनुमा, मुड़ी हुई अवस्था में आ जाना चाहिए। सीने या पीठ के बल लेटने पर भीड़ द्वारा कुचले जाने की अधिक आशंका रहती है। गिर जाने पर हो सके, तो सिर को अपनी बाहों द्वारा सुरक्षित कर लेना चाहिए। इसे ‘फीटस पोजीशन’ कहते हैं, यानी वह स्थिति जिसमें एक गर्भस्थ शिशु सुरक्षित रहता है।

हालांकि, सबसे बेहतर है कि हम ऐसी कोई नौबत ही न आने दें। समझ जाइए कि अत्यधिक भीड़ बहुत बड़ा खतरा है, जिसमें शामिल होने से बचाना होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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