Hindi Newsओपिनियन नश्तरHindustan Nashtar Column 15 February 2022

चॉकलेट-डे नहीं, लॉलीपॉप पखवाड़ा 

यह उस समय की बात है, जब चुनावाधीन राज्यों में नेताओं की सत्ता-प्राप्ति की लालसा किसी बिल्ली की तरह भाग्य का छींका टूटने पर टिकी थी। तब सनसनीखेज ‘चुंबन दिवस’ आदि के साथ...

Neelesh Singh  निर्मल गुप्त , Mon, 14 Feb 2022 09:38 PM
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चॉकलेट-डे नहीं, लॉलीपॉप पखवाड़ा 

यह उस समय की बात है, जब चुनावाधीन राज्यों में नेताओं की सत्ता-प्राप्ति की लालसा किसी बिल्ली की तरह भाग्य का छींका टूटने पर टिकी थी। तब सनसनीखेज ‘चुंबन दिवस’ आदि के साथ ‘चॉकलेट-डे’ भी आया, तब जनता को लगा कि चुनावी दिलासाओं से भरा लॉलीपॉप पखवाड़ा आया। किसी ने किसी को चॉकलेट थमाई, किसी ने किसी से स्वीकार की, दोनों ने मजे लेकर खाई। कुछ लोग चॉकलेट दिल के पास वाली जेब में लिए घूमते रहे। उनको चॉकलेट देने लायक कोई न मिला। जेब में रखी चॉकलेट देह के ताप से पिघली, तो पोल खुल गई।
एक समय था, जब चॉकलेट मीठी नहीं, तीखी होती थी। यूरोप वालों ने उसमें दूध और मिठास भरी। उसके पहले यह खाई नहीं, बतौर ड्रिंक गटकी जाती थी। संभव है, साकी के सान्निध्य में पैमाने से पी जाती हो। चीयर्स का नारा बुलंद करते हुए। हो सकता है, कौन जाने? दवाई या अपमान की कड़वी खुराक की तरह। शायद जैसे गोलगप्पे खा लेने के बाद भर-भर दोने जायकेदार जलजीरा ‘सी-सी’ कर पीते हैं। चॉकलेट दिवस हर वर्ष आता है। खूब मनाया जाता है। यही वह दिन है, जो सरकारी गजट में सार्वजनिक अवकाश की घोषणा न होने के बावजूद मनता है, जबकि हम हर बारात और वारदात पर छुट्टी की उम्मीद बांधे रहते हैं। और तो और, किसी का अवसान तब तक शोकाकुल नहीं होता, जब तक बाकायदा अवकाश घोषित न हो। कई बार तो ऐसा हुआ कि अमुक जी इतवार को स्वर्ग सिधारे, तो लोगों ने उनके निधन पर यह कहते हुए अपने गम का इजहार किया कि इस बंदे को जिंदगी भर मरने का सलीका भी न आया।
यह मानने में हर्ज नहीं कि वैलेंटाइन-डे के मुकाबले चॉकलेट-डे जरा लो-प्रोफाइल ‘डे’ है। इसमें खुलेपन जैसा खुला-खुला कुछ है ही नहीं। जो है, वह स्वास्थ्य संबंधी खतरों के साथ है। चॉकलेट-डे गुपचुप प्रेम-प्रसंगों का हाई कैलोरी वाला जोखिम भरा दिवस है। अलबत्ता, आभासी लॉलीपॉप के साथ ऐसा कोई खतरा मौजूद नहीं।
  

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