हवाएं सबसे बड़ी संदेश वाहक
अमेजन का वितरण करने वाला लड़का सामान देने आया था। ये लोग हवा के झोंकों की तरह आते हैं और सामान देकर गायब हो जाते हैं। इनका एक खास व्यक्तित्व होता है। उनसे हम एक खास तरह के आचरण की अपेक्षा रखते हैं...
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अमेजन का वितरण करने वाला लड़का सामान देने आया था। ये लोग हवा के झोंकों की तरह आते हैं और सामान देकर गायब हो जाते हैं। इनका एक खास व्यक्तित्व होता है। उनसे हम एक खास तरह के आचरण की अपेक्षा रखते हैं। लड़के ने मेरा पार्सल थमाया और मुस्कराकर बोला, ‘नेवर बॉर्न नेवर डाइड।’ मैं इतनी चौंक गई कि मेरे हाथ से पार्सल गिर गया। मैंने पूछा, ‘तुम कैसे जानते हो इन शब्दों को?’ उसने कहा, ‘यहीं आसपास रहता हूं, तो बातें कानों से गुजरती हैं।’
चौंकने वाली बात इसलिए है, क्योंकि ओशो के बेडरूम में पलंग के नीचे उनकी अस्थियां रखी हुई हैं, उस पर ओशो के लिखवाए हुए ये शब्द हैं : ‘ओशो नेवर बॉर्न नेवर डाइड, ओनली विजिटेड दिस प्लैनेट अर्थ बिटवीन 11 दिसंबर, 1931 ऐंड 19 जनवरी, 1990’ यानी ‘ओशो न कभी जन्मे, न कभी विदा हुए, केवल इस ग्रह (पृथ्वी) का 11 दिसंबर, 1931 से 19 जनवरी, 1990 के बीच दौरा किया।’
यह बेडरूम ओशो मेडिटेशन रिजॉर्ट के अंतर कक्ष में है। वहां सिर्फ साधक ही जा सकते हैं और उसके लिए उन्हें प्रवेश पास खरीदना होता है। उसका उपयोग सिर्फ ध्यान के लिए होता है। और ये शब्द उन्हीं के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो ओशो के मुरीद हैं। फिर इस अमेजन के वायुदूत की जुबान पर कैसे चढ़ गए? शायद ये शब्द इतने मशहूर हो गए हैं कि सुगंध की तरह आसपास की हवा में तैर रहे हैं।
इससे मुझे वह कहानी याद आई, जब आदि शंकराचार्य मंडन मिश्र का घर ढूंढ़ते हुए पहुंचे थे। नगर में एक कुंए पर पानी पीने के लिए रुके, वहां कुछ ्त्रिरयां पानी भर रही थीं, उनसे शंकराचार्य ने पूछा, आचार्य मंडन मिश्र का घर कहां मिलेगा? ्त्रिरयां बोलीं, सीधे चलते जाओ, जिस घर के आसपास तोते ज्ञान की बातें कहते हुए मिलेंगे, वही मंडन मिश्र का घर होगा।
यह किसी और काल की बात है। आजकल जमाना प्रचार और विज्ञापन का है। लाखों करोड़ों खर्च करके कोई बात लोगों के गले उतारी जाती है, उसे बार-बार दोहराना पड़ता है, ताकि वे भूल न जाएं, लेकिन इसके बावजूद विज्ञापनदाता सफल नहीं हो पाते। इसके विपरीत कुछ खबरें, कुछ शब्द, कुछ कल्पनाएं दूर दिगंत तक पहुंच जाती हैं, मानो हवाएं उन्हें उड़ाकर ले जाती हैं।
समुद्र कब विज्ञापन करता है कि ओ नदियो, मेरे पास आओ, मैं समुद्र हूं, तुम्हारा अंतिम पड़ाव। समुद्र का होना ही काफी है। उसकी शक्ति इतनी प्रबल है कि सारे जल स्रोत चुंबक की तरह खींचे चले आते हैं। न फूल भौरों को कोई संदेश भेजते हैं कि देखो, हम खिल गए हैं। हवाएं उनकी सुगंध को फैला देती हैं। अस्तित्व एक इकाई है, यहां सब एक-दूसरे से जुड़ा है।
अमृत साधना
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