समान संहिता लागू
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन है, जिस पर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। न तो इस संहिता का समर्थन चौंकाता है और न विरोध। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को समान नागरिक संहिता के तहत नियमों के बारे में विस्तार से …
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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन है, जिस पर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। न तो इस संहिता का समर्थन चौंकाता है और न विरोध। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को समान नागरिक संहिता के तहत नियमों के बारे में विस्तार से बताया है और अब नियमों की समीक्षा हो रही है। राज्य में अब सभी धर्मों के लिए बहुविवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और बेटियों को पैतृक संपत्तियों में समान अधिकार भी दिया गया है। जाहिर है, इस संहिता से देश के बाकी राज्यों को भी सीखने और विचार करने की प्रेरणा मिलेगी। देश में अभी आधा दर्जन राज्य ऐसे हैं, जहां किसी न किसी चरण में समान नागरिक संहिता बनाने की कवायद चल रही है। इस संहिता की समर्थक सरकारें फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं, तो अचरज नहीं। दुनिया में कई देश हैं, जो अल्पसंख्यकों की आवाज को दबाकर तत्काल प्रभाव से और कड़ाई से ऐसी संहिता या नियमों को लागू कर देते हैं, पर भारतीय राज्य उत्तराखंड में सोच-विचार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बाद संहिता को लागू किया गया है।
अधिकतर संविधान निर्माताओं ने यह सपना देखा था कि एक दिन देश में समान नागरिक संहिता पर सहमति बनेगी और उत्तराखंड ने यह शुरुआत कर दी है। संहिता में सभी धर्मों के विवाह, विरासत, भरण-पोषण और अन्य नागरिक मामलों के लिए समान नियमों की परिकल्पना की गई है। अब किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के जीवित रहने तक दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। वैसे तो हिंदुओं में भी एकाधिक शादी करने वाले मिल जाते हैं, पर इस्लामी कानून के हिसाब से चल रहे कुछ लोगों को यह संहिता नागवार लग सकती है। वैसे अल्पसंख्यक समाज में भी अधिकतर लोगों ने एकल विवाह ही किए हैं और उन्हें इस संहिता से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वास्तव में, इस संहिता से महिलाओं को न्याय देने में सुविधा होगी। जब कोई एकाधिक विवाह करता है, तो महिलाएं ही सर्वाधिक प्रताड़ित होती हैं। उनके अधिकार और संसाधनों में कमी आ जाती है, अत: यह संहिता महिलाओं और बेटियों की एक बड़ी जीत है। महिलाओं को इस संहिता से विशेष बल मिलेगा। महिलाएं अपने विवाह को लेकर आश्वस्त रहेंगी। साथ ही, लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत कराना अब अनिवार्य हो गया है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा बच्चों को भी संपत्ति में समान हक मिलेगा। विवाह और उसके परे भी रिश्तों के बदलते दौर में ऐसे सुधार की जरूरत पूरे देश में महसूस की जा रही है, ताकि कहीं भी शोषण से बचा जा सके।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने उचित ही कहा है कि समान नागरिक संहिता भेदभाव समाप्त करने का सांविधानिक उपाय है। सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रयास किया गया है। वास्तव में, इस संहिता से हलाला, बहुविवाह, बाल विवाह, तीन तलाक आदि बुराइयों को पूरी तरह से रोका जा सकता है। वैसे, इस संहिता से अनुसूचित जनजातियों को अलग रखा गया है, तो इसके पीछे की भारतीय उदारता को समझा जा सकता है। वैसे अनुसूचित जनजातियों में भी समय के साथ जागरूकता बढ़ी है और वहां भी एक से ज्यादा विवाह करने वालों की संख्या कम हुई है। लोग अब समझने लगे हैं कि आज बड़े परिवारों की नहीं, सुखी परिवारों की जरूरत है।
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