मध्यवर्ग को मजबूती देगा यह बजट
- यह बिहार का बजट है। यह दिल्ली वालों का बजट है। यह मध्यवर्ग का बजट है। यह समझदारी का बजट है। यह भारत की तरक्की का बजट है। आप इनमें से जो चाहें, वह विशेषण इस्तेमाल कर सकते हैं…
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आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
यह बिहार का बजट है। यह दिल्ली वालों का बजट है। यह मध्यवर्ग का बजट है। यह समझदारी का बजट है। यह भारत की तरक्की का बजट है। आप इनमें से जो चाहें, वह विशेषण इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द उधार लें, तो फिर मानना पडे़गा कि इस बजट में देश के मध्यवर्ग पर मां लक्ष्मी की कृपा हुई है। इससे देश के 80 प्रतिशत आयकर दाताओं को फायदा होने का अनुमान है।
बजट से पहले अनुमान लगाया जा रहा था। बहुत से खबरनवीस पक्की जानकारी लाए थे। अर्थशा्त्रिरयों से लेकर इंडस्ट्री के संगठनों तक ने सिफारिश की थी, मगर तब भी सुनने वालों को यकीन नहीं हो पा रहा था। बजट भाषण की शुरुआत में जिस अंदाज में बिहार पर कृपा बरसी, उसके बाद लगा कि शायद मायूसी हाथ लगेगी। मगर इनकम टैक्स का जिक्र हुआ और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एलान किया कि अगले हफ्ते डायरेक्ट टैक्स कोड संसद में रखा जाएगा, इसके बाद तो सुनने वालों को लगभग यकीन हो गया कि इनकम टैक्स का मामला अब बट्टे खाते में गया। फिर वित्त मंत्री ने कहा कि पर्सनल इनकम टैक्स का जिक्र वह अंत में करेंगी।
इंतजार बहुत लंबा नहीं था। करीब एक घंटे चौदह मिनट के बजट भाषण के अंत में वित्त मंत्री ने जैसे ही इनकम टैक्स में बदलाव का एलान किया कि मानो चारों ओर बहार आ गई। खासकर सरकारी और निजी दफ्तरों में, जहां भी अनेक लोग साथ बैठकर बजट सुन रहे थे, वहां एकदम वन डे मैच की जीत जैसा माहौल बन गया। काफी लंबे इंतजार के बाद आखिरकार इस बार वित्त मंत्री ने मध्यवर्ग की सुन ली। 12 लाख रुपये तक की सालाना कमाई अब टैक्स फ्री होगी। मध्यवर्ग की कमाई, महंगाई का हाल और बडे़ शहरों के किराये या घरों की कीमत देखते हुए बहुत से लोगों को शायद यह बड़ी बात न लग रही हो। इसलिए भी, क्योंकि बहुत से लोग पंद्रह लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर टैक्स छूट की मांग कर रहे थे, लेकिन यह जानना और समझना जरूरी है कि यह लिमिट सात लाख से बढ़ाकर सीधे 12 लाख रुपये की गई है, यानी 70 फीसदी से ज्यादा।
और यह भी समझ लेना चाहिए कि इनकम टैक्स भरने वालों के लिए यह 1997 के बाद की सबसे बड़ी सौगात है। साल 1997 का बजट तब के वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पेश किया था और आज तक उसे ‘ड्रीम बजट’ कहा जाता है। तब वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स की सबसे ऊंची दर को 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत किया था, जो बहुत बड़ा फैसला था।
इस बार अपने आठवें बजट में सीतारमण ने लगभग वैसा ही काम किया है। 12 लाख रुपये सालाना या एक लाख रुपये महीना कमाने वालों को लगभग 30,000 रुपये का फायदा होगा। वेतनभोगी कर्मचारियों को 75,000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा भी मिलेगा, यानी उनकी 12.75 लाख रुपये तक की कमाई टैक्स फ्री हो जाएगी। अलग-अलग स्लैब पर कितनी बचत होगी, इसका हिसाब भी सामने आ चुका है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ 12 लाख रुपये तक की कमाई वालों को ही राहत मिली है। 20 से 24 लाख सालाना कमाने वालों के लिए भी एक नया टैक्स स्लैब आ गया है। इन लोगों के इनकम टैक्स की दर अब 25 प्रतिशत होगी, यानी उन्हें बीस से चौबीस लाख रुपये के बीच की कमाई पर पांच फीसदी कम टैक्स भरना होगा। और सालाना दो करोड़ रुपये से ज्यादा कमाने वालों को भी एक राहत दी गई है। उन्हें इनकम टैक्स पर जो सरचार्ज भरना पड़ता है, उसका रेट कम करके पच्चीस प्रतिशत कर दिया गया है।
कहा जा सकता है कि मध्यवर्ग के लिए वित्त मंत्री ने अपनी झोली खोल दी है। उन्होंने बताया भी है कि आयकर में इस राहत से सरकारी खजाने पर एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पडे़गा। दूसरे शब्दों में कहें, तो उन्होंने मध्यवर्ग को एक लाख करोड़ रुपये का सीधा तोहफा दिया है, लेकिन इस तोहफे के साथ कुछ किंतु-परंतु भी जुड़े हैं। सबसे पहले तो यह साफ रहे कि 12 लाख रुपये की टैक्स फ्री कमाई के लिए इनकम टैक्स के नए रिजीम, यानी नई कर प्रणाली से जुड़ना जरूरी होगा। अगर आप पुरानी रिजीम से रिटर्न भरना चाहते हैं, तो आपको पुराने स्लैब और पुराने रेट पर ही टैक्स भरना पडे़गा। वित्त मंत्री पुरानी टैक्स व्यवस्था को खत्म करना चाहती हैं और 80सीसी, यानी बीमा या निवेश के जरिये टैक्स में मिलने वाली राहत का फायदा लेने वालों को यह नई टैक्स छूट नहीं मिल पाएगी।
दूसरी और ज्यादा बड़ी बात यह है कि वित्त मंत्री ने आखिर टैक्स से होने वाली कमाई में से करीब एक लाख करोड़ रुपये का त्याग करने का फैसला क्यों किया? उसकी वजह साफ है। अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाने के तमाम तरीके उतने कारगर होते नहीं दिख रहे, जिसकी जरूरत है। चालू वित्त-वर्ष में सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर या पूंजी-निर्माण पर जितना खर्च करना था, वह लक्ष्य भी पूरा हो नहीं पाया है और निजी क्षेत्र आगे बढ़कर कारोबार में नया पैसा लगाए, इसके लिए माहौल बनता नहीं दिख रहा। ऐसे में, सरकार को लग रहा है कि अगर वह मध्यवर्ग के हाथ में कुछ पैसा डाल दे या कम से कम उनकी कमाई से जो हिस्सा टैक्स के रूप में लिया जाता है, वही कम कर दे, तो काम बन सकता है।
काम ऐसे बनेगा कि जब लोगों को टैक्स कम भरना पड़ेगा, तो फिर वे इस बची रकम को खर्च करेंगे। कुछ जरूरी चीजों पर और कुछ अपने शौक पूरे करने के लिए। इन दोनों का ही असर होगा कि बाजार में बिक्री बढे़गी, कारोबारियों का काम तेज होगा, अर्थव्यवस्था में जान आएगी और उसकी रफ्तार तेज होगी। अर्थव्यवस्था में रफ्तार तेज होने का एक असर यह भी होगा कि दूसरे रास्ते से, यानी जीएसटी और कॉरपोरेट टैक्स के मोर्चे पर सरकार की कमाई बढ़ेगी। ऐसा नहीं है कि इनकम टैक्स की सारी रकम घूमकर उसके पास आ जाएगी। जब अर्थव्यवस्था रफ्तार पकडे़गी, तो फिर लोगों की कमाई भी बढे़गी और उसके साथ ही, इनकम टैक्स वसूली भी।
कान घुमाकर पकड़ने जैसी बात है, मगर अर्थव्यवस्था ऐसे ही चलती या चलाई जाती है। इस बार के बजट में खासकर मध्यवर्ग के लिए तो इनकम टैक्स का यह एलान ही है। आज शायद बात अटपटी लगे, लेकिन कुछ साल बाद इस बजट को इस फैसले के लिए ही याद किया जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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