अश्लीलता के खिलाफ
- यूट्यूबर-पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं, उनके गहरे निहितार्थ हैं। शीर्ष अदालत ने रणवीर से पूछा कि ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ के कार्यक्रम में आपने जो कुछ कहा, ‘इस देश में यदि वह अश्लीलता नहीं है….
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यूट्यूबर-पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं, उनके गहरे निहितार्थ हैं। शीर्ष अदालत ने रणवीर से पूछा कि ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ के कार्यक्रम में आपने जो कुछ कहा, ‘इस देश में यदि वह अश्लीलता नहीं है, तो फिर अश्लीलता के मानक क्या हैं?’ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने उचित ही कहा कि रणवीर और उनके साथियों ने जैसी विकृत मानसिकता का प्रदर्शन किया और जो शब्द उन्होंने चुने, उनसे माता-पिता, बहनें-बेटियां व भाई शर्मिंदा होंगे। हालांकि, बतौर नागरिक उनके अधिकारों का संरक्षण करते हुए अदालत ने उन्हें वैधानिक उत्पीड़न से बचाने के लिए इस मामले में अतिरिक्त एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगा दी और राज्य प्रशासन को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए। गौरतलब है कि इस कार्यक्रम के प्रसारण के चंद घंटों के भीतर हुई भारी फजीहत के बाद रणवीर को न सिर्फ सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी थी, बल्कि यूट्यूब से इस शृंखला के सारे एपिसोड हटाने पड़े थे। मगर जगह-जगह रणवीर और उनके साथियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों ने अश्लील सामग्री के मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया है।
स्वस्थ प्रहसन भारतीय लोक का हमेशा से हिस्सा रहा है और समाज-निर्धारित मर्यादाओं से पोषित इस कला के प्रति आज भी कम आकर्षण नहीं है। इस विधा के कलाकारों की जहानत उनकी बारीक उपहास-व्यंग्य क्षमता से तय होती रही। कामसूत्र के रचयिता तो दार्शनिक तक कहे गए। ऐसा भी नहीं कि वाचिक अश्लीलता हमारे समाज में थी ही नहीं और रणवीर व समय रैना ने पहली बार उसका विस्फोट किया है, सच तो यह कि यहां की गालियों के समाजशास्त्र पर गंभीर अध्ययन तक हो चुके हैं। मगर वास्तविकता यही है कि भद्र लोक ने हमेशा इस प्रवृत्ति का बहिष्कार किया। अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की हिफाजत करते हुए लगातार मानवीय संबंधों की गरिमा और सार्वजनिक-सामाजिक शुचिता की पैरोकारी की गई। इस कसौटी पर आरोपी यूट्यूबर के आचरण निकृष्टतम थे, इसमें तो कोई दोराय नहीं हो सकती।
दरअसल, सोशल मीडिया के जरिये जल्दी से जल्दी लोकप्रिय होने और धन कमाने की लिप्सा ने एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया है, जो सामाजिक मूल्यों के संरक्षण की अपनी जिम्मेदारी से बिल्कुल गाफिल है। उसे लगता है, उसकी आजादी असीम है। ऐसे में, बहुत जरूरी हो गया है कि सोशल मीडिया के कंटेंट की निगरानी के तंत्र को अधिक सक्रिय और प्रभावी बनाया जाए। जिस तेजी से सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए ऐसी अश्लील सामग्रियों की रोकथाम और ज्यादा जरूरी है, क्योंकि इनसे परिवार मूल्य को नुकसान पहुंच सकता है। मगर यह काम आसान नहीं है, क्योंकि अश्लील सामग्रियों के प्रकाशन-प्रसारण पर रोक लगाते हुए तंत्र को अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति भी संवेदनशील रहना होगा, क्योंकि यह हमारी सांविधानिक-लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियादी शर्त है। फिर तंत्र को उन लोगों से भी उसी सख्ती से निपटना चाहिए, जो रणवीरों को जान से मारने की धमकी देते हैं या उनके परिजनों की निजता का उल्लंघन करते हैं। यह प्रकरण उन युवाओं के लिए सबक होना चाहिए, जो सोशल मीडिया में करियर तलाश रहे हैं। उन्हें समझना होगा, अश्लील कंटेंट की सनसनी उन्हें क्षणिक सफलता तो दिला देगी, मगर अंतत: वे कानून के कठघरे में खडे़ होंगे और उनके कलंक को उनका पूरा परिवार ढो रहा होगा।
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