ताकि न हो भगदड़
- नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के बाद रेल विभाग ने एहतियातन जो कदम उठाए हैं, उनकी सराहना होनी चाहिए। विभाग ने ऐसे 60 स्टेशनों की पहचान की है, जहां आए दिन भीड़ की आशंका रहती है…
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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के बाद रेल विभाग ने एहतियातन जो कदम उठाए हैं, उनकी सराहना होनी चाहिए। विभाग ने ऐसे 60 स्टेशनों की पहचान की है, जहां आए दिन भीड़ की आशंका रहती है। ऐसे स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन के अब पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। ऐसा नहीं है कि स्टेशनों पर भीड़ नियंत्रण के बारे में कभी सोचा न गया हो। आम तौर पर होली, दीपावली, छठ जैसे त्योहारों के समय स्टेशनों पर विशेष सावधानी बरती जाती है, पर दुर्भाग्य से भीड़ के कुछ कम होते ही बचाव के उपाय हटा लिए जाते हैं। काश! नई दिल्ली स्टेशन पर बचाव के उपाय कायम रहते, तो भगदड़ न मचती। कहां-कहां कमी रह गई, इसकी ईमानदार पड़ताल स्वयं रेलवे अधिकारी भी कर रहे हैं। भीड़ को लेकर गंभीरता नहीं थी, इसका एक प्रमाण तो यह भी है कि हर घंटे करीब 1,500 जनरल टिकट बिक रहे थे। टिकट बिकने चाहिए करीब 5,000, लेकिन 9,000 से ज्यादा टिकट बेच दिए गए? ज्यादा से ज्यादा टिकट बेचने का फैसला कौन लेता है? रेलवे में कौन है, जो केवल विभागीय कमाई को लक्ष्य बनाकर चल रहा है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब स्वयं विभाग को खोजने पड़ेंगे।
रेलवे की एक जिम्मेदारी है और उसमें भी भारत जैसे विशाल देश में तो रेलवे परिवहन के मेरुदंड की तरह है। मेरुदंड में ही अगर कमजोरी आ जाएगी, तो यात्रियों की बढ़ती संख्या का भार कौन उठाएगा? यह रेलवे की ताकत ही है कि लोग उसके भरोसे घर से निकल पड़ते हैं कि किसी न किसी रेलगाड़ी में तो जगह मिल ही जाएगी, किसी रेलगाड़ी में जगह न मिले, तो कम से कम स्टेशन पर घड़ी-दो घड़ी के लिए छत तो नसीब होगी। बेशक, नई दिल्ली स्टेशन पर शनिवार रात जो हुआ, वह एक भरोसे पर आघात जैसा है। हां, लोगों को भी रेलवे पर अब अपने पारंपरिक भरोसे की समीक्षा करनी चाहिए। दशकों से जनरल डिब्बों की संख्या को घटाया गया है, ताकि लोग आरक्षित डिब्बों में ही ज्यादा सुविधा और सुरक्षा के साथ यात्रा कर सकें। यह बात नई नहीं है, अनेक स्टेशनों पर जब कोई गाड़ी रुकती है, तो ज्यादा से ज्यादा लोग जनरल या सामान्य श्रेणी के डिब्बों की ओर दौड़ पड़ते हैं। अक्सर लोग गिरते-लुढ़कते हैं, उनके अंग कुचल जाते हैं, चोट लग जाती है, दम फूलने लगता है, मगर ऐसी परेशानियां कभी विचार का मुद्दा नहीं बनती हैं। क्या कभी सोचा गया है कि सामान्य श्रेणी के दो-तीन डिब्बों में बैठे बुजुर्गों का क्या हाल होता है? आए दिन की ऐसी बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है?
बेशक, रेलवे को सुधार के इंतजाम करने चाहिए और इसकी अच्छी तैयारी दिखने भी लगी है। महाकुम्भ जाने के रास्ते में पड़ रहे करीब 35 रेलवे स्टेशनों पर विशेष प्रबंध की मांग है। नई दिल्ली स्टेशन पर ही नहीं, बल्कि देश के जिन स्टेशनों पर नियंत्रण के पार भीड़ लग रही है, वहां प्लेटफॉर्म टिकट न बेचने में ही भलाई है। इसके अलावा सामान्य श्रेणी के टिकट सामाजिकता या मानवीयता का ध्यान रखते हुए बिकने चाहिए। प्लेटफॉर्म हो या प्लेटफॉर्म पर मौजूद सीढ़ियां, हर जगह आने और जाने के रास्ते बाकायदे विभाजक या डिवाइडर लगाकर स्थायी तौर पर अलग-अलग होने चाहिए और रेलवे ने इस दिशा में अपने कदम बढ़ाकर सुधार के संकेत दिए हैं। कहीं भीड़ लगे भी तो परस्पर न उलझे, एक निश्चित दिशा की ओर सुरक्षित निकल जाए, इसके लिए तीर के निशान बनाए जा रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि नई दिल्ली जैसा हादसा फिर कहीं न होगा।
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