सबके हितों का ख्याल रखा गया
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट में 12 लाख रुपये तक की सालाना आय को कर-दायरे से बाहर करने की घोषणा मध्यवर्ग को राहत पहुंचाने वाली है। इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों को भी काफी राहत दी गई है…
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट में 12 लाख रुपये तक की सालाना आय को कर-दायरे से बाहर करने की घोषणा मध्यवर्ग को राहत पहुंचाने वाली है। इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों को भी काफी राहत दी गई है। अनुसूचित जाति-जनजाति की उद्यमी महिलाओं के लिए भी दो करोड़ रुपये के टर्म लोन की व्यवस्था की गई है। बजट की एक अन्य विशेषता बिहार के लिए कई तरह की घोषणाएं हैं, जिनमें मखाना बोर्ड बनाने, आईआईटी पटना का विस्तार, ग्रीन फील्ड हवाई अड्डे, खाद्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना आदि प्रमुख हैं। किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाई गई है और उनकी आय व उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया गया है। वित्त मंत्री ने बजट के जरिये विकसित भारत का खाका खींचा है और आम लोगों को तवज्जो दी है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, टिप्पणीकार
राहत पहुंचाता बजट
आम बजट ने नौकरीपेशा लोगों और मध्यवर्ग को अच्छी राहत दी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की यह घोषणा विशेषकर मध्यवर्ग के लिए बड़ी राहत लेकर आई है कि 12 लाख रुपये तक की सालाना आय पर अब कोई आयकर नहीं देना होगा। इस राहत का हर कोई काफी समय से बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कहना गलत नहीं होगा कि भारत-निर्माण में मध्यवर्ग की बहुत बड़ी भूमिका है। अगर उनको राहत मिलती है, तो देश की प्रगति को भी नए पंख लगेंगे।इस साल के बजट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता वाले ‘ज्ञान’ (जी-गरीब, वाई-युवा, ए-अन्नदाता, एन-नारी) पर खासा जोर दिया गया है और उनकी बेहतरी के लिए काफी प्रयास किए गए हैं। इसी तरह, जीवन-रक्षक दवाओं पर से टैक्स हटाना भी काबिलेतारीफ कदम हैै। जिला अस्पतालों में कैंसर-डे केयर सेंटर की शुरुआत से कैंसर रोगियों को राहत मिलेगी। गंभीर रोगों के लिए दवाएं सस्ती करने का फैसला भी सराहनीय है। इन सबसे आने वाले समय में भारत ‘मेडिकल टूरिज्म’ का एक बड़ा केंद्र बन सकेगा। यह बहुत अच्छी बात है कि प्रस्तुत बजट से विभिन्न क्षेत्रों में जहां रोजगार और नए अवसरों का सृजन हो सकेगा, वहीं निर्माण क्षेत्र में भी जबर्दस्त तेजी आएगी। इस बजट में शिक्षा क्षेत्र को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जोड़ने के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की बात भी कही गई है। जाहिर है, नौजवानों और पेशेवरों को एआई का प्रशिक्षण मिलने से भारत भी इस क्षेत्र में वैश्विक लीडर बन सकता है। कुल मिलाकर, यह आम बजट विकसित भारत का सपना साकार करने की दिशा में एक मील का पत्थर है।
सुनील कुमार महला, टिप्पणीकार
कर राहत की पोल कहीं खुल न जाए
शनिवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया बजट निराशाजनक ही है। इसमें केवल इनकम टैक्स के नाम पर लोगों को भ्रमित किया गया है। कहने को 12 लाख तक की वार्षिक आमदनी अब कर-मुक्त हो गई है, लेकिन यह उन लोगों के लिए है, जो नई व्यवस्था के तहत कर देना चाहते हैं। इसी तरह, बिहार की चर्चा तो खूब की गई है, क्योंकि वहां चुनाव होने वाले हैं, लेकिन वहां विकास की बयार कैसे बह सकेगी, इसकी ठोस रूपरेखा बजट में नहीं दिख रही है। हम सभी जानते हैं कि बिहार एक पिछड़ा राज्य है और वहां पर उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है। संसद में बिहार पर कभी ठीक से चर्चा नहीं होती है। यह राज्य पलायन की मार झेलने को अब भी मजबूर है। ऐसे में, यहां रोजगार सृजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। इसी तरह, अभी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर है, जिससे लोग कमरतोड़ महंगाई से पीड़ित हैं। वित्त मंत्री को बजट में यह स्पष्ट करना चाहिए था कि महंगाई पर कैसे काबू पाया जाएगा, उस पर नीतिगत तथ्य रखने चाहिए थे, लेकिन इस मामले में भी जनता को मायूसी ही हाथ लगी। लिहाजा, यह बजट चिराग तले अंधेरे के समान है। आज के नौजवानों को आर्थिक चुनौतियों से बचाना है, पर इसका रोडमैप बजट में नहीं दिख रहा। सवाल यह भी है कि बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की बार-बार चर्चा की जाती है, तो क्या अन्नदाताओं की आमदनी दोगुनी हो गई? क्या बेरोजगारी दर कम हुई? सरकार की क्या उपलब्धियां हैं? संसद में इसका जवाब देना चाहिए।
समीर कुमार, टिप्पणीकार
गरीबों की अनदेखी
आम बजट में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा कर जनता की क्रय शक्ति में महत्वपूर्ण वृद्धि सुनिश्चित करने की प्राथमिकता होनी चाहिए थी, ताकि घरेलू मांग और उत्पादन को बढ़ावा मिल सके। मगर शनिवार को संसद में पेश आम बजट इसमें पूरी तरह विफल रहा। बजट के प्रावधानों द्वारा बड़े पूंजीपति कॉरपोरेट घरानों को जिस तरह फायदा पहुंचाने की नीति अपनाई गई है, उससे लगता है कि यह बजट पूरी तरह से कॉरपोरेट का, कॉरपोरेट द्वारा और कॉरपोरेट के लिए बनाया गया है, जो आम जनता की उम्मीदों पर कुठाराघात करता है। इस बजट में सामाजिक न्याय, गरीबों के कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार सृजन पर ध्यान नहीं दिया गया है। कुल मिलाकर, यह एक जन-विरोधी और गरीबों की अनदेखी करने वाला, महंगाई बढ़ाने वाला और दूरदर्शिता की भारी कमी वाला बजट है।
कैलाश पांडेय, टिप्पणीकार
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