छात्रों की वापसी में हो रही देरी अक्षम्य
ईरान-इजरायल के बीच युद्ध छिड़ जाने के बाद इन दोनों देशों में पढ़ने या किसी अन्य काम से गए भारतीय नागरिक बुरी तरह से फंस गए हैं। संकट की इस घड़ी में उन्हें वहां सामान्य सुविधाएं, यहां तक कि भोजन सामग्री भी मुश्किल से मिल पा रही है…

ईरान-इजरायल के बीच युद्ध छिड़ जाने के बाद इन दोनों देशों में पढ़ने या किसी अन्य काम से गए भारतीय नागरिक बुरी तरह से फंस गए हैं। संकट की इस घड़ी में उन्हें वहां सामान्य सुविधाएं, यहां तक कि भोजन सामग्री भी मुश्किल से मिल पा रही है। अंधाधुंध मिसाइल हमलों से उनका जीवन संकट में पड़ गया है। ऐसे में, उन्हें तत्काल वापस लाने की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन देखा गया है कि तेहरान और इजरायल के शहरों से भारतीयों को वापस लाने में बहुत देर हुई है। संघर्ष शुरू होने के चार-पांच दिन के बाद ही वहां फंसे भारतीय नागरिकों की किसी तरह से वापसी शुरू हो पाई। वह भी दूसरे देशों की मदद से। संघर्ष के इतने दिनों के बाद खबर आई कि भारतीय वायु सेना ईरान में रह रहे भारतीयों को बाहर निकालने की तैयारी कर रही है। वायु सेना के एक अधिकारी ने बताया है कि ईरान में फंसे छात्रों को वापस लाने की तैयारी तेजी से की जा रही है। सेना पूरी तरह से तैयार है और केंद्र सरकार से निर्देश मिलते ही नागरिकों की घर वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी, यानी तब तक केंद्र की मंजूरी भी नहीं मिली थी। यह बहुत ही चिंताजनक बात है।
देश के नागरिकों, खासकर अपने छात्रों को तो इस तरह से अनाथ हालत में कई दिनों तक नहीं ही छोड़ा जाना चाहिए। ये वे छात्र हैं, जो देश में शिक्षा की भरपूर सुविधा न मिल पाने के कारण ही अपने खर्चे पर विदेश पढ़ने जाते हैं। इनमें से सब संपन्न परिवारों के ही हों, ऐसी बात नहीं है। हमारे आस-पास के अनेक मध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे यूक्रेन, ईरान, चीन, इजरायल, बांग्लादेश आदि देशों में सस्ती शिक्षा मिलने के कारण जाते हैं। इसका दुखद पहलू यह भी है कि हमारे देश में इस तरह की शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। स्थिति यह है कि जिस मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए छात्र यूक्रेन, रूस आदि देशों में 25 से 30 लाख रुपये खर्च करते हैं, उसके लिए देश में एक से डेढ़ करोड़ रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। जाहिर सी बात है कि ये छात्र मजबूरी में ही दूसरे देशों में जाते हैं। सरकार को अपने देश की व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है। तब जाकर छात्रों का विदेश की ओर देखना बंद होगा। वे अपने देश में ही विदेश से सस्ती शिक्षा पाएंगे और उन्हें किसी संकट में पड़ने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। सरकार भी ऐसे युद्धों के समय निश्चिंत रहेगी। देश में विशेष तौर पर मेडिकल शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। सरकार सबसे पहले इन युद्धग्रस्त देशों में फंसे छात्रों को वापस लाने का प्रयास तेज करे, फिर शिक्षा का ऐसा प्रबंध किया जाए, जिससे छात्र दूसरे देश पढ़ने न जाने पाएं।
मुकेश ठाकुर, टिप्पणीकार
सरकार भारतीयों को वापस ला तो रही है
भारत से बड़ी संख्या में छात्र विदेशों में पढ़ने के लिए जाते हैं। इनके अलावा प्रवासियों की बड़ी संख्या दूसरे देशों में कमाने के लिए जाती है। लेकिन जब दो देशों के बीच युद्ध शुरू हो जाता है, तब भारतीय वहां संकट का सामना करते हैं और उनकी जान पर बन आती है। उनके परिवार चिंतित होते हैं और केंद्र सरकार से अपेक्षा करते हैं कि उनके संबंधियों को शीघ्र वापस लाया जाए। ऐसे में, विदेश मंत्रालय सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी कूटनीतिक कौशल के अलावा संकट में फंसे भारतीयों को वापस लाने की भी होती है। उन-उन देशों में भारत के दूतावास पूरी क्षमता से कार्य करते हुए भारतीयों को वापस लाते हैं। हमें अपनेे विदेश मंत्रालय पर गर्व होना चाहिए, विशेष रूप से उन सभी दूतावासों पर, जिन्होंने संकट के समय हजारों की संख्या में भारतीयों को वापस देश भेजा है। पिछले दिनों यूक्रेन-रूस युद्ध के समय भी हजारों की संख्या में छात्रों/ प्रवासियों को भारत लाया गया था, जिसमें वहां के राजदूतों और दूतावासों की बड़ी भूमिका थी। इसी प्रकार कुवैत से भी संकट काल में फंसे भारतीयों को निकाला गया था।
आज ईरान और इजरायल में हजारों की संख्या में हमारे छात्र और भारतीय मूल के लोग फंसे हुए हैं। उनके परिवार सरकार से संपर्क कर रहे हैं। बहुत से छात्रों को लाया गया है और बचे हुए को लाने की प्रक्रिया जोरों पर है। तेहरान से छात्रों को सुरक्षित ठिकानों पर लाया गया है और आने वाले दिनों में ये गतिविधियां तेज होंगी। ईरान और इजरायल से सभी भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने की जिम्मेदारी भारत का विदेश मंत्रालय एवं संबंधित दूतावास पूरी सावधानी के साथ बखूबी निभा रहे हैं। अपेक्षा है कि सरकार के संबंधित मंत्रालय मिलकर काम करते हुए इस बड़ी चुनौती का सामना कर पाएंगे और सभी भारतीयों की सकुशल वापसी सुनिश्चित कर पाएंगे।
हालांकि, इस काम में देश का बहुत धन खर्च होता है और संकट के समय व्यवस्था करना भी बहुत दुरूह कार्य हो जाता है। ऐसे में, इस पर भी सोचा जाना चाहिए कि अपने देश के नागरिकों को वापस लाने पर होने वाले खर्च का प्रबंधन किस तरह से किया जाए? यह खर्च संबंधित छात्र से लिया जाना एक विकल्प हो सकता है। क्योंकि छात्र सामान्य दिनों में आते हैं, तो अपना ही खर्च करते हैं, फिर इस विकट समय में भी वे अपना खर्च वहन करें और सरकार सुविधा उपलब्ध कराए, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। हम अपेक्षा करते हैं कि इस मिशन में सरकार और हमारी एजेंसियां कामयाब होंगी।
वीरेंद्र कुमार जाटव, टिप्पणीकार
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