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कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को हराया

  • दिल्ली चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच बमुश्किल दो प्रतिशत वोट का अंतर है, फिर सीटों का अंतर इतना ज्यादा क्यों है? यह बात समझने के लिए इस चुनाव में कांग्रेस की भूमिका पर गौर करना जरूरी है। कांग्रेस पिछले चुनाव में वेंटिलेटर पर थी…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानMon, 10 Feb 2025 11:01 PM
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कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को हराया

दिल्ली चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच बमुश्किल दो प्रतिशत वोट का अंतर है, फिर सीटों का अंतर इतना ज्यादा क्यों है? यह बात समझने के लिए इस चुनाव में कांग्रेस की भूमिका पर गौर करना जरूरी है। कांग्रेस पिछले चुनाव में वेंटिलेटर पर थी। इस बार वेंटिलेटर हटा, पर आईसीयू में अब भी है। कहा जा रहा था कि कांग्रेस दिल्ली के नतीजों पर उसी स्थिति में असर डाल पाएगी, जब कम से कम 10 फीसदी वोट ले। मगर 6.34 प्रतिशत वोट लेकर भी उसने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। वास्तव में, कांग्रेस ने सीधे-सीधे 19 सीटों के नतीजों पर असर डाला। आम आदमी पार्टी अपनी 14 सीटें कांग्रेस की वजह से हारी। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, राखी बिड़लान, महेंद्र चौधरी और दुर्गेश पाठक जैसे बड़े आप नेताओं की सीटें इनमें प्रमुख हैं। भाजपा भी पांच सीटें कांग्रेस की वजह से हारी। इनमें कालकाजी में आतिशी के खिलाफ विधूड़ी की हार भी शामिल है। कस्तूरबा नगर और बादली जैसी सीटों को छोड़कर खुद कांग्रेस ने किसी भी सीट पर बहुत ज्यादा वोट नहीं लिए, लेकिन उसका प्रदर्शन बताता है कि अपनी सुस्ती के बावजूद वोटरों के समूह के बीच पार्टी जिंदा है। वैसे, इस चुनाव में कांग्रेस के लिए कई सबक भी हैं। कांग्रेस और आप, दो ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो किसी भी हिसाब से साथ नहीं आ सकते। उनके बीच अधिकतम सहयोग उसी तरह हो सकता है, जिस तरह केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के बीच है। यह बात कांग्रेस को समझनी पड़ेगी कि विपक्षी एकता को मजबूत करने का ठेका सिर्फ उसका नहीं है। खुद को मजबूत किए बिना ‘इंडिया’ ब्लॉक की मजबूती की बातें बेमानी हैं।

राकेश कायस्थ, टिप्पणीकार

काश! मिलकर लड़े होते

केजरीवाल का अहंकार, उनका शीशमहल, मोदी की गारंटी, भाजपा की रणनीति, भगवा कार्यकर्ताओं की मेहनत, आरएसएस की भागदौड़ जैसे कई कारण प्रथम दृष्टि में आम आदमी पार्टी की हार की वजह लगते हैं, लेकिन कांग्रेस और आप का गठबंधन बनता, तो मुमकिन है कि केजरीवाल को सत्ता से बाहर न होना पड़ता। खुद केजरीवाल को उतने वोट से हार का सामना करना पड़ा, जितने वोट कांग्रेस ने काटे। कहा जा रहा है कि ऐसी 14 सीटें हैं, जिस पर आम आदमी पार्टी की हार के लिए कांग्रेस पार्टी सीधे-सीधे जिम्मेदार है। अगर ये सीटें आप के खाते में आतीं, तो उसके पास कुल 36 सीटें हो जातीं और वह फिर से सरकार बनाने में सफल हो जाती।

अरुण कुमार त्रिपाठी, टिप्पणीकार

हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना गलत

गुजरात, गोवा, हरियाणा सहित तमाम राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस को हराने में भाजपा की मदद करने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली में चुनाव क्या हारी, उसके समर्थक कांग्रेस पर आक्षेप लगाने लगे हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि कांग्रेस की वजह से दिल्ली में आम आदमी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। मगर ऐसा कहने वाले हकीकत में सच्चाई से मुंह मोड़ रहे हैं। दिल्ली में आप चुनाव हारी, तो इसका कारण आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ लोगों में फैली नाराजगी और सत्ता-विरोधी रुझान है। इसमें कांग्रेस का हाथ नहीं है, बल्कि आप नेता जनता से झूठ बोलते रहे। इसी तरह, हरियाणा में जब कांग्रेस को आप के समर्थन की जरूरत थी और भाजपा को हराने के लिए आप के साथ गठबंधन बनाने को वह तैयार थी, तब उसने अपने उम्मीदवार उतारकर चुनावी मैदान का रुख बदल दिया। समझना यह भी होगा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और सारे राज्यों में उसका एक अस्तित्व है, अपना एक वोटर है और कांग्रेस अपने वोटरों के लिए चुनाव लड़ेगी, न कि भाजपा के साथ पर्दे के पीछे हाथ मिलाने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के लिए खुद को हाशिये पर धकेल देगी। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की एक बड़ी गलती यह रही कि उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई के डर के कारण भाजपा के पक्ष में कई राज्यों में बैटिंग की, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी मजबूत हुई। हालांकि, भाजपा ने भ्रष्टाचार में घिरे आम आदमी पार्टी के नेताओं को जेल में डाल ही दिया। बहरहाल, यह चुनाव नतीजा अरविंद केजरीवाल के लिए किसी सबक से कम नहीं।

फैसल चौधरी, राजनेता

जनता हुई दूर

कुछ लोग आप की हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बता रहे हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल जिन नीतियों पर चल रहे थे, उनके प्रति अनासक्ति के कारण जनता ने उन्हें नकार दिया। हार की असली वजह तो यही है। हालांकि, आम आदमी पार्टी को करीब 43.5 फीसदी मत मिला, जबकि भाजपा का 45.5 प्रतिशत। इसका अर्थ है कि अपनी आभा खो देने की वजह से इन्होंने पार्टी को चौपट कर दिया। गंभीर नेताओं को इन्होंने पार्टी से निकाल बाहर किया। अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं का समर्थन उनके प्रति कम हुआ। शीश महल बेमतलब की बनाई गई। देखा जाए, तो केजरीवाल कभी भी विपक्ष का हिस्सा नहीं बने। वह अपना ही एजेंडा चलाते रहे।

शमीम इकबाल, टिप्पणीकार

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