चीन से हमें जरूर सबक सीखना चाहिए
- चीन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वह सिर्फ अमेरिका को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को चुनौती देने के लिए तैयार है। एक छोटी-सी चीनी कंपनी, जो केवल दो साल पुरानी है, उसने डीपसीक-आर1 नाम का एआई मॉडल बनाया है…
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चीन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वह सिर्फ अमेरिका को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को चुनौती देने के लिए तैयार है। एक छोटी-सी चीनी कंपनी, जो केवल दो साल पुरानी है, उसने डीपसीक-आर1 नाम का एआई मॉडल बनाया है। यह मॉडल पूरी तरह से एक इनोवेशन है, जो अब ओपन-सोर्स है और दुनिया के लिए मुफ्त में उपलब्ध है। डीपसीक इसलिए और हैरान कर रहा है, क्योंकि इसको सिर्फ 5.1 अरब डॉलर के बजट में तैयार किया गया है, जो अमेरिकी एआई उत्पादों के मुकाबले 100 गुना कम है। चीन ने यह सब उस वक्त किया, जब अमेरिका ने एडवांस्ड चिप और तकनीकी आपूर्ति को लेकर उस पर सख्त पाबंदियां लगा रखी हैं। आज चीन छठी पीढ़ी के फाइटर जेट, री-यूजेबल स्टारशिप, कृत्रिम सूर्य और एक ट्रिलियन डॉलर की तकनीकी अर्थव्यवस्था जैसी उपलब्धियों से समूची दुनिया को चौंका रहा है।
और भारत कहां है? जहां चीन अगले 70 वर्षों की योजना बनाने और विश्व नेता बनने की लड़ाई में जुटा है, भारत आज भी 70 साल पुरानी बहसों में फंसा हुआ है। गलवान संघर्ष, सीमा पर चीनी बांध और चीन की बढ़ती ताकत पर हमारी चुप्पी चुभती है। इसके उलट, हम चीन से अब तक का सबसे बड़ा 115 अरब डॉलर का व्यापार कर रहे हैं। स्थिति यह है कि चीन अपने शोध व अनुसंधान के कामों पर हमसे 10 गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। एक समय था, जब भारत ने परम 8000 सुपरकंप्यूटर और इसरो की उपलब्धियों से दुनिया को चौंकाया था, लेकिन अब हम मटन, मुर्गा, मुस्लिम जैसे मुद्दों में उलझे रहते हैं।
सवाल यह भी है कि हमें इससे क्या सबक लेना चाहिए? चीन ने दिखा दिया है कि जब आपके पास विजन हो, तो आप किसी भी संसाधन की कमी के बावजूद बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं। हमारी प्लानिंग और सही दिशा का अभाव साफ झलकता है। यूजीसी का बजट 61 फीसदी घटा दिया गया है, शोध एवं अनुसंधान पर खर्च नहीं के बराबर है और एक औसत चीनी नागरिक आज औसत भारतीय से पांच गुना ज्यादा अमीर है। इस सूरतेहाल में यदि भारत को विकसित राष्ट्र का सपना सच करना है, तो हुकूमतों को शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर व नवाचार जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना होगा। हमें पुराने विवादों को छोड़कर नए सपनों पर काम करना चाहिए। जहां चीन और अमेरिका इस बात की तैयारी कर रहे हैं कि अगले 70 वर्षों में दुनिया पर कौन राज करेगा? भारत को यह तय करना होगा कि इस दौड़ में वह शामिल होगा या केवल तमाशा देखता रहेगा।
पुष्कर वर्मा, टिप्पणीकार
डीपसीक पर कितना भरोसा किया जाए
चीन ने एक बेहद सस्ता और नया एआई लैंग्वेज मॉडल ‘डीपसीक-आर1’ बनाया है। हलचल अमेरिका में हुई, लेकिन कुछ लोग भारत को हीन दृष्टि से देखने लगे हैं। पूछा जा रहा है कि जब चीन ऐसा कर सकता है और इतना सस्ता एआई मॉडल बना सकता है, तो फिर भारत क्यों नहीं? बस अंतर यही है- भारत में ऐसे सवाल सार्वजनिक रूप से पूछे जा सकते हैं, चीन में नहीं। चीन ने नया बनाया क्या है? वहां वही सब बनता है, जिसका आविष्कार अमेरिका या यूरोप में हो चुका होता है। वह बस सस्ते श्रम के बूते उसी चीज को सस्ता बनाता है। तकनीक पश्चिम की, लेकिन उत्पादन चीन में। अगर अमेरिका में एआई बनने से पहले चीन दुनिया को एआई देता, तो कुछ बात होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। वास्तव में, होता यह है कि सवाल पूछते ही चीनी एआई को जुकाम हो जाता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में पूछिए, तो इसकी आलोचना वह नहीं करता। यही कारण है कि तमाम देश चीन के एआई को बेनकाब करने लगे हैं। चीन के पास इस सवाल का भी जवाब नहीं कि कोविड कहां से शुरू हुआ? विश्व स्वास्थ्य संगठन पूछते-पूछते थक गया। इसलिए, कोई हैरानी नहीं कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इससे बाहर आने का फैसला कर चुके हैं। थ्यानमन चौक पर क्या हुआ था, इसका जवाब भी वह नहीं दे सका। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चीन का क्या रिकॉर्ड है, यह पूछते ही घिग्घी बंध गई। ऐसे में, डीपसीक पर आखिर कितना भरोसा किया जाए?
अखिलेश शर्मा, टिप्पणीकार
भारत का दम
जो लोग यह सवाल कर रहे हैं कि चीन ने डीपसीक के रूप में सस्ता एआई मॉडल पेश कर दिया है और भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है, उनके लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव का बयान किसी जवाब से कम नहीं है। अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा है कि साल भर के भीतर ही भारत के पास डीपसीक से भी बेहतर एआई मॉडल होगा। इतना ही नहीं, चीनी मॉडल के विपरीत यह हर सवालों के जवाब देगा और वैश्विक स्तर पर उपलब्ध रहेगा। यह भारत की सुरक्षा, भाषा और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जा रहा है। स्पष्ट है, भारत पूरे दम-खम के साथ मैदान में है और सभी से लोहा लेने को तैयार है। हमने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। नवाचार में तो हम कई देशों से आगे हैं। ऐसे में, भारत का एआई मॉडल उपलब्ध सभी मॉडल पर बीस साबित होगा।
दीपक, टिप्पणीकार
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