बेसहारा पशुओं को सहारा
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बेसहारा पशुओं से बर्बाद होती फसलों का मुद्दा उठाया जा रहा है। देखा जाए, तो इसके लिए पशुपालक ही जिम्मेदार हैं। दुधारू रहने तक तो मवेशियों को बांधकर रखना और बेकार...
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बेसहारा पशुओं से बर्बाद होती फसलों का मुद्दा उठाया जा रहा है। देखा जाए, तो इसके लिए पशुपालक ही जिम्मेदार हैं। दुधारू रहने तक तो मवेशियों को बांधकर रखना और बेकार हो जाने पर उनको खुला छोड़ देना कभी हमारी संस्कृति नहीं रही। अगर हमारे किसान या पशुपालक मवेशियों के वृद्ध होने पर उनकी देखभाल अपने पास रखकर करते और उनको चारा-पानी देते रहते, तो शायद यह नौबत नहीं आती। इसलिए, जब तक हम स्वयं इन पशुओं की जिम्मेदारी नहीं लेंगे, किसी सरकार के चाहने पर भी यह समस्या खत्म नहीं होने वाली। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने आवारा पशुओं की देखभाल व भोजन आदि की व्यवस्था के लिए 30 रुपये प्रतिदिन की दर से भुगतान करना तय किया है, लेकिन हर किसी तक यह राशि शायद ही पहुंच रही है। ऐसे में, सरकारी तंत्र को इस पर काम करने की जरूरत है। जागरूकता से ही आवारा पशुओं को सहारा मिल सकता है।
अतिवीर जैन ‘पराग’, मेरठ
युवा क्रिकेटरों से उम्मीद
अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप में भारत की जीत एक शुभ संकेत है। पांचवीं बार भारत ने यह खिताब अपने नाम किया है। इस बार कुछ खिलाड़ियों के कोविड-19 से संक्रमित होने के बावजूद टीम का प्रदर्शन बेहद सराहनीय रहा। जिस तरह विराट कोहली, शिखर धवन, युवराज सिंह जैसे खिलाड़ी अंडर-19 से सीनियर टीम में पहुंचे और नाम कमाया, आशा है कि इस बार के भी अंडर-19 टीम के खिलाड़ी आने वाले समय में मुख्य भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होकर क्रिकेट जगत में भारत का नाम रोशन करेंगे। वर्तमान में अंडर-19 टी में राज बावा, यश धुल जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ी हैं, जिनको मौका मिले, तो वे भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दे सकते हैं। संभव है, इन खिलाड़ियों में से ही कोई आगे चलकर सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धौनी, विराट कोहली बनकर उभरे। युवा खिलाड़ियों को पर्याप्त मौका मिलना ही चाहिए।
हरि मुख मीना, कठहैडा, राजस्थान
संयमित हो भाषा
कबीरदास ने कहा है, ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे आपहु शीतल होए। मगर, आज जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल चुनाव प्रचार करते समय हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि राजनेताओं के लिए वाणी में मिठास कोई मायने नहीं रखती। नेता समाज को आईना दिखाने काम करते हैं। अगर वही अपने ऊपर संयम नहीं रखेंगे, तो समाज के अंदरखाने भी एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ शुरू हो जाएगी। अत: नेताओं को मर्यादित शब्दों में अपने विचार जनता के सामने रखना चाहिए। इससे समाज में सहिष्णुता का संदेश भी जाएगा।
नागेंद्र, मेरठ
कैंपस में रौनक
लगभग दो वर्षों के बाद स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के परिसरों में रौनक लौट आई है। करीब 32 करोड़ विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ था। कोरोना काल में शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प जरूर प्रदान किया, लेकिन यह बच्चों में कारगर साबित नहीं हो सका। फिर, देश की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रही है, जिनके पास स्मार्टफोन और लैपटॉप का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की अनुपलब्धता या उसकी स्पीड का कम होना भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी थी। अब दोनों तरह के विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाना शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इन समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षा विभाग के पास शायद ही कोई तैयारी है। फिलहाल तो सिर्फ कैंपस खुले हैं और परिसरों में रौनक लौट आई है।
हिमांशु शेखर, गया
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