ललन सिंह के मंत्रालयों की योजनाओं का बैंकों ने बिहार में कचूमर निकाला, 1285 के बदले बांटे 42 करोड़
केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के पशुपालम और मत्स्यपालन मंत्रालय की योजनाओं का बैंकों ने बिहार में कचूमर निकाल रखा है। गव्य विकास योजना में 14 परसेंट तो मत्स्य पालन में 3 मात्र फीसदी वित्तीय सहायता दी गई।
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केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के मंत्रालयों की उन योजनाओं का बिहार में बैंकों ने कचूमर निकाल रखा है जिनसे बेरोजगारों को वित्तीय सहायता मुहैया कराकर बड़ी संख्या में काम देने की सरकार ने योजना बनाई थी। ललन सिंह मत्स्य पालन, पशुपालन, डेयरी और पंचायती राज विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं। गौ पालन या गव्य विकास और मछली पालन के विकास में बैंक रत्ती भर सहयोग कर रहे हैं। मछली पालन क्षेत्र में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने को लेकर कम आवेदन मिलने का बहाना बनाया जाता है। लेकिन, जो आवेदन करते भी हैं, उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती है। 2023-24 वित्त वर्ष में मत्स्य पालन के लिए वित्तीय सहयोग देने के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले उपलब्धि 3 फीसदी है तो गव्य विकास योजना का लाभ भी 15 फीसदी लोगों को ही मिल सका।
गव्य विकास के लिए बिहार में 2023-24 में 2 लाख 19 हजार 140 आवेदकों को 5237 करोड़ ऋण के रूप में दिया जाना था। इसके लिए एक लाख 19 हजार 634 आवेदनों को मंजूरी दी गई। इन्हें 745 करोड़ रुपये मिलना था। लेकिन आवेदकों को 742 करोड़ रुपये ही मिले जो लक्ष्य का मात्र 14.17 प्रतिशत है। इसी तरह मत्स्य पालन के लिए 53,772 आवेदकों को 1285 करोड़ रुपये ऋण दिए जाने का लक्ष्य था। जबकि 7620 आवेदनों को ही मंजूरी दी गई और इनमें से भी 7614 आवेदकों को महज 41 करोड़ रुपये ही कर्ज उपलब्ध कराया गया। यह लक्ष्य का मात्र 3.21 प्रतिशत है।
यही स्थिति कृषि यांत्रिकीकरण एवं भंडारण क्षेत्र में भी है। कृषि यांत्रिकीकरण के लिए 2023-24 वित्त वर्ष में 5663 करोड़ रुपये ऋण देने का लक्ष्य था। 2,59,605 आवेदनों को मंजूरी दी गई जिन्हें 1718 करोड़ रुपये ऋण मिलना था। लेकिन 2,59,394 आवेदकों को 1672 करोड़ रुपये ही दिया गया। भंडारण क्षेत्र में 5148 करोड़ रुपये ऋण के रूप में उपलब्ध कराने का लक्ष्य था। 2085 आवेदनों को मंजूरी दी गई। 679 करोड़ रुपये ऋण देना था लेकिन 628 करोड़ रुपये दिया गया।
इससे ये साफ है कि बैंक सभी स्वीकृत आवेदकों को भी ऋण की सुविधा नहीं दे रहा है। राज्य सरकार द्वारा आपत्ति जताने के बाद भी बैंक प्रबंधन के रवैए में सुधार नहीं दिख रहा है। बैंकों को जो लक्ष्य मिला है, उसका 50 प्रतिशत से भी कम ऋण कृषि से संबंद्ध क्षेत्रों में उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे राज्य के विकास में भी बाधा पैदा हो रही है। बिहार के विकास में कृषि का योगदान 19.8 प्रतिशत है। राज्य की अर्थव्यवस्था में सिर्फ फसल का 9.9 प्रतिशत, पशुपालन का 6.6 प्रतिशत, मछली पालन का 1.8 फीसदी योगदान है।
गव्य विकास को लेकर कई योजनाएं राज्य सरकार ने बनाई है, लेकिन बैंकों से अपेक्षित सहयोग के अभाव में राज्य तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। दुग्ध उत्पादन रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। वित्त विभाग ने सभी बैंकों के साथ बैठक में भी यह सवाल उठाया है कि बिहार में खेती-किसानी अधिक होती है, लेकिन दूध उत्पादन में गुजरात आगे है। हालांकि, मछली पालन के क्षेत्र में बिहार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है लेकिन बैंकों की भूमिका इसमें नगण्य है।