बोले सीवान : कोल्ड स्टारेज की सुविधा हो तो बढ़ेगी प्याज उत्पादक किसानों की आमदनी
सीवान जिले में आलू और प्याज की खेती में किसानों का रुझान बढ़ा है। रबी प्याज की खेती से किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं। हालांकि, बिचौलियों के कारण किसानों को उचित लाभ नहीं मिल रहा है। महंगी बीज और खाद की...
सीवान जिले में आलू और प्याज की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। हाल के वर्षों में आलू की अगात बुआई कर उसकी कटाई के बाद भी प्याज की खेती का चलन बढ़ा है। आसपास के दर्जनों गांवों के किसान रबी प्याज की खेती से आत्मनिर्भर बन अपनी आमदनी में खासी बढ़ोतरी कर रहे हैं। किसानों की मानें तो इस बार कई गांवों के खेतों में प्याज की खेती हुई है। इस वर्ष प्याज की फसल से प्रति बीघे अच्छी आमदनी हो रही है। लगभग पांच सौ बीघे में प्याज की फसल की बुआई हुई थी। उपयुक्त देखरेख और जलवायु में प्याज की उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। हालांकि जिस भाव में प्याज आम लोगों को खरीदना पड़ रहा है, वह भाव सीधे प्याज उत्पादकों को न मिलकर बिचौलियों को मिल रहा है। किसानों को इसी बात का दुःख है। उनका कहना है कि वे तीन माह तक मेहनत कर फसल उपजाते हैं और बिचौलिये पल भर में लगभग उतना ही मुनाफा कमा लेते हैं। यदि सरकार की ओर से आलू-प्याज जैसी फसलों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हो और बाजार सहजता से उपलब्ध हो तो उदन्हें भरपूर मुनाफा हो सकता है।
बीज, दवा व खाद महंगी होने से लागत बढ़ी: पट्टे पर लिये गये खेतों में आलू और प्याज की खेती से लंबे समय तक जुड़े रहे किसान बताते हैं कि किसानों के लिए बीज, खाद, दवा आदि की सुविधा सरकारी स्तर पर नहीं है। ऐसे में खेती के लिए आवश्यक खाद व कीटनाशक निजी दुकानों से खरीदना पड़ता है। सरकारी सुविधाओं के अभाव का फायदा निजी दुकानदार उठाते हैं। डीएपी और यूरिया कीमत से अधिक दाम पर खरीद करना किसानों की नियति बन गई है। किसानों ने बताया कि जमीन का उचित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जाने से क्रेडिट कार्ड का लाभ भी सभी किसानों को नहीं मिल पाता। फसल बीमा में भी सरकारी मदद नहीं मिल पाती। पट्टेदारी भूमि पर किसानों को नगदी खेती के लिए ऋण उपलब्धता में परेशानी होती है।
किसानों की मेहनत पर बिचौलिये काट रहे मुनाफे की फसल
युवा किसानों ने बताया कि खेतों में तीन महीने तक मेहनत करने वाले किसानों के बराबर ही बिचौलिए पल भर में मुनाफे की फसल काट ले रहे हैं। किसानों ने बताया कि अक्सर बड़ी कमाई भी होती है तो कभी बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ता है। खेतों से निकालने के बाद बारिश व ओला पड़ने के कारण पूरी फसल नष्ट हो सकती है। किसानों ने बताया कि नगदी फसल को खेतों में ही बेचना उनकी मजबूरी है, जहां व्यापारियों की मनमानी से आलू और प्याज की खरीदारी की जाती है। किसानों ने बताया कि खेतों में से व्यापारी महज 1100 रुपए प्रति क्विंटल खरीदारी कर रहे हैं, जबकि खुदरा बाजार में प्याज की कीमत 2000 रुपए रुपये प्रति क्विंटल है।
दो बार रबी और खरीफ में प्याज की होती है खेती
बुजुर्ग किसानों ने बताया कि जिले में प्याज की खेती साल में दो बार होती है। गर्मी में खरीफ प्याज की खेती जुलाई से मध्य अगस्त के बीच की जाती है, जबकि ठंडे मौसम में रबी प्याज की खेती अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। किसानों की मानें तो अक्टूबर से नवंबर के बीच प्याज की बुआई अधिक प्रचलित है। नवंबर माह के अंत में इसका बिचड़ा डाला जाता है, जबकि एक महीने बाद दिसंबर के अंत में रोपाई की जाती है। मार्च के अंत और अप्रैल के शुरू में फसल पक कर तैयार हो जाती है। प्याज की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने पांच बीघे जमीन पर प्याज की खेती की है। जिसमें 25 से 30 हजार रुपये का खर्च आया है।
प्याज स्टॉक के लिए घरों में बने गोदाम, कोल्ड स्टोरेज का है अभाव
प्याज नगदी फसल तो है ही। कई किसान बढ़ती कीमतों के मद्देनजर अपने घरों, से लेकर खेतों तक में बड़े-बड़े गोदाम बना दिए हैं। यहां ऊंची बनी छतों या गोदामों में चार से पांच मंजिला बांस के बल्लों से स्टैंड बना कर उसी के ऊपर प्याज बिछाया जाता है। चिलचिलाती गर्मी व तेज लू में भी प्याज की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बीच-बीच में कुछ महिला मजदूर बांस से बने मचान पर जाकर प्याज को उलट-पुलट कर देती हैं, जिससे लाल प्याज की चमक बरकरार रहती है और बाद में ऊंची कीमत मिलती है। स्थानीय किसानों ने बताया कि प्याज को बोरे में भरकर रख देने पर भी चार से पांच महीने तक सड़ता नहीं है। इसकी फसल महज तीन महीने में तैयार हो जाती है। आकर्षक रंग व स्वाद के कारण बाजार में हाथों हाथ बिक जाता है। किसानों ने बताया कि इन दिनों प्याज की फसल पककर तैयार है। नतीजतन व्यापारी खेतों में पहुंच प्याज खरीद कर ले जाते हैं और जिले के थोक व खुदरा मंडियों में बेचते हैं। हालांकि सरकारी स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था नहीं है। यदि इसकी व्यवस्था बेहतर हो तो किसान अपना उत्पाद रख सकते हैं और बाद में भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं। प्राइवेट कोल्ड स्टोरेज में कभी-कभी प्याज सड़ जाने की शिकायतें भी मिलती रही हैं।
पहले थी सरकारी नलकूप की सुविधा, जिससे सिंचाई में आता था कम खर्चः
जिले के कई प्रखंडों में आलू व प्याज की सबसे ज्यादा खेती होती है। किसान बताते हैं कि इलाके में सरकारी बोरिंग से पटवन होती थी, जिसमें कम खर्च में फसल उगाई जाती थी। सैकड़ों एकड़ भूमि पर प्याज की खेती होने की बात बताते हुए किसानों ने कहा कि प्याज की फसल तैयार होने में तीन महीने का समय लगता है।
शिकायतें -
1. जिले में लगे सरकारी बोरिंग को चालू नहीं किए जाने से हजारों एकड़ की पैदावार हो रही प्रभावित
2. व्यापारियों की मनमानी से आलू-प्याज की कीमत का उचित लाभ नहीं मिल पाता
3. सभी किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ नहीं मिलने से खेती में परेशानी होती है
4. स्थानीय बाजारों में अंकित मूल्य से अधिक कीगत पर खाद-बीज खरीदने की मजबूरी
5. किसानों को रियायती बिजली दर देने की कोई व्यवस्था नहीं, जिससे बिजली बिल अधिक देना पड़ रहा
सुझाव
1. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान में लगाई गई बोरिंग को फिर से चालू कराए जाने की दिशा में प्रयास होना चाहिए
2. धान व गेहू की तरह सरकार आलू और प्याज का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे तो किसान होंगे खुशहाल
3. वंशावली के आधार पर किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ मिले, तो कृषि क्षेत्र में प्रगति दिखेगी
4. बाजार में खाद की कालाबाजारी रोकने की कवायद की जाए और इसे सरकारी स्तर पर उपलब्ध कराया जाए
5. आलू और प्याज की बुआई करते किसानों को खेती के लिए बिजली बिल में छूट की सुविधा मिले
हमारी भी सुनिए
01. किसान अपने ही खेत में मजदूर बने हुए हैं। कभी कमाई होती है, तो कभी नुकसान उठाना पड़ता है। मंडी ने व्यापारियों की मनमानी चलती है। अन्य खाद्यनों की तर्ज पर आलू-प्याज जैसे नगदी फसल का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होना चाहिए।
- जगलाल राय।
02. स्थानीय किसान हो या पट्टे पर खेत लेकर बुआई करने वाले किसान हो, सभी मंहगी खाद व बीज से परेशान है। जिले में मिट्टी जांच की न कोई व्यवस्था नहीं है, इससे यूरिया का प्रयोग बढ़ता जा रहा है।
- सचिन कुमार।
03. मिट्टी कटाई के कारण सड़कों के किनारे लंबी दूरी तक खेत में फसल बर्बाद हो रही है। अनाज की बाली और पेड़ों के मंजर पर धूल जमने से फसल चौपट हो रही है। इस पर सरकार को कोई चिंता है।
- हंसनाथ साह।
04. खेती के लिए आवश्यक खाद व कीटनाशक निजी दुकानों से खरीदना पड़ता है। सरकारी सुविधाओं के अभाव का फायदा निजी दुकानदार उठाते हैं।
- राजधारी प्रसाद।
05. हालांकि सरकारी स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था नहीं है। यदि इसकी व्यवस्था बेहतर हो तो किसान अपना उत्पाद रख सकते हैं और बाद में भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं।
- रोहित कुमार।
06. प्याज के कारोबार में किसानों को कम व व्यापारियों को ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। मौसम की मार से इसके सूखने का काम चालू हो जाता है। जिससे किसान विचौलियों द्वारा जारी दर पर बेचने को मजबूर है।
- पप्पू राम
07. खेती के लिए अवश्यक खाद व कीटनाशक महंगा होता जा रहा है। निजी दुकानों पर सरकार व प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। दुकानदार मनमानी करते हैं और बोरे पर अंकित मूल्य से अधिक कीमत वसूलते हैं।
- आनंद यादव।
08. किसानों की आवाज बनकर की नहीं आता। प्याज उत्पादक किसानों को उनकी जरुरत के हिसाब से साधन उपलब्ध कराना चाहिए। इससे खेती जिले में विकास हो पाएगा।
- अरुण यादव।
09. आलू-प्याज की खेती कमोवेश पूरे गांव के दर्जनों किसान अपनी जमीन में प्याज की खेती कर रहे हैं। खेती से जुड़ी हर चीज महंगी हो गई है। खाद सरकारी स्तर पर उपलब्ध नहीं होती है।
भोला यादव।
10. सरकारी स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था नहीं है।साथ ही सिंचाई की समस्या गंभीर होती जा रही है। किसान पटवन के लिए निजी बोरिंग पर ही निर्भर रहते हैं।
- मोहन प्रसाद।
11. खेत में जितनी दर पर व्यापारी खरीद करते हैं, उससे दोगुना से वसूली जाती है। तीन महीने में किसानों को खेतों से जितनी आमदनी नहीं होती, उतनी बिचौलिए बाजार में बेचकर कमाते हैं।
- खेदन यादव।
12. आलू और प्याज जैसी नगदी फसल इस इलाके में ज्यादा भूमि पर लगाई जाती है। किसान सिंचाई के लिए बिजली व डीजल पर निर्भर है। खेती के लिए बिजली की कीमत घटाने की जरूरत है।
- विकास कुमार।
13. खेती के लिए पूंजी का भी अभाव हो जाता है। किसानों और पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को भी आधार कार्ड या अन्य वैकल्पिक दस्तावेज के आधार पर बैंक ऋण की सुविधा मिलनी चाहिए।
- रशीद अहमद।
14. ऊंची लागत के कारण अब कई किसानों ने प्याज की खेती छोड़ दी है। छोटे किसान अपनी नई पीढ़ी को इस पेशे में नहीं लाना चाहते हैं। पढ़े-लिखे युवा अब खेती के अलावा आमदनी का कोई दूसरा माध्यम तलाश कर रहे हैं।
- सुराज कुमार
15. प्याज हर भारतीय रसोई का अभिन्न हिस्सा है। आलू-प्याज के बगैर रसोई अधूरी है, पर इसकी खेती करने वाले केसान संक्ट में है। खेती के लिए उर्वरक की बढ़ती कीमते किसानों के सामने मुश्किले खड़ी करती है।
- अभिषेक कुमार।
16. प्याज की फसल अधिक हो या कम्, अलबता दोनों ही सूरत में नुकसान किसानों का ही होता है। पैदावार अधिक हुई तो फसल की कीमत गिर जाती है, जबकि कम उपज में खेती का खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है।
- नागेंद्र यादव।
17. नगदी फसल की खेती करने वाले किसान विचौलियों से परेशान है। बिचौलिये किसानों से कम कीमत पर आलू और प्याज खरीदते हैं पर बाजार में महंगी दर पर बेकते है। खरीददार तो ज्यादा पैसे खर्च करते है पर इसका जयदा किसानों की नहीं होता है।
- अमरजीत यादव।
18. भंडारण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से व्यापारियों की ओर से मनमानी की जाती है। सभी किसानों के पास अपनी फसल के भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है। कम कीमत पर ही फसल बेचनी पड़ती है।
- संजीव कुमार।
19. शहर के बाजारों में भले ही सप्याज की ऊंची कीमत आम उपभोक्ता वहन करते हैं, पर इसका फायदा छोटे किसानों या उत्पादकों को नहीं होता है। किसानों की मेहनत पर बिचौलिये मुनाफे की फसल आसानी से काट लेते हैं।
- गौतम पांडेय।
20. बिचौलिए पल भर में किसानों के मुनाफे की फसल काट ले रहे हैं। इसलिए छोटे किसानों और पट्टेदारों को किसान क्रेडिट कार्ड तत्काल नही मिलता है। कोई नियम बनाकर ज्यादा से ज्यादा किसानों को केनीसी की सुविधा दी जानी चाहिए।
-सुरेंद्र पांडेय
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