व्याख्यानमाला में न्याय दर्शन में मिथिला की अग्रणी भूमिका पर चर्चा
भारती मंडन व्याख्यानमाला के तहत उग्रतारा भारती मंडन संस्कृत कालेज में एक व्याख्यान हुआ। डॉ. मुनीश कुमार मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में न्याय दर्शन का विशेष महत्व है। काशी में न्याय दर्शन के...
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महिषी, एक संवाददाता। भारती मंडन व्याख्यानमाला के तहत उग्रतारा भारती मंडन संस्कृत कालेज के सभागार में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यानकर्ता भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला में काशी की न्याय परंपरा विषय पर अनुसंधान कर रहे डॉ. मुनीश कुमार मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में न्याय दर्शन का विशेष स्थान है। महर्षि गौतम प्रणीत न्याय दर्शन की उत्पत्ति का स्थान यद्यपि मिथिला रहा किंतु वैश्विक स्तर पर इसका प्रसार गौतम के काशी जाने के उपरांत ही हुआ। काशी में न्याय दर्शन परंपरा को समृद्ध करने में मिथिला के न्याय दर्शन के आचार्यों का अमूल्य योगदान है, जिनकी एक वृहद श्रृंखला काशी में विद्यमान रही है। इनमें से महर्षि गौतम, आचार्य उदयन, शंकर मिश्र, शुभंकर मिश्र, बच्चाजी, बालकृष्ण मिश्र, गंगानाथ झा, रुद्रधर झा समेत अनेकों विद्वानों ने काशी के माध्यम से ही अपनी ख्याति प्राप्त की।
यहां तक कि एक सामान्य सर्वेक्षण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सात सौ पंडितों में पांच सौ के लगभग विद्वान तो मिथिला के ही रहे है। काशी की न्याय परंपरा के प्रसार में इन शताधिक मैथिल नैयायिकों के योगदान को कभी नकारा नहीं जा सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ. नंदकिशोर चौधरी ने कहा कि वास्तव में काशी की धरती विद्वानों की जन्मदात्री नहीं रही है अपितु मिथिला, बंगाल या फिर महाराष्ट्र के विद्वान अपने क्षेत्रों से पढ़ कर प्रतिष्ठा प्राप्ति के लिए काशी जाते थे। पश्चात वहां प्राप्त होनेवाले सम्मान एवं अर्थ लाभ के वशीभूत हो वहां रह भी जाते थे। वास्तव में मिथिला से काशी गए हुए पंडितों ने मैथिल शिक्षण पद्धति एवं तात्विक चीजों का कितना अधिक प्रसार किया। यह विषय अनुसंधान की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक व संचालक डॉ. प्रभा नन्दा, डॉ. आशीष कुमार, डॉ. चंद्रेश उपाध्याय, डॉ. आनंद दत्त झा, डॉ. निक्की प्रियदर्शिनी, डॉ. महावीर झा सहित छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
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