बोले पटना : फिजियोथेरेपिस्ट किसे बताएं दर्द नौकरी की किल्लत, कमाई भी कम
फिजियोथेरापिस्ट बिना सर्जरी के दर्द प्रबंधन और चोटों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन सरकारी नौकरी की कमी और कम वेतन के कारण वे संघर्ष कर रहे हैं। फिजियोथेरेपी की डिग्री के बावजूद,...
फिजियोथेरापिस्ट किसी सर्जरी के बगैर भौतिक चिकित्सा के माध्यम से दर्द प्रबंधन और चोट या दर्द का इलाज करते हैं। जीवन शैली में आए बदलाव और दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी की वजह से इनकी भूमिका पहले की अपेक्षा बढ़ी है। मरीजों का दर्द दूर करने वाले फिजियोथेरेपिस्ट खुद कई तकलीफ से गुजर रहे हैं। उन्हें लंबे समय से सरकारी नियुक्ति की उम्मीद है। निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में काम का दबाव रहता है, लेकिन वेतन उसके मुकाबले कम मिलता है। किसी दुर्घटना के कारण चोट लगने, मेडिकल सर्जरी के बाद शारीरिक क्षमता को सामान्य बनाने या खेल-कूद के दौरान चोट लगने की स्थिति में फिजियोथेरेपिस्ट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शारीरिक कार्य को प्रभावित करने वाली कई स्थितियों के आकलन, निदान और उपचार में उन्हें विशेषज्ञता हासिल रहती है। दवाओं या सर्जरी के माध्यम से उपचार करने वाले डॉक्टरों के समानांतर फिजियोथेरेपिस्ट भी अपने विशेष कौशल और तकनीकों के माध्यम से उपचार में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करते हैं। इसके बावजूद उन्हें चिकित्सकों से कमतर आंका जाता है।
सरकारी स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में होने वाली नियुक्तियों में फिजियोथेरेपिस्ट का हिस्सा बेहद कम है। नियमित तौर पर बहाली नहीं होने से डिग्रीधारियों की एक बड़ी संख्या बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश है। सरकारी और निजी कॉलेजों से वर्ष बड़ी संख्या फिजियोथेरेपिस्ट की नई पौध अपने उज्जवल भविष्य की उम्मीद लिये मैदान में उतर रही है। उनमें से जो आर्थिक रूप से मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैं, वे खुद का निजी क्लीनिक स्थापित करते हैं। लेकिन अधिकतर सरकारी नौकरी की आस में निजी अस्पतालों या निजी नर्सिंग होम में सेवा देते हैं। हालांकि उन पर काम का जितना दबाव होता है और इस पेशे में जितना श्रम लगता है, उसके मुताबिक वेतन नहीं मिलता है। निजी संस्थानों से फिजियोथेरेपिस्ट डिग्री हासिल करने में 10-15 लाख रुपये का खर्च आता है।
जब से डिग्री हासिल की, संघर्ष ही कर रहे: साल 2013 में भौतिक चिकित्सा से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. बन्दना कुमारी बताती हैं कि जबसे डिग्री प्राप्त किया है तभी से संघर्ष ही कर रहे हैं। डिग्री लेने के बाद पता चला कि दशकों से फिजियोथेरेपिस्ट की सरकारी बहाली नहीं निकली है। लंबे संघर्ष के पश्चात जब निजी क्षेत्र में पहली नौकरी मिली तो वेतन का स्तर देखकर काफी मायूसी हुई। उस समय ऐसा लगा कि कहीं ये कोर्स कर कोई गलती तो नहीं हो गई। बन्दना निराशा के साथ बताती हैं कि इस क्षेत्र में जितनी मेहनत है उसकी तुलना में रिटर्न नहीं मिलता है। साथ ही, चिकित्सकों के मुकाबले फिजियोथेरेपिस्ट के साथ भेदभाव भी किया जाता है। इस कारण मानसिक उत्पीड़न का शिकार होने लगे। 2020 में लगभग दो दशक बाद बिहार में फिजियोथेरेपी की सरकारी बहाली निकली तो कोशिश की। पता चला कि इसकी प्रतीक्षा में हमसे बड़े-बड़े दिग्गज बैठे हैं। तब समझ आया कि भौतिक चिकित्सा के क्षेत्र में अच्छे भविष्य के लिये मास्टर डिग्री भी जरूरी है लेकिन ये काम भी आसान नहीं था। जब फिजियोथेरेपी में मास्टर डिग्री प्राप्त करने की सोची तो पता चला कि बिहार में इसके लिए संस्थान का अभाव है। फिर देहरादून जाकर लाखों रुपये खर्च कर 2022 में पीजी की डिग्री भी हासिल की लेकिन यहां आकर नतीजा सिफर ही रहा। वन्दना फिलहाल एक कॉलेज में फिजियोथेरेपी के विद्यार्थियों को शिक्षा देने का काम कर रहे हैं।
सरकारी नौकरी मिली नहीं निजी से गुजारा मुश्किल
बीते 27 वर्षों से फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में सक्रिय डॉ. अवधेश कुमार सोनी अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि फिजियोथेरेपी के पेशे की परिस्थिति काफी बदल चुकी है। याद करते हैं कि 90 के अंत और 2,000 के शुरुआती दशक में फिजियोथेरेपिस्ट की संख्या काफी कम थी, जिससे उनके क्लिनिक में मरीजों की भरमार रहती थी। उस समय नौकरी का ख्याल बिल्कुल नहीं आया। धीरे-धीरे हालात बदलने लगे और भौतिक चिकित्सकों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। इस दौरान सरकारी बहाली नहीं निकली तो दिक्कतों में इजाफा होता चला गया। जब नौकरी करने की सोची तो वो भी नहीं मिली। नौकरी नहीं मिली तो पढ़ाना शुरू कर दिया। आज स्थिति है कि सरकारी नौकरी मिल नहीं रही, क्लिनिक चल नहीं रहा और प्राईवेट नौकरी से गुजारा हो नहीं रहा है। ऐसे हालात से निपटने के लिए स्वतंत्र रूप से फिजियोथेरेपी काउंसिल की स्थापना होनी चाहिये ताकि इसकी शिक्षा और चिकित्सा की स्थिति में सुधार हो सके।
शिकायतें
1. फिजियोथेरापी की डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी की गारंटी नहीं रहती है।
2. कोई नियामक संस्था न होने से गैर डिग्रीधारक भी क्लिनिक खोल रहे हैं।
3. निजी अस्पताल और क्लीनिकों में परिश्रम के अनुसार मेहनताना नहीं मिलता है।
4. फिजियोथेरेपी में पीजी कोर्स के लिए बिहार में एक भी सरकारी कॉलेज नहीं है।
5. फिजियोथेरेपिस्ट का पेशा असंगठित होने से रोजगार चिकित्सकों के भरोसे चलता है।
सुझाव
1. फिजियोथेरेपिस्ट के लिए सरकारी अस्पतालों में नियमित तौर पर नियुक्ति की व्यवस्था हो।
2. भौतिक चिकित्सकों के लिए निजी अस्पतालों में भी न्यूनतम वेतन तय होना चाहिए।
3. फिजिथेरेपी में पीजी कोर्स के लिये बिहार में सरकारी कॉलेज और संस्थान की स्थापना होनी चाहिए।
4. फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में गैर डिग्रीधारकों की घुसपैठ पर रोक के लिए कोई नियामक संस्था बनाया जाये।
5. जागरूकता अभियान चलाया जाये, ताकि मरीज सीधे भी फिजियोथेरेपिस्ट के पास आएं।
इनकी भी सुनिए
फिजियोथेरेपी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त किया है। बाल चिकित्सा में विशेषज्ञता प्राप्त है। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या नियमित सरकारी बहाली नहीं आने से है। फिलहाल फिजियोथेरेपी का पाठ्यक्रम संचालित करने वाले एक निजी कॉलेज में लेक्चरर के पद पर कार्यरत हूं।
-डॉ. झा निधी भागवती
फिजियोथेरेपिस्ट अपने काम को लेकर भी मजबूती के साथ खड़े नहीं हो पा रहे हैं। मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर अपने मुताबिक फिजियोथेरेपी की सलाह भी लिख देते हैं। इसमें विशेषज्ञता हमारी है तो उपचार का तरीका भी हम लोगों को ही तय करना चाहिये।
-डॉ. निधी रानी
फिजियोथेरेपी के पेशे में आने वाले नये भौतिक चिकित्सकों को अधिक समस्या होती है। नियमित बहाली नहीं होने से उन्हें निजी संस्थानों की तरफ जाना पड़ता है। यहां अधिकांश संविदा पर काम करने के कारण वेतन काफी कम मिलता है।
-डॉ. स्वाति कुमारी
भौतिक चिकित्सा के क्षेत्र में मरीजों के बीच जागरूकता की काफी कमी है। अधिकांश लोगों को फिजियोथेरेपी के महत्व का सही तरीके से ज्ञान नहीं है। इस कारण इस पेश से जुड़े लोगों को काम मिलने में परेशानी होती है। यही कारण है कि नए लोग इसमें कम जुड़ रहे हैं।
-डॉ. अभिषेक दीप
साल 2020 में फिजियोथेरेपी में मास्टर डिग्री प्राप्त की। सरकारी क्षेत्र में फिजियोथेरेपिस्ट की बहाली का सबसे बड़ा संकट है। साल दर साल फिजियोथेरेपिस्ट की संख्या बढ़ रही है, जिसका फायदा प्राइवेट अस्पताल संचालक उठाते हैं। मनमाने तौर पर वेतन तय किया जाता है।
-डॉ. रवि किशोर सिंह
डिग्री लेने के बाद पता चला कि दशकों से फिजियोथेरेपिस्ट की सरकारी बहाली नहीं निकली है। लंबे संघर्ष के पश्चात जब निजी क्षेत्र में पहली नौकरी मिली तो वेतन का स्तर देखकर काफी मायूसी हुई। उस समय ऐसा लगा कि कहीं ये कोर्स कर कोई गलती तो नहीं हो गई।
- डॉ. वन्दना कुमारी
वर्तमान में फिजियोथेरेपी के लिये सरकारी स्तर पर केवल स्नातक की सुविधा उपलब्ध है। पीजी कोर्स शुरू करने के लिए सरकारी स्तर पर फैसला होना है। इसमें विश्वविद्यालय की कोई भूमिका नहीं है। जब सरकार के स्तर पर ये निर्णय ले लिया जायेगा तब विश्वविद्यालय अपने स्तर पर निबंधन से लेकर नामांकन आदि की प्रक्रिया शुरु करेगा
- बिमलेश झा, रजिस्ट्रार, बिहार यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस
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