बोले पटना : लाइब्रेरी साइंस डिग्रीधारियों को 16 वर्षों से बहाली का इंतजार
पटना। पुस्तकालय में पाठकों को जरूरत के मुताबिक पुस्तकों और शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराने में लाइब्रेरियन या पुस्तकालयाध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
पुस्तकालय में पाठकों को जरूरत के मुताबिक पुस्तकों और शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराने में लाइब्रेरियन या पुस्तकालयाध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिहार में 2008 में पुस्तकालय नियमावली तो लागू हुई पर बीते 16 वर्षों से लाइब्रेरियन की बहाली नहीं हुई है। हालांकि कॉलेजों में पुस्तकालय विज्ञान की पढ़ाई नियमित रूप से करायी जा रही है। राज्य में डिग्री या डिप्लोमा की योग्यता वाले बड़ी संख्या में अभ्यर्थी सरकारी नौकरी की राह देख रहे हैं। उनका कहना है कि पुस्तकालयों के सुचारू संचालन के लिए लाइब्रेरियन की नियुक्ति की जानी चाहिए। इससे हजारों बेरोजगार अभ्यर्थियों को रोजगार भी मिलेगा। पुस्तकालय न केवल ज्ञान का विस्तार करने में मददगार होता है, बल्कि पढ़ने की आदत भी विकसित करता है। यह उन विद्यार्थियों के लिए अहम स्थान होता है, जो किसी विषय का गहन अध्ययन करने या शोध की इच्छा रखते हैं। संसाधन संपन्न वर्ग के लोग तो अपनी जरूरत की पुस्तकों को खरीद लेते हैं। लेकिन जो इसकी क्षमता नहीं रखते, उनके लिए पुस्तकालय सहारा बनता है। यहां विषय विशेष या जरूरत की पुस्तकें या सामग्री उपलब्ध रहती हैं। पुस्तकालय में विद्यार्थी या जिज्ञासु को उनकी आवश्यकता की सामग्री या पुस्तक का चयन करने, उन्हें ढूंढ़ने और उपयोग में आसान बनाने के लिए व्यवस्थित करने की जिम्मेवारी लाइब्रेरियन (पुस्तकालयाध्यक्ष) की होती है। पुस्तकालयों के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित लाइब्रेरियन एवं सहायक होते हैं, जो किताबों को सुरक्षित एवं कतारबद्ध करते हैं, ताकि जरूरतमंदों को ये ससमय उपलब्ध कराया जा सके। बिहार में 2008 के बाद से सरकारी स्तर पर लाइब्रेरियन की बहाली नहीं हुई है। एक तरफ बड़ी संख्या में लाइब्रेरियन के पद खाली हैं तो दूसरी तरफ लाइब्रेरी साइंस पाठ्यक्रम की पढ़ाई पूरी कर चुके हजारों अभ्यर्थी सरकारी नियुक्ति की राह देख रहे हैं। उनमें से कुछ की आयु भी सरकारी नौकरी की निर्धारित सीमा के करीब पहुंच चुकी है।
मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस (सूचना विज्ञान में स्नातकोत्तर) में डिग्री प्राप्त कर चुकी नेहा कुमारी उन अभ्यर्थियों में से एक हैं जिन्हें नौकरी की तलाश है। वह बताती हैं कि साल 2022 में लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस में डिग्री प्राप्त करने के बाद से बहाली की प्रतीक्षा में ही दिन गुजर रहे हैं। उन्होंने इसी क्षेत्र में कैरियर का लक्ष्य लेकर पढ़ाई की है। नेहा कुमारी हैरत जताते हुए कहती हैं कि विश्वविद्यालय नियमित रूप से लाइब्रेरियन के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चला रहे हैं लेकिन इसके वाद कहीं नौकरी का अवसर नहीं दिखता है। वह अनुमान के आधार पर दावा करती हैं कि लाइब्रेरियन साइंस की डिग्री हासिल कर चुके विद्यार्थियों की संख्या पांच लाख से अधिक है। अगर नौकरी नहीं देनी है तो फिर इस पाठयक्रम में नामांकन का क्या औचित्य है? यदि समाज को ज्ञानवान बनाना है तो इसमें पुस्तकालयों को न केवल जिंदा रखना होगा, बल्कि इनकी संख्या भी बढ़ानी होगी। पुस्तकालयों का संचालन सुचारू रूप से तभी संभव होगा जब पेशेवर लाइब्रेरियन या पुस्कालयाध्यक्ष और सहायक लाइब्रेरियन हों।
पाठ्यक्रम चल रहे पर स्थायी शिक्षक नहीं : 2016-17 में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रामलखन सिंह यादव कॉलेज, बख्तियारपुर से लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस में डिग्री प्राप्त कर चुके आलोक कुमार कहते हैं कि सभी विश्वविद्यालयों में बी.लिस (बैचलर ऑफ लाइब्रेरी साइंस) और एम.लिस (मास्टर इन लाइब्रेरी साइंस) का पाठ्यक्रम कराया जाता है। लेकिन कहीं भी पढ़ाने के लिए स्थायी शिक्षक नहीं हैं। अस्थायी और अतिथि शिक्षकों के भरोसे पाठयक्रम संचालित हो रहा है। एक तरह से यूनिवर्सिटी केवल डिग्रियां बांट रहा है। विश्वविद्यालयों में दशकों से लाइब्रेरियन की बहाली नहीं हुई है। हमारे जैसे लोग कोर्स पूरा कर बहाली की प्रतीक्षा में हैं। फिलहाल कॉलेजों में अस्थायी रूप से पढ़ाते हैं। सप्ताह में चार-पांच क्लास ही उपलब्ध होते हैं। एक क्लास के लिए 500-600 रुपये का प्रावधान है, लेकिन 200-300 रु. ही मिलते हैं। अगर 500-600 रु. मिलता है तो क्लासेज कम मिलती है। कभी-कभी पूरी महीने भर कहीं भी क्लास नहीं मिलता तो आर्थिक दिक्कत होती है। हर वर्ष डिग्री और डिप्लोमाधारी अभ्यर्थियों की एक पूरी जमात तैयार हो रही है।
2016 में पीयू से लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले लोकेश कुमार सिंह कहते हैं कि पुस्तकालय खोले जा रहे हैं लेकिन लाइब्रेरियन की बहाली नहीं हो रही है। ऐसे में पुस्तकालय खोलने का क्या लाभ है। ये तो आत्माविहीन होने जैसा है। लोकेश बताते हैं कि बिहार में वर्तमान समय में सरकारी संस्थानों से डिग्री प्राप्त लगभग पांच लाख लाइब्रेरियन हैं, जबकि निजी संस्थानों से ये कोर्स करने वालों की तादाद भी कमोबेश इतनी ही है। 2012 में राज्य सरकार ने लाइब्रेरियन के 3,300 पद रिक्त होने की बात कही थी। इसके अलावा वर्तमान समय में प्रत्येक पंचायत में उच्च माध्यमिक विद्यालय खोले गये हैं, जहां लाइब्रेरियन को छोड़कर बाकी तमाम पदों पर नियुक्ति की गयी है। लोकेश कहते हैं कि लगभग 7500 पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय की इमारत बनी है। अगर सभी में एक लाइब्रेरियन और सहायक लाइब्रेरियन की बहाली की जाती है तो ये आंकड़ा 15,000 होता है। शिक्षा व्यवस्था में पुस्तकालय एक महत्वपूर्ण कड़ी है। बच्चों में शुरुआत से ही अध्ययन के प्रति लगाव रहेगा तो भविष्य में उन्हें आगे बढ़ने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
साल 2008 के बाद से बिहार में माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं सभी शिक्षण संस्थानों में लाइब्रेरियन की बहाली नहीं हुई है, जबकि लाइब्रेरी साइंस की डिग्री लेने वाले छात्रों की संख्या पूरे बिहार में 5 लाख से अधिक हो चुकी है। अधिकतर छात्रों की आयु सरकारी नौकरी के लिहाज से पूरा होने के कगार पर है। वर्ष 2008 में पुस्तकालय नियमावली लागू किया गया परन्तु विगत 16 वर्षों से इस क्षेत्र में कोई बहाली नही होने से आज प्रशिक्षित बी.लिस और एम.लिस के लाखों छात्र बेरोजगारी की मार झेल रहे है। बिहार में कुल 9,360 माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय है जहां अभी तक लाईब्रेरियन पद का सृजित नहीं है। पुस्तकालय नियमावली के अनुसार प्रत्येक माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष एवं कनीय पुस्तकालयाध्यक्ष का होना आवश्यक है। बिहार के सभी इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक और मेडिकल कॉलेजों के साथ सभी स्तर के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्षों और सहायकों के 90 प्रतिशत से अधिक स्थान रिक्त है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। इससे प्रदेश में शिक्षा की रफ्तार बढ़ेगी और बिहार के हजारों लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा।
-विकास चंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार ट्रेंड लाइब्रेरियन वेलफेयर फाउंडेशन
शिकायतें
1. 16 वर्षों से लाइब्रेरियन की बहाली नहीं होने से कोर्स करने वाले हताश हैं
2. सभी विद्यालयों में न लाइब्रेरी है और न ही लाइब्रेरियन
3. लाइब्रेरियन का कोर्स नियमित है, लेकिन बहाली वर्षों से नहीं हो रही है
4. बिहार के केवल एक यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरी एंड इन्फॉर्मेशन साइंस में पीएचडी की व्यवस्था
सुझाव
1. 2008 से रुकी हुई लाइब्रेरियन की बहाली की प्रक्रिया शुरू हो
2. सभी स्कूलों के लिए लाइब्रेरियन के पद का सृजन हो
3. वोकेशनल के स्थान पर नियमित विभाग के तौर पर स्थापित हो पुस्तकालय
4. बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की हो व्यवस्था
पटना विवि का पुस्तकालय विभाग अस्थायी कर्मियों के सहारे
विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान की पढ़ाई तो हो रही है, लेकिन इसमें कर्मी नियमित नहीं हैं। पटना विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय के प्रभारी डॉ. मिथलेश कुमार सिंह बताते हैं कि पटना विश्वविद्यालय में भी पुस्तकालय विभाग के वोकेशनल होने के कारण स्थिति बेहतर नहीं है। यहां के सभी कर्मी अस्थायी हैं। खुद डॉ. मिथलेश भी रसायनशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं और यहां अपना काम निपटाने के बाद केन्द्रीय पुस्तकालय में प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी निभाते हैं। कहते हैं कि स्थायी और नियमित विभाग का अपना अलग रुतबा है। पटना विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विभाग एक वोकेशनल विभाग के तौर पर चल रहा है। अगर ये स्थायी हो और यहां पीएचडी की व्यवस्था हो तो स्थिति काफी बदल सकती है। पुस्तकालय में स्थायी लाइब्रेरियन की नियुक्ति नहीं होने से दिक्कत होती है। विभाग के स्थायी नहीं होने से संसाधन की कमी है। हालांकि पुस्तकालय का बुनियादी ढांचा काफी बेहतर है। वर्तमान में पुस्तकालय में कार्यरत सभी कर्मी अस्थायी हैं। इनका खर्च भी पुस्तकालय से होने वाली आमदनी से ही दिया जाता है। विभाग स्थायी होगा तो स्थिति बेहतर हो जायेगी।
1982 से पीयू में हो रही लाइब्रेरी साइंस की पढ़ाई
पटना विश्वविद्यालय में 1982 से लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन साइंस में स्नातक की पढ़ाई हो रही है जबकि साल 2012 से इस पाठ्यक्रम में मास्टर डिग्री की शुरुआत हुई। हालांकि आज बी यहां लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की व्यवस्था नहीं है। पटना विश्वविद्यालय लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की शुरुआत को लेकर 5-6 साल पहले भी पहल की गयी थी लेकिन कोई सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया है।
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