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बोले आरा: गाद और घाटों की सफाई नहीं, नाविकों की रोजी-रोटी पर संकट

भोजपुर जिले के नाविकों की जिंदगी मुश्किलों में है। प्रशासन से लाइसेंस की मांग की जा रही है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाFri, 21 Feb 2025 06:14 PM
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बोले आरा: गाद और घाटों की सफाई नहीं, नाविकों की रोजी-रोटी पर संकट

भोजपुर जिले में गंगा, सोन जैसी बड़ी नदियां हैं। सीमा पर बिंदगांवा में संगम है, जहां तीनों नदियां जीवित हैं। बावजूद यहां नदियों में नाव चलाने वाले नाविकों की जिंदगी मुश्किलों से घिरी है। नाविकों की ओर से प्रशासन से लाइसेंस की मांग की जाती रही है पर यह नहीं मिलता। यहांं पर्यटन को कम बढ़ावा मिल रहा है। नाविक सरकार से उचित रोजगार की मांग कर रहे हैं। इनकी समस्याओं के समाधान के लिए ठोस पहल की जरूरत है ताकि वे परेशानियों से उबड़ सकें। भोजपुर में गंगा और सोन नदियों में नाव चलाने वाले नाविकों की जिंदगी पानी पर टिकी है। अब वही पानी इनकी रोजी-रोटी लेने पर तुला है। प्रशासन से लाइसेंस की मांग हो या नदियों में गाद जमने का सवाल, घाटों की गंदगी हो या खुले में शौच की समस्या-हर मुश्किल उनके जीने के हक को चुनौती देती है। नाविक चाहते हैं कि सरकार और प्रशासन उनकी बात सुने। नदियों की सफाई के साथ बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। बड़हरा और शाहपुर में गंगा नदी के किनारे पक्के घाट बने, तो यहां सैर करने वालों की संख्या भी बढ़ने लगेगी। इसे देखते हुए वाराणसी की तर्ज पर नाव से लोगों को नदियों में सैर कराने का शुभारंभ हो जायेगा। बिंदगांवा संगम पहुंचने का रास्ता भोजपुर से ही है। यहां पहुंचने के रास्ते को सुगम बनाने के साथ घाट को विकसित किया जाये तो यहां पर्यटन की बड़ी संभावना है। जानकार तो यहां के संगम के महात्मय की चर्चा करते नहीं अघाते। महुली घाट पर गंगा नदी में यूपी और सारण के सीमावर्ती इलाके को जोड़ने वाले पीपा पुल लगने के दौरान नाव पर नाविकों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के साथ बोले आरा संवाद में अपनी अपनी समस्याएं गिनाईं और समाधान के सुझाव भी दिए।

पीपा पुल इसी माह होगा चालू और छह माह तक बेरोजगार हो जायेंगे नाविक : नाविकों ने बताया कि गंगा नदी में एक-एक कर सैकड़ों नावें अलग-अलग जगहों पर चलती हैं। नावों का सही परिचालन होने से नाविकों की आमदनी बढ़ने लगी। लेकिन, साथ ही उनके सामने कई तरह के संकट भी आने लगे। इसमें पीपा पुल लगने के कारण महुली गंगा नदी घाट पर लगभग छह माह तक नावों का परिचालन अधिकांशत: बंद रहना। इसी माह यहां नावें बंद होने से करीब छह माह तक बेरोजगारी झेलनी पड़ेगी। बिना लाइसेंस की नावें चलाते हैं। लोगों को नदी में इस पार से उस पार कराने का काम करते हैं। ऐसे में अगर कभी कोई हादसा हो जाए, तो हम कोर्ट में खड़े नहीं हो पाएंगे। बीमा कंपनियों से मुआवजा नहीं मिलेगा। अगर न्यायालय किसी को क्षतिपूर्ति का आदेश दे दे, तो हमें अपना घर बेचकर चुकाना पड़ेगा। बताया कि लाइसेंस के लिए कई बार आवेदन किया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बारिश के दिनों में नदी का जलस्तर बढ़ा, तो प्रशासन ने नाव चलाने पर रोक लगा दी थी। जब जलस्तर घटा, तो मौखिक आदेश से फिर चलाने की अनुमति दे दी गई। गंगा में गाद के कारण नाव चलाना मुश्किल हो रहा है। नदी में जगह-जगह गाद भर गया है। गंगा नदी के जलस्तर में भारी कमी आने के बाद नाव और स्टीमर नहीं चल पाएंगे।

पानी कम होने से कई जगह बने मिट्टी के टापू, नाव चलाने में मुश्किलें : अब नदी में पानी कम हो गया तो जगह-जगह मिट्टी के टापू उभर आये हैं। इससे नाव संचालन में मुश्किलें आ रही हैं। घाटों पर सिर्फ प्रशासन की ओर से दिखावे की सफाई कराई जाती है। जिला व प्रखंड प्रशासन का कोई भी कर्मचारी सफाई करने घाट पर नहीं आते हैं। महाआरती आयोजन के दौरान केवल उसी स्थल के पास झाड़ू लगाकर सफाई की जाती है। बाकी घाटों को छोड़ देते हैं। गंगा नदी के घाटों पर मूलभूत सुविधा नहीं होने से लोग दोनों किनारों पर खुले में शौच करते दिखते हैं। यह देख महिलाएं बेहद असहज महसूस करती हैं। नदी किनारे पर्याप्त शौचालय बना दिए जायें तो यह समस्या हल हो सकती है। इससे उनका रोजी-रोजगार सुरक्षित रहेगा। नाविकों को सरकार की ओर से लाइफ जैकेट उपलब्ध करा दिया जाये तो यात्रियों की सुरक्षा बढ़ जाएगी। भोजपुर में गंगा नदी घाटों को वाराणसी घाट और पटना जैसा मैरीन ड्राइव जैसा बनाने का दावा किया गया था। नाविकों की शिकायतें गंगा तट की सुंदरता से भी जुड़ी हैं। जिला प्रशासन के वरीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की ओर से महुली गंगा नदी के घाट शुरू में दौरा किया गया तो घाट के विकास लिए कई घोषणाएं की गईं। लेकिन, अब तक धरातल पर नहीं उतरने से भोजपुर जिले के लगभग सभी गंगा नदी घाट उपेक्षित पड़े हैं। इस कारण पर्यटक यहां नहीं आते हैं।

प्रस्तुति : संतोष कुमार उपाध्याय

हमारी भी सुनिए

हमारी खुद की जिंदगी का कोई खेवनहार नहीं

हम नाविक हैं...सबकी नैय्या पार लगाना हमारा मूल काम है, लेकिन हमारी खुद की जिंदगी का खेवनहार कोई नहीं है। सरकार से लोगों को मिलने वाली सुविधाएं मानो हमारे नसीब में नहीं है। हमें केवल और केवल बाढ़ के समय याद किया जाता है। प्रशासन से तरह-तरह के लाभ दिलाने के वादे कर मदद ली जाती है और काम निकलने के बाद लाभ के नाम पर ठेंगा दिखा दिया जाता है। तमाम तरह की समस्याओं से घिरे नाविकों का साफ तौर पर कहना है कि शासन और प्रशासन हमारी तकलीफों के प्रति कतई संजीदा नहीं है। हम नदी किनारे प्रहरी बनकर लोगों की जान बचाते हैं, लोगों को एक छोर से दूसरे छोर पहुंचाते हैं, लेकिन हमारी जिंदगी के छोर का कोई अता-पता नहीं है। आवास योजना, मत्स्य बीमा योजना और मत्स्य पालन लोन योजना जैसी योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गई हैं। हर साल बाढ़ आती है, तब सरकार हमें बुलाती है। हम अपनी जान जोखिम में डाल डूबते लोगों को बचाते हैं, राहत सामग्री पहुंचाते हैं और सरकारी बचाव कार्यों में हाथ बंटाते हैं। लेकिन जैसे ही पानी उतरता है और हालात सामान्य होते हैं, प्रशासन हमे भूल जाता है। अफसरों के साथ मिलकर राहत कार्य करते हैं, मगर जैसे ही पानी उतरता है, सब भूल कर चले जाते हैं। हमें जो मेहनताना मिलता है, वह इतना कम होता है कि घर चलाना भी मुश्किल हो जाता है। सरकारी मदद तो दूर, हमें सही पहचान भी नहीं मिलती।

नाव चलाने पर भी बाहरी लोगों का हो रहा कब्जा

मछली पकड़ना और नाव चलाना मछुआ समाज का पारंपरिक पेशा है, मगर अब इस पर भी बाहरी लोगों का कब्जा होता जा रहा है। सरकार की ओर से मछली पालन के लिए जारी किए जाने वाले टेंडर पारदर्शी नहीं होते और इनका फायदा मछुआरों को नहीं मिलता। बड़े ठेकेदार और प्रभावशाली लोग टेंडर लेकर जलाशयों पर कब्जा जमा लेते हैं, जिससे असली मछुआरों को उनके परंपरागत व्यवसाय से वंचित कर दिया जाता है। हम पीढ़ियों से मछली पकड़ रहे हैं। मगर अब सरकारी टेंडर में हमारा हक नहीं रह गया। जो लोग मछली पकड़ने का काम कभी नहीं करते थे, वे सरकारी ठेका लेकर हमसे ज्यादा कमा रहे हैं। हमें सस्ते दाम पर जाल तक नहीं मिलता और अगर ठेकेदार की मछली पकड़ लें, तो हमसे वसूली की जाती है। प्रशासन मछुआरों के लिए टेंडर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए और इसे उनके लिए आरक्षित करे, ताकि हम बेरोजगारी से बच सकें।

सुझाव

1. प्रशासन नाविकों के लिए लाइसेंस जारी करे ताकि वे कानूनी रूप से सुरक्षित रहें और बीमा का लाभ मिले।

2. नदी में से मलवा तत्काल हटाया जाए, ताकि गंगा का पानी स्वच्छ रहे

3. नियमित सफाई के लिए जिला प्रशासन सफाई कर्मियों की तैनाती करे। सफाई की निगरानी के लिए लोगों को जोड़ा जाए।

4. घाटों पर बड़े डस्टबिन रखे जाएं। लोगों को जागरूक करने के लिए कचरा प्रबंधन निर्देश के बोर्ड लगाए जाएं।

5. नदी के दोनों किनारों पर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया जाए।

शिकायतें

1. लाइसेंस नहीं होने से दुर्घटना की स्थिति में कानूनी रूप से असुरक्षित रहते हैं। बीमा कंपनियों से क्षतिपूर्ति नहीं मिलती।

2. पक्का घाट का निर्माण नहीं है। इससे लोगों को असुविधा होती है।

3. घाटों पर साफ-सफाई की उचित व्यवस्था नहीं होने से परेशानी होती है।

4. घाटों पर कचरा फेंका जा रहा है। पर्याप्त संख्या में डस्टबिन नहीं हैं और निर्देशात्मक बोर्ड भी नहीं लगे हैं।

5. नदी के किनारों पर खुले में शौच की समस्या गंभीर है। इससे नाविकों और श्रद्धालुओं को भारी परेशानी होती है।

उभरा दर्द

नाव चलाने का लाइसेंस नहीं है। अगर दुर्घटना हो जाए, तो हम कानूनी रूप से फंस जाएंगे। प्रशासन को हम लोगों का लाइसेंस बनाने में देरी नहीं करनी चाहिए। लाइसेंस देने के लिए गंगा व सोनघाटों पर कैंप लगे। -धर्मेंद्र मल्लाह

घाटों पर डस्टबिन होने चाहिए, लेकिन यहां कोई नियम-कानून लागू नहीं होता। इससे रोजी-रोजगार पर असर पड़ता है। नमामि गंगे योजना के तहत सभी प्रमुख घाटों के किनारे डस्टबिन रखने की व्यवस्था हो।-लवकुश यादव

महुली गंगा नदी घाट पर पीपा पुल लगने से लगभग छह माह तक नाव का परिचालन नहीं होता है।हम लोग पूरी तरह से नावों के परिचालन से संबंधित कार्य पर ही निर्भर हंै। सरकार वैकल्पिक व्यवस्था करे।-प्रभु राम

नाविकों के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष योजना बने। ताकि वह भी भविष्य में बेहतर रोजगार पा सकें। बच्चों को स्कूलों में भेजने के लिए विशेष नामांकन अभियान चलाना चाहिए।-विशाल कुमार मांझी

मेहनत कर एक दिन में दो से तीन सौ रुपये कमा पाता हूं। इसी में खर्च चलाना होता है। योजनाओं का लाभ मिले तो राहत हो। सरकार कोपीडीएस को कारगार बनाये। -चितरंजन साहनी

गाद जमने से पानी बहुत कम हो गया है। अगर खुदाई नहीं हुई, तो कुछ दिनों में नाव चलनी बंद हो जाएगी। इसका असर हम लोगों के रोजी-रोजगार पर पड़ेगा। प्रशासन को मंथन करना चाहिए। -राजन मांझी

खुले में शौच की समस्या बहुत गंभीर है। बदबू के कारण लोग घाट पर आना पसंद नहीं करते हैं। यह भी हम लोगों के रोजी-रोजगार पर बुरा प्रभाव पड़ने का कारण है। समस्या दूर की जानी चाहिए।-इंद्रजीत मांझी

नाविकों की जीवन शैली पर सरकार का ध्यान नहीं है। इस कारण विकास नहीं हो रहा है। मछली पकडने से़ थोड़ी-बहुत कमाई हो जाती है। नाविकों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने की पहल हो।-अजय कुमार

मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए जाल और नाव दी जाए, जिससे युवा पीढ़ी बाहर न जाए। सरकार को इस संबंध में आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की ओर से दी जा रही सुविधाओं का अध्ययन करना चाहिए। -प्रिंस कुमार मांझी

कम आय की वजह से मल्लाह बाहुल्य गांवों से तेजी से पलायन हो रहा है। युवा शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। कम आमदनी को देख नई पीढ़ी इस धंधे में नहीं आना चाहता है। -स्वामीनाथ मांझी

नदी में मलवा डालने से नाव चलाने में दिक्कत हो रही है। कई बार शिकायत की गई, लेकिन समाधान नहीं किया गया। नाविकों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रखंड स्तर पर एक अधिकारी तैनात हों।-सुनील मांझी

पहले नाव बनवाने में दो से तीन लाख रुपये लगते थे, अब लागत छह लाख हो गई है। सरकार की तरफ से कोई अनुदान नहीं दिया जाता है, जिससे हमें दिक्कत होती है। सरकार अनुदान की व्यवस्था करे।-नन्हक मल्लाह

हम जान पर खेल बाढ़ में लोगों की मदद करते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से हमें बाढ़ राहत कर्मी का दर्जा नहीं मिलता। नाविकों को राहत कर्मी का दर्जा देकर वेतन या मानदेय मिले, तो परिवार की स्थिति सुधरेगी।-सर्वजीत चौधरी

नाविकों के लिए स्वास्थ्य बीमा और पेंशन योजना लागू हो ताकि वृद्धावस्था में सुरक्षित रह सके। आयुष्मान कार्ड से जो वंचित रह गये हैं, उन्हें जोड़ना चाहिए। नाविकों को सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ मिले।-जितेन्द्र साहनी

नाव चलाने से गुजर-बसर नहीं हो पा रहा है। हम लोगों को योजनाओं का लाभ मिले। कई योजनाओं का लाभनहीं मिल पाता है। नाविकों को योजनाओं से जोड़ा जाए।-रजनीश कुमार सहनी

घाटों पर गंदगी लगी रहती है। इससे हम लोगों को नाव चलाने में परेशानी होती है। गंगा व सोन नदी के प्रमुख घाटों पर सफाई के लिए स्थायी कर्मचारी की बहाली करनी चाहिए।

-मंजी मांझी

नदी में जहरीला पानी आने से मछलियां मर जाती हैं। हमने कई बार अफसरों से समस्या दूर करने की मांग की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। नदी को प्रदूषणमुक्त करने के उपाय होना चाहिए। -धनजी मांझी

मछुआ आवास योजना का सही क्रियान्वयन हो ताकि गरीब मछुआरों को रहने के लिए मकान मिल सके। इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को पहल करने की जरूरत है।-धूमराज मांझी

पर्यटन को बढ़ावा देकर मछुआरों को स्थायी रोजगार के अवसर दिए जाए, ताकि परिवार चला सकें। पर्यटन का बढ़ावा मिलने से रोजगार का सृजन होता है। संगम स्थल को प्रचारित किया जाये ।-आजाद सहनी

हमारा गांव नदी किनारे है। यहां न स्कूल है और न अस्पताल। गांव की सड़क भी जर्जर हालत में है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बीच जीवन जीना पड़ता है। सरकार इस ओर ध्यान दे।-राजकुमार मांझी

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