आशा कार्यकर्ताओं की भी सुनिए दु:ख दर्द
आशा कार्यकर्ता सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए काम कर रही हैं। वे महीने में केवल 1000 रुपये मानदेय पर काम करती हैं और प्रोत्साहन राशि की मांग कर रही हैं। मोबाइल...
जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर के विभिन्न मोहल्ले तक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाने वाली आशा कार्यकर्ता निराशा में जीवन बसर कर रही हैं। प्रतिमाह एक हजार की मानदेय पर काम करने वाली आशा कार्यकर्ता काफी समय से प्रोत्साहन राशि बढ़ाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रही हैं। इन्हें शिशु देखभाल के लिए गृह भ्रमण पर महीने में एक बार 250 रुपये, प्रसूति महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने पर 300 रुपये, ड्रेस के लिए साल में 2500 रुपये, सम्पूर्ण टीकाकरण पर 75 रुपये, फाइलेरिया का दावा खिलाने पर 700 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में मिलता है। कालाजार जागरूकता अभियान सहित कई ऐसे भी कार्यक्रम हैं जिनमें इन्हें कोई प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती है। कोरोना काल में किये गए सर्वे का भुगतान उन्हें आज तक नहीं मिला।
मोबाइल पर करना पड़ता है ऑन लाइन काम:एम आशा एप पर पारिवारिक सर्वेक्षण का डाटा अपलोड करने के लिए सभी आशा कार्यकर्ताओं को विभाग से स्मार्ट फोन दिया गया है। आशा कार्यकर्ता संघ की जिलाध्यक्ष सविता देवी, कोषाध्यक्ष बबिता देवी, मंत्री किरण देवी व उपाध्यक्ष बबीता देवी कहती हैं कि आठवीं पास आशा कार्यकर्ताओं को एंड्रॉयड मोबाइल पर ऑनलाइन काम करना पड़ रहा है। यह काम अधिकांश आशा कार्यकर्ताओं के वश की बात नहीं है। परिजनों की सहायता से वे सर्वे से लेकर ऑनलाइन तक काम कर रही हैं। पारिवारिक सर्वे करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन्हें आईडी व पासवर्ड उपलब्ध कराया गया है। इसका इस्तेमाल कर उन्हें डाटा एंट्री करनी पड़ती है। कम पढ़ी-लिखी होने की वजह से अधिकांश आशा कार्यकर्ता यह काम करने में सक्षम नहीं हैं। इनका कहना है कि पारिवारिक सर्वेक्षण का काम केवल रजिस्टर पर अंकित हो तो उन्हें काम करने में सुविधा होगी।पूनम देवी, शाहनाज बेगम, रेणु देवी, रीमा देवी, मंजू देवी व लालमुनि देवी आदि आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक वे लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ती हंै। इसके बावजूद उन्हें विभाग में ही उचित सम्मान नहीं मिलता है। आशा कार्यकर्ताओं को उनके काम के आधार पर 28 सौ से लेकर 10 हजार रुपये तक की प्रोत्साहन राशि देने का स्लैब सरकार ने तय किया है। कुछ आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनसेंटिव से लेकर मानदेय तक पाने के लिए उनसे नजराना की मांग की जाती है। भुगतान नहीं मिलने के चलते आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हो, स्वास्थ्य केन्द्र हो या सदर अस्पताल कोई भी अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। पोषक क्षेत्र में रहने वाले परिवार के सदस्यों के नाम, उनके माता-पिता के नाम, संबंध, पता समेत अनेक जानकारियां भरनी पड़ती हैं। दिन हो या रात प्रसव पीड़ा शुरू होने पर अपने पोषक क्षेत्र से गर्भवती महिलाओं को लेकर अस्पताल पहुंचती हैं। वहां प्रसव के बाद नेग के रूप में अस्पताल कर्मी पैसे मांगते हैं और बदनाम आशा कार्यकर्ताओं को होना पड़ता है।
शिकायतें
1अस्पताल कर्मियों द्वारा पीएससी से लेकर सदर अस्पताल तक आशा कार्यकर्ताओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है।
2. मोबाइल से पारिवारिक सर्वे करने के आदेश के चलते उन्हें काम करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। परिवार के सदस्यों का सहारा लेना पड़ रहा है।
3. आशा कार्यकर्ताओं के विश्राम के लिए किसी भी अस्पताल परिसर में अलग से भवन नहींं है। सदर अस्पताल में शेड बना है जो सुरक्षित नहीं है।
4. आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय सम्मान जनक नहीं है। काम करने की उम्र सीमा भी कम निर्धारित किया गया है। इसके कारण दिक्कत हो रही है।
5. हर माह एक सम्मान जनक मानदेय नहीं मिलने से आशा कार्यकर्ताओं को परिवार के भरण-पोषण में समस्या आ रही है।
सुझाव
1.आशा कार्यकर्ताओं के काम करने का समय सरकार को निर्धारित करना चाहिए, जिससे इनको काम करने में सहूलियत हो।
2. पारिवारिक सर्वेक्षण का काम एप पर नहीं कराकर रजिस्टर में इंट्री कराया जाए। आठवीं पास अधिकतर आशा कार्यकर्ता एप पर काम करने में सक्षम नहीं हैं।
3. अस्पतालों में मरीज को ले जाने पर वहां मरीजों से की जाने वाली वसूली पर अधिकारी द्वारा रोक लगे। इससे आशा कार्यकर्ताओं की बदनामी हो रही है।
4. रात के समय गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लेकर जाने की स्थिति में रात्रि विश्राम के लिए अस्पताल परिसर में आशा के लिए एक भवन होना चाहिए।
5. आशा कार्यकर्ताओं को विभिन्न मद्द से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि के भुगतान में पारदर्शिता बरती जाए। इनसेंटिव के रुपये का समय पर भुगतान किया जाए।
स्वास्थ्य केन्द्र परिसर में बने आशा वर्कर के लिए भवन
सुधा कुमारी, मंजू कुमारी, संगीता देवी, आशा देवी व मंजू देवी आदि आशा वर्कर्स का कहना है कि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें रात में भी गर्भवती महिलाओं को लेकर अस्पताल जाना पड़ता है। अस्पताल के कर्मी गेट से अंदर नहीं जाने देते हैं। आये दिन अस्पताल कर्मियों से कहासुनी होती है। सदर अस्पताल में आशा कार्यकर्ताओं के विश्राम के लिए एक शेड बना है, जो कहीं से भी सुरक्षित नहीं है। आशा कार्यकर्ताओं के लिए कम से कम दो कमरे की एक बिल्डिंग बननी चाहिए। जिसमें शौचालय या स्नानागार की सुविधा होनी चाहिए। सुरक्षित ठिकाना नहीं होने के चलते उन्हें हमेशा सुरक्षा की चिंता बनी रहती है। उनका कहना है कि सभी स्वास्थ्य केन्द्र व सदर अस्पताल परिसर में आशा वर्कर्स के लिए एक भवन होना चाहिए।
15 सौ बढ़ा मानदेय, लेकिन नहीं हुआ अब तक भुगतान
आशा कार्यकर्ता संघ की जिलाध्यक्ष सविता देवी ने बताया कि कई बार मानदेय बढ़ाने के लिए आन्दोलन हुआ। वर्ष 2023 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने आशा कार्यकर्ताओं की प्रोत्साहन राशि में 15 सौ रुपया बढ़ोतरी की बात कही। परंतु आज तक प्रोत्साहन राशि में किसी प्रकार की बढ़ोतरी कर भुगतान नहीं किया गया। इसको लेकर आशा कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। इसके कारण उन्हें आर्थिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
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