आंगनबाड़ी सेविकाओं को चाहिए सम्मान के साथ उचित मानदेय
जिले में लगभग 5600 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जहां सेविकाएं गर्भवती महिलाओं और बच्चों की देखभाल करती हैं। इनका मासिक मानदेय मात्र 7000 रुपये है, जो पर्याप्त नहीं है। सेविकाएं अतिरिक्त काम करने के बावजूद...
जिले में लगभग 5600 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। उनके संचालन के लिए करीब 11200 आंनगबाड़ी सेविका व सहायिकाएं नियुक्त हैं। गर्भवती महिलाओं की गोदभराई व नवजात शिशुओं के अन्नप्राशन से लेकर उन्हें स्कूल पूर्व की शिक्षा उपलब्ध कराने में आंगनबाड़ी सेविकाओं की भूमिका काफी अहम है। जो प्री-स्कूल एजुकेशन की मजबूत रीढ़ हैं, इसके बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मामूली मानदेय पर काम करने को विवश हैं। सरकार और आमजन के बीच मजबूत सेतु बनकर उभरी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अब मल्टीटास्किंग वूूमेन का पर्याय बन चुकी हैं। सुबह से शाम तक ऑनलाइन और ऑफलाइन काम करने के वावजूद इनको 7000 प्रतिमाह के मानदेय में गुजारा करना पड़ रहा है। आंगनबाड़ी सेविका संघ की जिलाध्यक्ष ममता कुमारी सिंह, महासचिव देवेश कुमार सिंह, सचिव सारिका गुप्ता, उपाध्यक्ष प्रियम्वदा कुंवर, उपसचिव किरण कुमारी व कोषाध्यक्ष विभा कुमारी का कहना है कि सुबह से लेकर शाम तक काम करने के बावजूद मात्र सात हजार महीने का मानदेय कहीं से उचित नहीं है। सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठानी चाहिए। वर्ष 1985 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हुई। तब उन्हें 250 रुपए प्रतिमाह मानदेय मिलता था। अब बढ़कर 7 हजार रुपए महीना हुआ है। कहती हैं कि सात हजार रुपए मासिक मानदेय में कैसे जीविकोपार्जन होगा। पोषक क्षेत्र के बच्चों की हम देखभाल कर रही हैं। पर, इस मामूली मानदेय में हमारे बच्चों की परवरिश तथा घर खर्च कैसे चल पाएगा।
सेविका संघ की प्रमिला कुमारी, पूजा कुमारी व प्रभा कुमारी कहती हैं कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। आंगनबाड़ी केन्द्र संचालन के आलावें होम विजिट, टीकाकरण, चुनाव ड्यूटी, परीक्षा ड्यूटी, जातीय जनगणना, पीएमवीवाई, कन्या उत्थान योजन सहित अनेक कार्यो में उनकी ड्यूटी लगाई जाती है। पर, इसके एवज में अतिरिक्त पारिश्रमिक या प्रोत्साहन राशि का भुगतान उन्हें नहीं मिलता है।
आंगनबाड़ी सेविका शर्मिला कुमारी, कुसुम देवी, ममता कुमारी, शालनी देवी, रूपा देवी, विमला कुमारी व सरिता देवी बताती हैं कि विभाग द्वारा वर्ष 2018 में मोबाइल उपलब्ध कराया गया था। मोबाइल बहुत जल्दी खराब हो गया। सभी ने विभाग को मोबाइल लौटा दिया। सभी सेविका अपनी मोबाइल से पोषण ट्रेकर एप पर डेटा अपलोड करती हैं। उक्त एप पर केंद्र से संबंधित कई जानकारी अपलोड की जाती है। इनका कहना है कि सभी सेविकाओं के पास अच्छे क्वालिटी की मोबाइल फोन नहीं है। विभाग द्वारा उन्हें मोबाइल की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही मोबाइल का रिचार्ज भी विभाग द्वारा दो सौ रुपया प्रतिमाह दिया जाता है। जितना मोबाइल पर ऑनलाइन काम करना है उसके हिसाब से दो सौ रुपये का रिचार्ज कम पड़ जाता है। अब किसी मोबाइल कम्पनी में तीन सौ रुपये से कम का मंथली रिचार्ज भी नहीं है।
शिकायतें
1.विभागीय आदेश के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्तायों को अनेक सरकारी कार्यों में लगा दिया जाता है। लेकिन भुगतान नहीं मिलता।
2. सेविकाओं के आंगनबाड़ी केंद्र संचालन के बाद गृह भ्रमण के काम की वजह से सुबह से शाम तक ड्यूटी करनी पड़ती है।
3. बतौर प्रोत्साहन राशि मिलने में बाबुओं की लालफीताशाही और अधिकारियों की मनमानी बाधक है। इससे काम पर असर पड़ता है।
4. चेकिंग के नाम पर आंगनबाड़ी सेविकाओं का मानसिक उत्पीड़न किया जाता है। उन पर अनर्गल आरोप लगाए जाते हैं।
5. मोबाइल पर ऑनलाइन काम लिया जाता है। लेकिन इसके लिए मोबाइल उपलब्ध नहीं कराया गया है। रिचार्ज की राशि भी कम मिलती है।
सुझाव
1. आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति सुधारने की जरूरत है। बेहतर माहौल में बच्चे अच्छी पढ़ाई कर सकेंगे। इन सेंटरों का अपना भवन होना चाहिए।
2. मोबाइल पर काम करना आसान है लेकिन अब भी पांच रजिस्टर भरने की व्यवस्था लागू है ,जबकि अन्य प्रदेशों में ये रजिस्टर हटाए जा चुके हैं।
3. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के काम की अवधि तय होनी चाहिए ताकि वे अपने परिवार को भी पर्याप्त समय दे सकें।
4. जांच के नाम पर आंगनबाड़ी सेंविकाओं को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। इससे केंद्र संचालन का काम प्रभावित होता है।
4. पोषाहार के लिए बाजार मूल्य के समरुप राशि मिलनी चाहिए। बाजार मूल्य से कम राशि मिलने से परेशानी होती है।
आंगनबाड़ी सेविकाओं के जिम्मे हैं ये काम
3 से 6 वर्ष के बच्चों को प्री-एजुकेशन, पोषण और उनका व्यक्तिव विकास, पोषाहार वितरण, गर्भवती महिलाओं की गोदभराई और नौनिहालों का अन्नप्राशन इनका मूल काम है। इसके आलावें टीकाकरण, चुनाव ड्यूटी, परीक्षा ड्यूटी, जातीय जनगणना, पीएमवीवाई, कन्या उत्थान योजन, विधवा और वृद्धावस्था पेंशन, राशन कार्ड सत्यापन समेत कई सरकारी काम इनसे कराये जाते हैं। जबकि इनके बदले इन्हें सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है। इससे उन्हें परिवार के भरण पोषण में दिक्कत आती है। सेविकाओं के अनुसार इस पर ध्यान देना जरूरी है।
बाजार के मूल्य से कम मिलती है पोषाहार राशि
आंगनबाड़ी सेविकाओं का कहना है कि केंद्र पर बच्चों को दी जाने वाली पोषण आहार की राशि विभाग द्वारा उन्हें बाजार मूल्य से कम दिया जाता है। जिस कारण आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को पोषण आहार वितरण करने में काफी परेशानी होती है। बताया कि ठंड के दिन में विभाग द्वारा नाश्ते में बच्चों को अंडा देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन विभाग द्वारा प्रत्येक अंडा का मात्र 6 रुपए ही दिया जाता है जबकि बाजार में अंडा का मूल्य इस समय 8 रूपये है। ऐसे में उन्हें अंडा बच्चों को उपलब्ध कराने में अपने पॉकेट से खर्च करना पड़ता है।
फेश कैप्चर बन गयी है बड़ी समस्या
आंगनबाड़ी सेविकाओं का कहना है कि पोषण ट्रेकर एप के नए वर्जन में लाभुक का फेश कैप्चर कर ऑनलाइन डालना होता है। तीन वर्ष तक उस लाभुक को पोषण देने का प्रावधान है। अगर लाभुक महिला कुछ दिनों के लिए मायके या किसी दूसरे जगह चली जाय तो हमलोगों को दिक्कत होती है। लाभार्थी गर्भवती होने के कारण केंद्र पर नहीं आती। जबकि विभाग द्वारा कहा जाता है कि लाभार्थी का फेसवेरिफीकेशन नहीं होता है तो वैसे लाभार्थी का टीएचआर नहीं दिया जाए। जबकियहां भी जन वितरण प्रणाली की तरह लाभार्थी के परिवार के कोई भी सदस्य को पोषाहार देने की व्यवस्था हो।
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