स्वतंत्रता सेनानी के उत्तराधिकारियों को मिले तीन पीढ़ी तक पेंशन का लाभ
मधुबनी जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारी सरकारी उपेक्षा का सामना कर रहे हैं। वे कार्यालय की मांग कर रहे हैं लेकिन जमीन की कमी के कारण कार्यालय स्थापित नहीं हो पा रहा है। बेरोजगारी और...
मधुबनी। देश की आज़ादी में जिन सेनानियों ने बलिदान दिया, उनके परिवार आज भी सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। मधुबनी जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारी वर्षों से कार्यालय की मांग कर रहे हैं, लेकिन जमीन की उपलब्धता अब तक नहीं हो सकी है। उत्तराधिकारी बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और सरकारी लाभों से वंचित होने की दोहरी मार झेल रहे हैं। अन्य राज्यों में मिलने वाली पेंशन योजना भी यहां लागू नहीं हो सकी है। इनका कहना है कि वे सरकार से न्याय की मांग कर रहे हैं लेकिन अफसरशाही में उनकी मांगें दब जाती हैं। मधुबनी जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारी लंबे समय से पहचान और अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सेनानियों के परिवार आज भी सरकारी अनदेखी के शिकार हैं। वर्षों पहले जिला प्रशासन द्वारा उनके लिए कार्यालय स्वीकृत किया गया था, लेकिन जमीन की अनुपलब्धता के कारण आज तक कार्यालय स्थापित नहीं हो सका। स्वतंत्रता सेनानी केदार सिंह ने बताया कि मिथिला की माटी ने देश के लिए कई अमर बलिदानी दिए। मक्खन झा, कुशे यादव व सुरेंद्र सिंह ने बताया कि यहां के सेनानियों के संघर्ष, त्याग और बलिदान की कहानी अमिट है। यहां पर अमर शहीद सूरज नारायण सिंह, गणेशी ठाकुर, अकलू साह जैसे सेनानियों को आज भी याद किया जाता है। उस दौरान सहदेव झा, रामलखन मंडल, मक्खन पांडेय, हरिबल्लभ सिंह, रामदेव लाल दास, रेवती रमण चौधरी, इंद्रेश मिश्रा, राम सखी देवी, जमुना सिंह, विशेश्वर सिंह, बद्री राय, सदाशिव झा, भवनाथ झा, मोहीउद्दीन कुजरा, शिवशंकर मिश्र जैसी हस्तियों ने देश की स्वतंत्रता में बढ़-चढ़कर योगदान दिया। उत्तराधिकारियों में अशोक कुमार, संजीव मिश्र, गोपाल सिंह आदि लोग बताते हैं कि कई उत्तराधिकारी बेरोजगारी से जूझ रहे हैं क्योंकि उनके अभिभावकों ने स्वतंत्रता संग्राम में सब कुछ न्योछावर कर दिया था। इन उत्तराधिकारियों को न पेंशन मिल रही है, न ही कोई स्थायी योजना का लाभ। जबकि असम, महाराष्ट्र, उत्तराखंड जैसे राज्यों में उत्तराधिकारियों को पेंशन और विशेष सुविधाएं दी जाती हैं। यहां तक कि वहां की सरकारें तीन पीढ़ियों तक पेंशन देती हैं।
बैकलॉग पद पर नियुक्ति का चले अभियान: उत्तराधिकारी परिवार की छात्रा संध्या प्रदर्शनी बताती हैं कि भले ही दो प्रतिशत आरक्षण मिलता है, पर यह कई बार कागजों में सिमट कर रह जाता है। विभिन्न विभागों में बैकलॉग पद खाली हैं, लेकिन उन्हें भरने की कोई ठोस योजना नहीं बन पा रही है। उत्तराधिकारी दीपक कुमार, शंकर सिंह, गोपाल झा, सुभाष कुमार समेत कई अन्य युवाओं ने मांग की है कि सरकार पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी और रोजगार की अन्य योजनाओं में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को प्राथमिकता दे। उत्तराधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं स्वतंत्रता सेनानी के उत्तराधिकारी हैं लेकिन उन्होंने जो वादे बख्तियारपुर की सभा में किए थे, वे आज तक पूरे नहीं हो सके हैं। अब उन्होंने पहचान पत्र और अन्य सुविधाओं को लेकर अभियान शुरू किया है।
उद्यमी योजनाओं में विशेष सुविधा के साथ ऋण मिले
स्वतंत्रता सेनानी के उत्तराधिकारियों ने बताया कि बैंक से अनुदानित दर पर ऋण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि परिवार के लोग सहज रुप से व्यवसाय में आगे आ सके। राज्य में चल रहे विभिन्न उद्यमी योजनाओं में इन्हें विशेष सुविधा प्रदान की जाए। नागेश्वर पांडेय, संजीव मिश्र, गणेश मंडल, गोपाल सिंह व अन्य ने बताया कि इस परिवार के उत्तराधिकारी कई उद्यम में जाना चाहते हैं और संस्थानों की स्थापना करना चाहते हैं, लेकिन पूंजी के अभाव में काम नहीं कर पा रहे हैं। सरकार को इन परिवारों के लिए सरल व सहज पूंजी की व्यवस्था करनी चाहिए।
कार्यालय स्वीकृत भूमि उपलब्ध नहीं
मधुबनी जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारियों के लिए वर्षों पहले कार्यालय स्वीकृत किया गया था, लेकिन जमीन की कमी के चलते आज तक निर्माण शुरू नहीं हो सका है। पहले सर्वोदय संघ परिसर में कार्यालय संचालित होता था, जहां सेनानियों से जुड़े दस्तावेज और स्मृतियां सुरक्षित थीं। परंतु अब इस परिसर पर अवैध कब्जा हो गया है और महत्वपूर्ण कागजात लापता हो चुके हैं। उत्तराधिकारियों का कहना है कि यह सिर्फ भावनात्मक नुकसान नहीं बल्कि उनके अधिकारों के लिए बड़ा झटका भी है।
कई बार विधानसभा और जिला प्रशासन के स्तर पर यह मुद्दा उठा चुका हूं। स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारियों के साथ हो रही यह अनदेखी गंभीर विषय है। इन्हें कार्यालय के लिए तत्काल भूमि आवंटित किया जाना चाहिए। साथ ही पेंशन और रोजगार में जो भेदभाव हो रहा है, वह तत्काल बंद हो। सरकार को चाहिए कि इन परिवारों को सम्मान दे, क्योंकि इन्हीं की बदौलत हम आज़ाद भारत में सांस ले पा रहे हैं।
-समीर कुमार महासेठ ,नगर विधायक
हमारी मांगों के बावजूद आज तक हमें न कार्यालय मिला, न ही कोई स्थायी पहचान। सरकारी स्तर पर केवल आश्वासन मिलते रहे हैं। हम सरकार से अपील करते हैं कि हमारी पहचान सुनिश्चित की जाए, पेंशन योजना शुरू की जाए और उत्तराधिकारियों को सम्मानजनक जीवन जीने का हक दिया जाए। ये मांगें हमारे अधिकार हैं, न कि कोई दया।
-संजीव मिश्र , संयोजक , स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन,
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