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परबत्ता : नलकूप से सिंचाई की व्यवस्था चरमराई,

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Newswrap हिन्दुस्तान, खगडि़याThu, 6 Feb 2025 03:23 AM
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परबत्ता : नलकूप से सिंचाई की व्यवस्था चरमराई,

परबत्ता । एक प्रतिनिधि प्रखंड का 22 नलकूप कई वर्षो से ख़राब पड़ा हुआ है। इस स्थिति में कैसे होगी केले और रबी फसलों की खेती? आज केला व रबी की खेती करने वाले किसानो के बीच सिंचाई को लेकर भाग दौड़ की स्थिति बनी हुई है। केला किसानो की स्थिति यह है कि सरकारी नलकूप खराब रहने से अपने खेतों में लगाए कला की फसल को तिगुने मूल्य देकर सिंचाई करने को विवश हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रखंड के अधिकांश लोगों का जीवनयापन का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन है। कृषि के क्षेत्र में यहां अधिकांश लोगों का खेती केला की होती है। वही करीव 60 फीसदी किसान मक्का और गेहूं आदि की खेती करते हैं। सरकार द्वारा हर हाथ को काम व हर खेत को पानी उपलब्ध कराने के सिद्धांत पर वर्ष 1970 के दशक प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में 48 नलकूप लगाए गए थे। नलकूप के लगते ही स्थानीय किसानों को सस्ते दरों पर सिंचाई उपलब्ध होने लगी थी। किसान खुशहाली की जिंदगी जीने लगे थे, लेकिन विभाग के अधिकारी की उदासीनता के कारण करीव दो दशक से नलकूपो की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई और आज स्थिति बद से बदतर हो गई। हर हाथ को काम व हर खेत को सस्ते में पानी उपलब्ध कराने की घोषणा परबत्ता में हवा हवाई बनकर रह गई है। इधर व्यवस्था की त्रासदी यह है कि राज्य के नलकूप की गोद में निजी पंपसेट से किसान कई गुना खर्च कर सिंचाई करने को विवश हैं।

मौसमी मजदूरों की हुई थी नियुक्ति :

राजकीय नलकूपों के व्यवस्थित रूप से संचालित के लिए विभाग द्वारा वर्ष 2015-16 में मौसमी मजदूरों को दैनिक मजदूरी पर नियुक्त किया गया था। दैनिक मजदूरों की नियुक्ति होते ही सिंचाई का कार्य नियमित संचालित किया जाता था, लेकिन इस व्यवस्था पर गिद्ध दृष्टि जमाये बैठे लोगो इस व्यवस्था पर पानी फेर दिया और यह व्यवस्था धीरे-धीरे विलुप्त हो गई।

मुखिया को मिला संचालन का प्रभार : नलकूपों की स्थिति बिगड़ता देख आज नलकूपों का संचालन का भार प्रत्येक पंचायत के मुखिया को सौंपा गया है। वैसे मुखिया जिनका कृषि से अधिक लगाव है वहां तो कोई परेशानी नहीं है। लेकिन जिस मुखिया को किसानी से लगाव नहंी है वहां के नलकूपो की स्थिति अभी तक नहीं सुधर सकी है। इसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।

क्या है किसानों की परेशानी : राजकीय नलकूपों से सिंचाई करने पर किसानों को दो पटवन पर प्रति एकड़ 109 रुपए व तीसरे पटवन में मात्र 61 रुपए प्रति एकड़ भुगतान करने पड़ते थे। निजी पंप सेट से पटवन करने पर किसानों को प्रति एकड़ अधिक मूल्य का भुगतान करना पड़ता है।

कितने नलकूप हैं प्रखंड में चालू : प्रखंड के बैसा, बिठला, झंझरा-1, झंझरा -2. करना, परबत्ता जागुआ, नयागांव 1, नयागांव -2 सहित करीब दो दर्जन नलकूप मात्रा चालू हालत में है।

नलकूपों में क्या है कमी : प्रखंड के लगार, जोड़ावरपुर, बंदेहरा, तेलिया बथान सहित दो दर्जन राजकीय नलकूपों में बिजली तार, पोल, ट्रांसफार्मर, नाला एवं भवन की जर्जरता के कारण पिछले कई वर्षो से बंद पड़ा हुआ है, लेकिन विभाग इसके प्रति उदासीन दिख रहे हैं।

बोले अधिकारी :

बंद पड़े नलकूपों का डीपीआर तैयार कर विभाग को भेजा गया है। डीपीआर की स्वीकृति के बाद काम किया जाएगा।

संजीव कुमार, एसडीओ, नलकूप विभाग।

फोटो :

कैप्शन: परबत्ता: कुलहड़िया बहियार में खराब पड़े नलकूप।

बोले लोग :

1. प्रखंड के विभिन्न पंचायतो में सरकार द्वारा लगाए गए नलकूप बंद रहने से किसानों को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

नवलकिशोर सिंह, किसान।

2. निजी पम्पसेट से फसलों की सिचाई करने से किसानो को कई गुने मूल्य देना पड़ता है, लेकिन विभाग के अधिकारी उदासीन बने हुए हैं।

विभूति तिवारी, जदयू कार्यकर्ता।

3. मौसमी मजदूरों को नियुक्ति करने से बहुत हद तक नलकूपों के संचालन में सुधार हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे वह व्यवस्था भी बंद हो गई और स्थिति वही की वही पहुंच गई।

नेपाली सिंह, पूर्व मुखिया, खीराडीह।

4. नलकूपों की स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि खेत की सिचाई करने के लिए नाला तक नहीं है।

दिलीप सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता।

5. बंद पड़े नलकूपो में नाला, भवन, तार, पोल व मोटर आदि की कमी है। कही घर है तो साधन नहीं है।ही साधन है तो मोटर नहीं है की स्थिति है।

सुनील चौरसिया, बीजेपी नेता।

6. नलकूपों का संचालन मुखिया द्वारा किये जाने पर कुछ जगह नलकूपों का संचालन शुरू है और कुछ जगह बंद पड़ा हुआ है।

बालमुकुंद मंडल, किसान।

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