न्यूनतम पारिश्रमिक से भी वंचित हैं मंदिर के पुजारी
पुरोहितों को समाज में सम्मानित माना जाता है, लेकिन वे आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। दक्षिणा की कमी और ऑनलाइन पूजा-पाठ की बढ़ती प्रवृत्ति ने उनकी आजीविका को प्रभावित किया है। सरकार से मानदेय न...
पुरोहित या पुजारी को समाज में उच्च दर्जा प्राप्त रहा है। लोग इन्हें सम्मानित निगाह से देखते हैं, पर अधिकतर पुरोहित आर्थिक दुश्वारियों के शिकार हैं। मंदिरों में भगवान की पूजा-अर्चना, शादी-विवाह, धार्मिक अनुष्ठान आदि कर्मकांड कराने के एवज में इन्हें कम दक्षिणा मिल रही है। इस कारण पुरोहितों का बमुश्किल गुजारा हो रहा है। बच्चों की स्कूल फीस, घर का दैनिक खर्च सहित अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए पुरोहित परेशान रहते हैं। इस स्थिति के कारण पुरोहित-पुजारी अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। युवाओं का पुश्तैनी कार्य से मोह भंग होने लगा
युवा पुरोहितों का पुश्तैनी कार्य से मोह भंग होने लगा है। पुरोहित समाज इस हालात के लिए दक्षिणा राशि का निश्चित न होना और सरकार से मानदेय या अन्य लाभ नहीं मिलने को जिम्मेवार बताते हैं। साथ ही आधुनिक समय में शुरू हुए ऑनलाइन पूजा-पाठ को भी बड़ी वजह मानते हैं। दरभंगा राज के मंदिरों में तैनात पुश्तैनी पुजारियों को भी बदहाली झेलनी पड़ रही है। वैदिक पंडित डॉ. प्रियदत्त ठाकुर बताते हैं कि ऊंची जाति में शुमार होने के कारण पुरोहितों को नौकरी में आरक्षण नहीं मिलता है। इस कारण उच्च शिक्षित बेरोजगार युवाओं की तादाद बढ़ रही है।
घट गई है यजमानों की संख्या
लोगों के घरों में पूजा-पाठ, शादी-ब्याह, जनेऊ, मुंडन आदि कराने के बदले 200 से 500 की दक्षिणा राशि मिलती है। साथ ही दूसरी जाति के लोग भी पूजा-पाठ कराने लगे हैं। इससे यजमानों की संख्या घट गई है। उन्होंने बताया कि पहले लग्न के सीजन में अधिक कमाई होती थी, जिसमें कमी आ गई है। लोग शादी के लिए लाखों का पंडाल बनाते हैं, पर पंडित को दक्षिणा देने के वक्त हाथ रोक लेते हैं।
राशन कार्ड की सुविधा से भी वंचित
पुरोहित यजमान से अधिक दक्षिणा की मांग करते हैं तो वे लालची बताने लगते हैं। इस कारण पुरोहितों का जीवन यापन मुश्किल हो गया है। उन्होंने बताया कि पुजारी या पुरोहित समुदाय के अधिकतर लोग राशन कार्ड की सुविधा से भी वंचित हैं। साथ ही बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) का भी लाभ नहीं मिलता है। आयुष्मान कार्ड तक नहीं है। बीमारी की स्थिति में कर्ज लेकर उपचार कराना पड़ता है। उन्होंने बताया आर्थिक दुश्वारियां विकास में बाधक बन चुकी हैं।
न्यूनतम मजदूरी से भी वंचित हैं मंदिरों के पुजारी
मंदिरों में पूजा-अर्चना पर पुजारियों का एकाधिकार रहा है। अभी भी जिले के अधिकतर मंदिरों के पुजारी पुश्तैनी रूप से कार्यरत हैं, जहां उन्हें अकुशल श्रमिकों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी से भी कम राशि मिलती है। पुजारी घनश्याम दास, जानकी राम बाबा, तुलसीदास आदि बताते हैं कि दरभंगा राज की ओर से जिले में स्थापित 100 से अधिक मंदिरों में पुजारी तैनात हैं। उन्हें राज दरभंगा ट्रस्ट से पूजन सामग्री के लिए 238 रुपए मासिक मानदेय मिलता है। पुजारी बताते हैं कि इतनी राशि से पांच दिनों के फूल-माला का भी खर्च नहीं निकलता है। मंदिर में आने वाले भक्तों के चढ़ावे से काम चल रहा है।
बड़े मंदिर धार्मिक न्यास परिषद के अधीन
युवा पुजारी सौरभ मिश्रा बताते हैं कि चढ़ावे पर भी लोगों की नजर है। जिन मंदिरों में अधिक चढ़ावा आता था वैसे मंदिर अब बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अधीन हैं। उन्होंने बताया कि माधवेश्वर परिसर स्थित मां श्यामा मंदिर में सबसे अधिक चढ़ावा आता था जिससे परिसर के अन्य नौ मंदिरों की देखरेख व तैनात पुजारियों की आजीविका चलती थी। फिर मां श्यामा मंदिर को धार्मिक न्यास परिषद ने अधिगृहीत कर लिया। इसके बाद पुजारियों की दशा और खराब हो गई। श्यामा मंदिर के चढ़ावे से करोड़ों की बैंक एफडी जमा है। प्रतिमाह तीन से चार लाख रुपए की आमदनी मिल रही है। इसके बावजूद मंदिर में तैनात पुजारियों को पांच-सात हजार का मासिक मानदेय मिलता है।
पुरोहित-पुजारी कल्याण बोर्ड का होना चाहिए गठन
जिले के पुजारी मानदेय के बदले वेतन की डिमांड कर रहे हैं। पुजारियों का कहना है कि मानदेय वैसे संस्थान में मिलता है जहां आमदनी सीमित हो। जब आमदनी करोड़ों में है तो न्यास बोर्ड को वेतन देना चाहिए। महिला पुजारी लक्ष्मी देवी, युवा समीर कुमार, रामानुजन झा आदि बताते हैं कि मां श्यामा मंदिर, बाबा कुशेश्वरनाथ मंदिर आदि की आमदनी करोड़ों में है। धार्मिक न्यास बोर्ड बैंक में एफडी बनाकर लाभ अर्जित कर रहा है। भोजन-भंडारे पर रकम खर्च हो रही है, पर पुजारी को मानदेय के तौर पर चंद हजार मिल रहे हैं। इस स्थिति में बदलाव होनी चाहिए। पुजारियों का कहना है कि मंदिरों के पुजारी व पंडितों को निश्चित वेतनमान मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार पुरोहित-पुजारी बोर्ड का गठन करे। जिले में दर्जनों ऐसे मंदिर हैं जहां पुजारियों को एक रुपया भी नहीं मिलता है। ऐसे पुजारी लोगों के घर और दुकान में पूजा-पाठ कर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। बोर्ड गठित होगा तो सभी को समान सुविधा मिलने की राह प्रशस्त होगी। उन्होंने कहा कि जिले के कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी भी जरूरत पड़ने पर पुजारियों की सेवा लेते हैं। उन्हें भी पहल करनी चाहिए।
शिकायत
1. पूजा-पाठ यज्ञ और अनुष्ठान के लिए पुरोहित समाज के लोगों को अक्सर दूर-दराज क्षेत्र में भी जाना पड़ता है। इससे भय बना रहता है।
2. अब ऑनलाइन सिस्टम से भी यजमान काम ले रहे हैं। ऐसे में सरकार भत्ता और अन्य योजनाओं का लाभ पुरोहितों को उपलब्ध कराये।
3. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर स्कूली बच्चों को निजी विद्यालय में नामांकन के लिए सुविधा मिलना चाहिए।
4. पुरोहितों के लिए सरकार स्वास्थ्य बीमा व कम ब्याज पर शिक्षा लोन की व्यवस्था करे।
5. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी सरकार की ओर से विशेष पैकेज नहीं मिलता।
सुझाव
1. पुरोहितों के समाज का बड़ा हिस्सा गरीबी में जीने को विवश हैं। वर्ष में कई महीने उन्हें अच्छी आमदनी नहीं होती।
2. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बच्चों को कम फीस की राशि पर निजी विद्यालयों में नामांकन नहीं मिलता है।
3. डिजिटल युग में लोग बड़े शहरों से पुरोहितों की बुकिंग करते हैं, ऐसे में स्थानीय पुरोहितों का काम प्रभावित होता है।
4. शादी-ब्याह के अवसर पर लोग लाखों करोड़ों की राशि खर्च कर देते हैं, पर दक्षिणा की राशि बढ़ाने में परेशानी होती है।
5. आरक्षण की मार के कारण पुरोहित समाज के युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी नहीं मिल रही है।
-बोले जिम्मेदार-
शिक्षा के अधिकार के तहत जाति आधारित वर्गों के साथ-साथ आर्थिक आधार पर भी कमजोर वर्ग के लोगों को निजी विद्यालयों में नामांकन के समय लाभ मिलता है। हालांकि पुजारी समुदाय की ओर से अभी तक इस तरह की मांग मेरे संज्ञान में नहीं आया है। अगर इस समुदाय की ओर से इस तरह की मांग मेरे माध्यम से की जाएगी तो मैं उसे ऊपर तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा।
- कृष्णनंद सदा , जिला शिक्षा अधिकारी
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