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पूंजी व प्रशिक्षण की कमी अगरबत्ती उद्यमी संकट में

दरभंगा में अगरबत्ती उद्योग तेजी से प्रभावित हो रहा है। कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि और ग्राहक की बढ़ी कीमतों को न स्वीकार करने के कारण उद्यमियों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। 15,000 महिला श्रमिकों...

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाFri, 14 Feb 2025 06:34 PM
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पूंजी व प्रशिक्षण की कमी अगरबत्ती उद्यमी संकट में

 

दरभंगा में तेजी से बढ़ रहा अगरबत्ती उद्योग चरमराने लगा है। कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से मुनाफा घट गया है। ग्राहक- दुकानदार बढ़ी कीमत पर अगरबत्ती खरीदना नहीं चाहते हैं। ऊपर से श्रमिकों को अधिक मजदूरी देनी पड़ रही है। गुणवत्ता घटाकर अगरबत्ती बेचने की तरकीब भी फेल हो चुकी है। इस हालत से स्थानीय अगरबत्ती कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अधिकतर उद्यमियों की आर्थिक स्थिति खराब है। इसके बावजूद बाजार की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए उद्यमी ब्याज पर कर्ज लेकर अगरबत्ती उत्पादन कर रहे हैं। कुटीर उद्यमी अजय झा बताते हैं कि अंतिम कोशिश है। बाजार की स्थिति में बदलाव की उम्मीद बची है इसलिए दोबारा व्यवसाय को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अगरबत्ती मुनाफा देने वाला उद्योग रहा है। इसका कच्चा माल बाहर से आता है। स्थानीय स्तर पर सिर्फ बांस का स्टिक 500 रुपए किलो मिलता है। अगरबत्ती बनाने का सुगंधित केमिकल, चंदन का तेल, जिलेटिन कागज, इत्र, बुरादा, सफेद चिप्स, पैकिंग सामग्री, कलर पाउडर आदि कोलकाता, पटना या दिल्ली से आता है। हाल के दिनों में सभी के दाम में बढ़ोतरी हुई है जिससे लागत बढ़ गयी है। उन्होंने बताया कि अगरबत्ती के 10 रुपए का एक पैकेट पहले तीन रुपए में बनाते थे, अब यह लागत बढ़कर छह रुपए हो गई है। पहले इस मूल्य पर अगरबत्ती का पैकेट दुकानदार को बेचते थे। दुकानदार आठ-नौ रुपए की बढ़ी दर पर अगरबत्ती लेने को तैयार नहीं हैं और ग्राहक भी 10 के बदले 12-15 रुपए में नहीं खरीद रहे हैं। इस कारण कारोबार प्रभावित हो रहा है। उन्होंने बताया कि 10 वर्षों से अगरबत्ती का कारोबार चला रहे हैं। पहले दुकानदार कारखाने पर अगरबत्ती खरीदार आते थे,अब दुकान पर जाकर देते हैं तो वे आनाकानी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दुकानदार भी मुश्किल में हैं। उन्हें अधिक बचत नहीं होगी तो वे क्यों पूंजी लगाएंगे। पहले दुकानदारों को एक पैकेट अगरबत्ती पर पांच रुपए की बचत थी जो घटकर एक रुपए की रह गई है। उन्होंने बताया कि बाजार के बदले हालात से दो हजार अगरबत्ती उद्यमी परेशान हैं।

15 हजार महिला श्रमिकों को सता रहा रोजगार छिनने का डर

जिले में अगरबत्ती के कारोबार से करीब 15 हजार महिला श्रमिक जुड़ी हुई हैं जो प्रतिदिन आठ से 10 घंटे में 400-500 रुपए कमा रही हैं। अगरबत्ती उद्योग बंद होने की स्थिति में महिला श्रमिकों को बेरोजगारी का डर सता रहा है। श्रमिक बच्चादाई देवी बताती हैं कि अगरबत्ती के एक उद्योग से आठ से 10 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि घरेलू कामकाज के बाद अगरबत्ती बनाना आसान है। इसी से परिवार चलता है। उन्होंने बताया कि दो घंटे में 70 पैकेट अगरबत्ती तैयार करते हैं। इससे 100 रुपये की मजदूरी मिलती है। रोज आठ घंटे काम करने पर 500 रुपए मिलते हैं। उन्होंने बताया कि मेहनत के अनुपात में मजदूरी बेहद कम है इसलिए हम लोग व्यवसायियों से मजदूरी बढ़ाने की मांग लंबे अरसे से कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दूसरा कोई काम नहीं आता है। इसे घर-परिवार में रहते हुए करते हैं। अब सुन रहे हैं कि अगरबत्ती बनाने पर व्यापारियों को बचत नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि अगर अगरबत्ती बनाने का उद्योग बंद होता है तो सबसे अधिक परेशानी महिला मजदूरों को होगी। उन्हें दूसरा काम ढूढ़ने में मशक्कत करनी पड़ेगी।

बाजारू प्रतिस्पर्धा में कारोबार बचाने की चुनौती: लोकल अगरबत्ती उद्योग का सालाना करोबार करीब 20-25 करोड़ का है। इसे बचाने के लिए दो हजार से अधिक उद्यमी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, फिर भी कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी की भरपाई नहीं हो रही है। महिला उद्यमी गीता देवी बताती हैं कि अगरबत्ती का व्यवसाय स्वयं सहायता समूह बनाकर करते हैं। इससे पहले सालाना 20 से 30 लाख की बचत होती थी। उन्होंने बताया कि स्थानीय उद्यमियों की अगरबत्ती अच्छी सुगंध और कम कीमत के कारण बिकती है। लागत बढ़ने के बाद स्थिति बदल गई है। 20-25 रुपए में बहुराष्ट्रीय कंपनी निर्मित अगरबत्ती बाजार में मौजूद है। इस कारण इस कीमत पर ग्राहक लोकल अगरबत्ती नहीं खरीदते हैं।

स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो सकता है कच्चा माल

जिला उद्योग विभाग के महाप्रबंधक नवल किशोर पासवान बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त बनाने लिए ही अगरबत्ती व्यवसाय को बढ़ावा मिल रहा है। वैसे इस व्यवसाय को दूसरे उद्यमी कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि फूल की खेती कर किसान भी इस कारोबार से जुड़ सकते हैं। सूखे फूलों से पाउडर और बांस से स्टिक तैयार करके अगरबत्ती व्यवसायी को बेच सकते हैं। इससे किसानों को आमदनी होगी और कारोबारियों को कम कीमत पर कच्चा माल मिल जाएगा। उन्होंने बताया कि लोकल अगरबत्ती उद्योग को प्रतिस्पर्धा से जूझना पड़ता है। अगरबत्ती उद्योग को बढ़ाने के लिए किसानों को इससे जोड़ना होगा। इससे बांस की स्टीक, फूल, गोबर-लकड़ी का बुरादा आदि स्थानीय स्तर पर उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी। इससे काम आसान होगा।

अगरबत्ती की खुशबू औद्योगिक फिजां बदलने में सक्षम

लोग घरों में अगरबत्ती का रोज उपयोग करते हैं। शहर से गांव तक अगरबत्ती का बाजार मौजूद है। पर्व-त्योहारों में इसका व्यापार तेज हो जाता है। व्यवसायी राजेश पंडित आने वाले दिनों में अगरबत्ती कारोबार के बढ़ने की संभावना जताते हैं। बताते हैं कि कारोबार बढ़ेगा, पर स्थानीय उद्यमी बाहर हो जाएंगे। सरकार को अगरबत्ती उद्योग को वृहत रूप देना चाहिए। घर-मंदिर से श्मशान घाट तक लोग अगरबत्ती का उपयोग करते हैं। सुगंध का कारोबार सरकारी प्रोत्साहन मिलने पर खिल उठेगा। इससे दरभंगा की औद्योगिक फिजा बदल सकती है। उन्होंने बताया कि जिले में पूजा के साथ मच्छर मारने वाली अगरबत्ती का भी निर्माण हो रहा है। कच्चे माल के तौर पर बांस का स्टिक जिले में मौजूद है। सरकार एक निर्माण इकाई लगाकर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित कर दे तो अगरबत्ती उद्योग चमक उठेगा। दरभंगा से पूरे मिथिला में अगरबत्ती का निर्यात हो सकता है। उन्होंने बताया कि फिलहाल व्यवसायी पूंजी किल्लत से जूझ रहे हैं। बैंक से ऋण लेने में पापड़ बेलने पड़ते हैं। इस कारण व्यवसायी सूद के जाल में फंस रहे हैं। सिंहवाड़ा के उद्यमी विष्णु शर्मा बताते हैं कि हम लोगों को कच्चा माल सुगमता से उपलब्ध नहीं हो पाता है। साथ ही गुणवत्तापूर्ण अगरबत्ती बनानी पड़ती है क्योंकि बाजार में प्रतिस्पर्धा अधिक है। इस स्थिति ने कुटीर उत्पादकों के सामने कम कीमत पर उत्पाद बेचने की बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है।

प्रस्तुति : राजकुमार गणेशन

 

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