रोजाना काम नहीं मिलने से बढ़ीं मुश्किलें
ग्रामीण दैनिक मजदूरों की आर्थिक दुश्वारियां बढ़ी हैं। 40-50 किलोमीटर यात्रा करने पर भी काम नहीं मिल रहा है। इस वजह से उनका जीवन कठिन हो रहा है। मनरेगा भी उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है। कोविड...
ग्रामीण दैनिक मजदूरों की आर्थिक दुश्वारियां बढ़ी हुई हैं। गांव से 40-50 किलोमीटर का सफर तय करने पर भी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। इससे दैनिक मजदूरों में मायूसी छायी हुई है। बिना मजदूरी के वापस लौटने पर इन्हें घर का चूल्हा कैसे जलेगा, इसकी चिंता सताती है। मजदूर इस स्थिति के लिए सरकार को जिम्मेवार ठहराते हैं। कहते हैं कि राशन कार्ड की सुविधा छोड़ कुछ नहीं मिलता है। रोजी-रोजगार की गारंटी देने वाला मनरेगा भी मजदूरों को काम देने में असफल है। गांव में काम नहीं है। इस वजह से रोज शहर की श्रमिक मंडी में आना मजबूरी है। श्रमिक मंडी में भी रोज काम मिलने की गारंटी नहीं है, पर आस है और अधिक मजदूरी का सहारा है। इस वजह से रोज किराया खर्च कर शहर आते हैं। दैनिक मजदूरों की इस बेबसी से शहर का दोनार, अललपट्टी, बेंता, चट्टी चौक, लोहिया चौक, बाकरगंज, दारूभट्ठी चौक, कोतवाली चौक, मिर्जापुर आदि चौक-चौराहे अहलसुबह से ही गुलजार हो जाते हैं। चाय-पान की दुकानों के सामने रोज मजदूरों की मंडी सज रही है। हाथ में हंसिया, झोले में दोपहर का जलपान और कंधे पर कुदाल लिए मजदूर सड़क किनारे काम कराने वाले लोगों के आने का इंतजार करते हैं। इनकी उम्मीदभरी नजरें आते-जाते लोगों को देखती हैं। बाइक-कार आदि सवारों के रुकते ही मजदूरों के चेहरे खिल जाते हैं। वे श्रम का मूल्य चुकाने वाले खरीदारों से मोलभाव करते हैं। काम के अनुरूप मजदूरी मिलने पर दैनिक मजदूर खरीदार के संग कार्यस्थल की ओर रवाना हो जाते हैं। कुछ मजदूर जिन्हें काम नहीं मिलता है उनके चेहरे उदास हो जाते हैं। वे कुछ देर खामोशी से इधर-उधर देखते हैं और फिर आपस में बातें करते हैं। फिर दोबारा उम्मीद का दामन पकड़ श्रम के खरीदारों के आने की बाट जोहने लगते हैं। हायाघाट के दैनिक मजदूर रामसुखिन दास, दरभंगा सदर के रग्घू यादव, शोभन यादव, बहादुरपुर के अशोक पासवान आदि बताते हैं कि शहर की मंडी में रोज काम तो नहीं मिलता, पर अधिक मजदूरी से कुछ भरपाई हो जाती है। मजदूरों का कहना है कि हम लोग रोज कमाने-खाने वाले हैं। जिस दिन काम नहीं मिलता है उस दिन परिवार खर्च मुश्किल से चलता है। दरभंगा में कोई फैक्ट्री या कारखाना होता तो रोज काम मिलता। अभी तो जो काम मिलता है वही कर लेते हैं। दिनभर की मेहनत से 500-1000 रुपए की कमाई होती है। इससे परिवार का खर्च तो निकल जाता है, पर बीमारी या अन्य जरूरतों के लिए कर्ज लेना पड़ता है। इसका सूद चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। दैनिक मजदूर बताते हैं कि रोज सुबह तीन-चार बजे घर से निकलते हैं। टेंपो या ट्रेन से आने-जाने में रोज 40-50 रुपए किराया खर्च करना पड़ता है। काम मिलता है तो देर रात नहीं तो दोपहर बाद शहर से घर लौट जाते हैं।
महीने में 12 दिन ही मिलता है काम: दरभंगा आने वाले दैनिक मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या रोज काम नहीं मिलना है। मजदूरों की मानें तो महीनेभर में मुश्किल से 12 दिन काम मिलता है। इस कारण जीवन की परेशानी बढ़ रही है। कुशेश्वरस्थान निवासी मजदूर रामशंकर साह, समस्तीपुर के उमेश यादव आदि कहते हैं कि दिल्ली-मुंबई जाना नहीं चाहते हैं। कम पढ़े-लिखे हैं इसलिए महानगर में और दिक्कत होगी। हम लोग खेती करना, कुदाली, कुल्हाड़ी, हंसुआ आदि चलाना जानते हैं। खेती के समय गांव में काम मिलता है, पर मजदूरी कम है। मनरेगा का हाल तो और खराब है। वहां न काम मिलने की गारंटी है और न ही समय पर मजदूरी मिलने की। इसलिए दरभंगा शहर आ जाते हैं। यहां दुकान, घर, बगान, शादी-विवाह आदि में साफ-सफाई का काम मिल जाता है। इससे 1000 रुपए तक की मजदूरी मिल जाती है। उन्होंने बताया कि महीने के तीसों दिन काम मिलता तो स्थिति बेहतर होती।
कोविड महामारी के बाद मजदूरों की बढ़ी तादाद: शहर में दैनिक मजदूरों की तादाद लगातार बढ़ रही है। जानकार इसकी वजह शहरी क्षेत्र में बढ़ते असंगठित रोजगार को मानते हैं, जो निर्माण आदि कार्यों से उत्पन्न हो रहा है। वहीं, मजदूरों की मानें तो कोविड महामारी के दौरान लौटे परदेसी मजदूरों में से 15-20 फीसदी गांव में ही ठहर गए हैं। इससे दैनिक मजदूरों की तादाद में वृद्धि हुई है। बाजार विशेषज्ञ बताते हैं कि शहर में रोज सात से आठ हजार दैनिक मजदूर आ रहे हैं। इनमें से पांच हजार मजदूरों को काम मिल पाता है। बहादुरपुर के दैनिक मजदूर आशुतोष साह कहते हैं कि कोविड महामारी से तीन-चार हजार मजदूर आते थे। महामारी के बाद मजदूर बढ़ गए हैं और काम कम हो गया है। उन्होंने बताया कि मेरे गांव अंदामा में महामारी के दौरान दिल्ली-मुंबई से 200 लोग लौटे थे। उसमें से 35-36 मजदूर अब यही काम कर रहे हैं।
प्रस्तुति : राजकुमार गणेशन
-बोले जिम्मेदार-
दरभंगा जिले में मनरेगा में कमीशन का खेल किया गया है। इस कारण योजनाओं के तहत जिले में न तो सही से काम हुआ और न ही जिले के मजदूरों को रोजगार मिल पाया। इतना ही नहीं, संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के कारण जिले में प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना अमृत सरोवर में भी अनियमितता हुई है। मनरेगा से होने वाले कार्यों में मजदूरों की जगह जेसीबी से काम लिया गया है। इससे दैनिक मजदूर प्रभावित हुए हैं। जिले में अमृत सरोवर योजना के तहत 75 तालाबों तथा पोखरों का सौंदर्यीकरण तथा समग्र विकास होना था जो भ्रष्टचार के कारण नहीं हुआ है। हमने इन मुद्दों को राज्य और केंद्र सरकार के समक्ष उठाया है। दोनों स्तरों पर योजनाओं की जांच होगी।
-डॉ. गोपाल जी ठाकुर , सांसद
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