निष्काम भक्ति से भगवान हो जाते हैं प्रसन्न: स्वामी युगल शरण
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निष्काम भक्ति से भगवान हो जाते हैं प्रसन्न: स्वामी युगल शरण भक्ति से ही मिलती है सच्ची शांति और मोक्ष प्रेम और समर्पण से ही संभव है भगवान की कृपा प्राप्ति फोटो : युगल 01 : बिहारशरीफ के श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में डॉ. स्वामी युगल शरण के प्रवचन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़। बिहारशरीफ, हमारे संवाददाता। शहर के श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में हो रहे प्रवचन के चौदहवें दिन शुक्रवार को स्वामी युगल शरण ने भक्ति के विभिन्न स्वरूपों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने भक्ति को दो भागों में विभाजित किया-सकाम भक्ति और निष्काम भक्ति। उन्होंने कहा कि सकाम भक्ति तीन प्रकार की होती है। पहली, जिसमें व्यक्ति अपने सभी पाप-पुण्य का नाश करके भगवान को प्राप्त करता है, लेकिन फिर भी संसार की इच्छाएँ रखता है। दूसरी, जिसमें भगवान अपनी इच्छा से भक्त को कुछ सांसारिक सुख प्रदान करते हैं। तीसरी और सर्वश्रेष्ठ, जिसमें भक्त केवल श्रीकृष्ण को ही चाहते हैं-उन्हें अपने पुत्र, पति या पिता के रूप में देखने की कामना करते हैं। निष्काम भक्ति के बारे में उन्होंने बताया कि यह वह अवस्था होती है, जिसमें भक्त भगवान की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना लेता है। इसमें स्वार्थ या सांसारिक सुख की कोई अपेक्षा नहीं होती, बल्कि भगवान की सेवा ही सर्वोपरि मानी जाती है। भगवान स्वयं कहते हैं कि जो उनकी निष्काम भक्ति करता है, वे उसके हाथों बिक जाते हैं। स्वामी युगल शरण ने यह भी स्पष्ट किया कि कर्म और ज्ञान को भक्ति की आवश्यकता होती है, लेकिन भक्ति स्वतंत्र होती है। जब कोई व्यक्ति भक्ति करता है, तो ज्ञान और वैराग्य अपने आप आ जाते हैं। इसलिए, भक्त को केवल भगवान की भक्ति करनी चाहिए, और इसके लिए साधन भक्ति के गुणों को समझना आवश्यक है। उन्होंने साधन भक्ति के छह गुणों की चर्चा की। क्लेशघ्नी जो सभी पापों और अज्ञानता का नाश करती है। शुभदा जो सुख प्रदान करती है। मोक्षलघुताकृत जिससे मोक्ष भी भक्ति के सामने तुच्छ प्रतीत होता है। सुदुर्लभा, क्योंकि भक्ति प्राप्त करना कठिन होता है। सान्द्रानंद विशेषात्मा, जो प्रेमानंद को सर्वोपरि मानती है,और श्रीकृष्णाकर्षिणी जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। साधना भक्ति के दो रूप होते हैं-बैधी भक्ति और रागानुगा भक्ति। बैधी भक्ति वह होती है, जो नियमों और विधियों के अनुसार की जाती है, ताकि पापों का नाश हो और नरक का भय दूर हो। दूसरी ओर, रागानुगा भक्ति में केवल प्रेम होता है। इसमें भक्त को किसी नियम की चिंता नहीं होती, न ही उसे स्वर्ग या नरक की परवाह होती है। वह केवल भगवान के प्रति प्रेमभाव रखता है। उन्होंने कहा कि भक्ति प्राप्ति के लिए कुछ शर्तें होती हैं-मोक्ष की भी कोई कामना न हो, सांसारिक सुख की इच्छा न हो, भक्ति को कर्म और ज्ञान से प्रभावित न होने दिया जाए, और भगवान को केवल प्रेम के साथ देखा जाए, न कि उनकी दिव्य शक्तियों के आधार पर। स्वामी युगल शरण ने बताया कि भक्ति के पाँच भाव होते हैं-शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य। शांत भाव में भक्त भगवान को राजा मानता है, दास्य भाव में स्वयं को उनका सेवक समझता है, सख्य भाव में भगवान को मित्र मानता है, वात्सल्य भाव में उन्हें पुत्र के रूप में देखता है, और माधुर्य भाव में उन्हें प्रियतम के रूप में स्वीकार करता है। माधुर्य भाव को सर्वोच्च माना गया है, क्योंकि इसमें अन्य सभी भाव समाहित होते हैं। इस भाव में प्रेम का सर्वोच्च स्तर प्राप्त किया जाता है, और इसका उच्चतम रूप ब्रज की गोपियाँ और राधारानी हैं। जिन्होंने श्रीकृष्ण के लिए पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर दिया था। इस प्रवचन को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। उन्होंने भक्तों को सच्ची भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और बताया कि भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए निःस्वार्थ प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण साधन है।
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