अथाह प्रेम व भक्ति से ही संभव है भगवान की प्राप्ति : स्वामी युगल शरण
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अथाह प्रेम व भक्ति से ही संभव है भगवान की प्राप्ति : स्वामी युगल शरण कहा-कर्म करें, भाग्य के भरोसे न बैठें भगवान को जानने के लिए जरूरी है उनकी कृपा माया को जीतना मुश्किल, लेकिन भगवत्कृपा से सब संभव संसार के सुख-दुख हमारे कर्मों का फल फोटो : युगल 01 : बिहारशरीफ के श्रम कल्याण केंद्र में गुरुवार को आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए डॉ. स्वामी युगल शरण। युगल 02 : श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में डॉ. स्वामी युगल शरण के प्रवचन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़। बिहारशरीफ, हमारे संवाददाता। शहर के श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में ब्रज गोपिका सेवा मिशन के द्वारा आयोजित 'आनंद ही जीवन का लक्ष्य' प्रवचन के पांचवें दिन गुरुवार को डॉ. स्वामी युगल शरण ने कहा कि भगवान को जानना और प्राप्त करना उनकी कृपा से ही संभव है। केवल अपनी बुद्धि, मन या इंद्रियों से भगवान को समझना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा उन्हीं को मिलती है, जो सच्चे मन से उनकी भक्ति करते हैं। वेदों में भी कहा गया है कि भगवान को जानने का एक मार्ग माया को जीतना है। लेकिन यह बहुत कठिन है, क्योंकि माया भी ईश्वर की शक्ति है और ईश्वर के समान ही शक्तिशाली है। इस संसार में कोई भी माया को पूरी तरह नहीं जीत सकता। इसलिए भगवान को पाने का एकमात्र तरीका भगवत्कृपा है। उन्होंने यह भी कहा कि महापुरुषों का संग भगवान तक पहुँचने में मदद कर सकता है, लेकिन सच्चे महापुरुष का संग भी तभी मिलता है जब भगवान कृपा करते हैं। वेद, रामायण और अन्य धर्मग्रंथों से कई मंत्रों और श्लोकों का पाठ करते हुए उन्होंने समझाया कि सभी धर्मग्रंथों में यही बताया गया है कि भगवान की कृपा से ही उन्हें जाना जा सकता है। कर्म करें, भाग्य के भरोसे न बैठें : स्वामी युगल शरण ने यह भी समझाया कि हमें यह सोचकर हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए कि जब भगवान कृपा करेंगे, तभी कुछ होगा। भगवान ने सभी जीवों को कर्म करने की शक्ति दी है और उन्हें स्वतंत्र भी छोड़ा है। हर व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार ही सुख या दुख भोगता है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग यह मानते हैं कि जैसा भाग्य में लिखा है, वैसा ही होगा। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। हमारे लगभग 3% कर्म ही भाग्य के अधीन होते हैं, जबकि 97% कर्म ऐसे होते हैं, जिन्हें करने की स्वतंत्रता भगवान ने हमें दी है। इसलिए यह सोचना कि सब कुछ पहले से तय है और हमें कुछ करने की जरूरत नहीं, यह गलत धारणा है। संसार के सुख-दुख हमारे कर्मों का फल: वैज्ञानिक डार्विन के द्वारा उठाए गए सवालों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि यह संसार हमें दुखमय इसलिए दिखाई देता है क्योंकि यह हमारे कर्मों का परिणाम है। हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार सुख या दुख मिलता है। भगवान हमारे परमपिता हैं और वे हमें दुखों के सागर में नहीं धकेलते। भगवान सर्वव्यापक हैं, लेकिन हम उन्हें अपनी इंद्रियों से महसूस नहीं कर पाते क्योंकि वे दिव्य हैं और हमारी इंद्रियाँ भौतिक। हम अपनी इंद्रियों से केवल भौतिक चीजों को महसूस कर सकते हैं, लेकिन भगवान को जानने के लिए हमें दिव्य दृष्टि की जरूरत होती है, जो उनकी कृपा से ही संभव है। भारी भीड़ जुटी: प्रवचन के अंत में स्वामी युगल शरण ने कहा कि भगवान को जानने के लिए भगवत्कृपा की आवश्यकता है। इसे कैसे प्राप्त किया जाए, इस विषय पर वे अपने अगले प्रवचन में विस्तार से बताएंगे। कार्यक्रम के पांचवें दिन भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे और उनके विचारों को ध्यानपूर्वक सुना। मौके पर सुनील कुमार, मनोज सक्सेना, मोहन दास, गोपाल गुप्ता, विनोद कुमार, पंचम नारायण आदि मौजूद थे।
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