हिन्दी साहित्य जगत के युग प्रवर्तक थे महाकवि जयशंकर प्रसाद
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हिन्दी साहित्य जगत के युग प्रवर्तक थे महाकवि जयशंकर प्रसाद राजगीर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में 136वें जयंती कार्यक्रम में वक्ताओं ने रखे विचार फोटो महाकवि राजगीर : राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में रविवार को जयंती कार्यक्रम की दीप जलाकर शुरुआत करते लोग। राजगीर, निज संवाददाता। हिंदी साहित्य के महान कवि जयशंकर प्रसाद की 136वीं जयंती भव्य रूप से रविवार को अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर राजगीर में कान्यकुब्ज हलवाई समाज की ओर से आयोजित कियी गयी। बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों, कवियों और गणमान्य उपस्थिति रहे। कार्यक्रम में जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विरासत और उनके योगदान को याद किया गया। इस दौरान बाबा गणपति जी, महाकवि जयशंकर प्रसाद, बाबा मोदनसेन जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया। कार्यक्रम के दौरान नन्हे-मुन्ने बच्चों ने गीत, नृत्य, भाषण से समा बांध दिया। उत्तर प्रदेश से आए राष्ट्रीय कलाकार अनिल अकेला मोदनवाल ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बाल स्वरूप की झांकी पेश कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दान कर देते थे पुरस्कार में मिली राशि: जयंती समारोह के अध्यक्ष रणविजय कुमार ने कहा कि जयशंकर प्रसाद को जब भी पुरस्कार मिला है तो वह भी दान कर देते थे। किसी कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करना या किसी सभा का सभापति होना स्वीकार नहीं किया जाता था। कहा कि समाज के लोग उनके दिखाए गए मार्ग का अनुसरण कर समाज को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। ओजस्वी वक्ता ऋचा योगमयी ने कहा कि जयशंकर प्रसाद के साहित्य में नारी के स्वरूप की गहराई भी झलकती है। उन्होंने नारी को समाज की सशक्त आधारशिला के रूप में प्रस्तुत किया। नाट्य लेखन भी प्रभावशाली: हलवाई समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र गुप्ता ने कहा कि उनका नाट्य लेखन भी उतना ही प्रभावशाली था। प्रसिद्ध नाटक ‘स्कंदगुप्त में उन्होंने भारतीय इतिहास की एक महान गाथा को दर्शाया। शासक स्कंदगुप्त के माध्यम से आदर्श शासक की छवि प्रस्तुत की, जो न केवल अपनी प्रजा के प्रति उत्तरदायी होता है, बल्कि राष्ट्र की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करता है। वहीं इसमें स्त्री पात्रों का चित्रण उनके संघर्ष, साहस और सम्मान की बात करता है। ‘मधुराणी और ‘पद्मिनी जैसे पात्र समाज की रूढ़िवादी विचारधाराओं से बाहर अपनी पहचान बनाते हैं। इस नाटक की गूढ़ता और विचारशीलता आज भी हमें यह सिखाती है कि किसी भी समाज और राष्ट्र के निर्माण में न्याय, नैतिकता और कर्तव्य का अत्यंत महत्व होता है। आध्यात्मिक दर्शन का भी प्रमुख स्थान : उत्तर प्रदेश के भोलेंद्र गुप्ता ने कहा कि प्रसाद जी के काव्य और नाटकों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक दर्शन का भी प्रमुख स्थान है। आज के दौर में जब भारतीय समाज अपनी जड़ों से दूर हो रहा है और पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बढ़ रहा है, प्रसाद की रचनाएं हमें भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को पुनः पहचानने और उस मूल्य को स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं। डॉ. अनिल अनल ने महाकवि जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जयशंकर प्रसाद का योगदान भारतीय साहित्य में अनमोल रहेगा और उनके विचारों और रचनाओं का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा। जागरूक करते रहे : उनका साहित्य केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि आज के समय में भी प्रासंगिक और मार्गदर्शक है, जो समाज को निरंतर जागरूक और सशक्त बनाने का कार्य करता रहेगा। कार्यक्रम को गया जिला परिषद अध्यक्ष नैना देवी, हलवाई समाज के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यदेव गुप्ता, लालजी बाबू, सरदार जसवीर सिंह, अशोक गुप्ता, जयप्रकाश गुप्ता, रणजीत कुमार, कोषाध्यक्ष जीतेंद्र गुप्ता समेत दर्जनों लोगों ने संबोधित किया। मंच का संचालन कवि दयानंद गुप्ता एवं वीरेंद्र कुमार ने किया। मौके पर विनय गुप्ता, बीरेंद्र कुमार, महेंद्र गुप्ता, दिनेश प्रसाद (कनाडा), रौशन गुप्ता, पवन गुप्ता समेत सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
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