बोले जमुई : कारोबार को मिले सस्ता लोन, दिया जाए प्रशिक्षण
जमुई शहर में 300 से अधिक टेलर की दुकानें हैं, जहाँ 1500 से अधिक लोग काम करते हैं। रेडीमेड कपड़ों के बढ़ते चलन के कारण दर्जियों को काम की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार से बेहतर प्रशिक्षण और ऋण की...
03 सौ से अधिक दुकानें हैं जमुई शहर में टेलर्स की 15 सौ से अधिक लोग काम करते हैं इन दुकानों पर
10 हजार लोगों का हो रहा इस काम से भरण-पोषण
दर्जी सदियों से अपनी कला और कुशलता से लोगों को संवारते हैं। ऐसे लिबास बनाते हैं, जो व्यक्ति के शरीर की शोभा बढ़ाते हैं। गांव-शहर में जगह-जगह इनकी दुकानें मिल जाती हैं। दुकानें चल भी रही हैं लेकिन बदलते दौर में दर्जियों को भी अपने पुश्तैनी काम में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। रेडीमेड कपड़ों का बाजार इनके धंधे को मंदा कर रहा है। लोग अब कपड़े सिलवाने के बजाय सिले-सिलाए कपड़े खरीद रहे हैं। जमुई शहर में बड़ी संख्या में रहने वाले दर्जी भी परेशान हैं। साल के दो-तीन माह को छोड़ दें तो उनके पास काम का टोटा रहता है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान दर्जी समुदाय ने अपनी परेशानी साझा की।
जमुई शहर में 300 से अधिक कपड़े की सिलाई की दुकानें हैं। इन दुकानों के अधिकतर संचालक और कारीगर वर्षों से कपड़े की सिलाई का कार्य करते रहे हैं। कभी इनकी दुकानों में काम का बोझ इतना रहता था कि कारीगरों को दम लेने की फुर्सत नहीं रहती थी। आज साल के कुछ माह को छोड़ दें तो अधिकतर दुकानों में इक्के-दुक्के ग्राहक आते हैं। जो पुराने ग्राहक हैं, वे आते हैं। लेकिन नई पीढ़ी के लोग दर्जी से कपड़ा सिलवाने बहुत कम आते हैं। मो. खुर्शीद आलम बताते हैं कि समय बदलने के साथ इस पेशे में बदलाव आया है। अब पहले जैसा काम नहीं मिलता है। पहले जैसी कमाई नहीं रही। सरकार को चाहिए कि हमलोगों के लिए कोई योजना लाए।
रेडिमेड कपड़ों का बढ़ रहा कारोबार:
दरअसल रेडिमेड कपड़ों के कारोबार में हो रही बढ़त और बड़ी कंपनियों की बढ़ती पैठ ने दर्जी के पेशे को प्रभावित किया है। लोगों को फुटपाथ से लेकर मॉल तक में अपनी नाप के कपड़े मिल जाते हैं। इसलिए कपड़ा खरीदकर अब वस्त्र सिलवाने के झंझट में कोई नहीं पड़ना चाहता। काम के अभाव और कम मेहनताने ने इस समाज के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी कर दी है। रेडीमेड कपड़ों के चलन और फैशन ने दर्जियों के पारम्परिक व्यवसाय को सीमित कर दिया है। शहर के जनक सिंह मार्केट में दुकान चलाने वाले मो. मुर्शीद अंसारी बताते हैं कि पहले राजनीतिक पार्टियों के नेता खादी के कपड़े थोक में खरीदकर कुर्ता-पजामा सिलवाते थे। अब वे विभिन्न रेडिमेड दुकान में या मॉल में जाकर रेडिमेड खरीद लेते हैं।
छोटे कामगारों का बुरा हाल :
कठिन प्रतिस्पर्धा वाले इस बाजार में बने रहने के लिए दर्जी खुद को ढाल नहीं पा रहे। मो. शहाब अंसारी कहते हैं कि लोग ऑनलाइन कपड़े खरीद लेते हैं। हमारे पास कोई संसाधन नहीं है, जिससे हम अपने उत्पाद को बेहतर बनाएं। बड़ी संख्या में लोग कारीगर के तौर पर काम करते हैं। उनकी अपनी दुकानें नहीं हैं। पैसों की कमी के कारण वे सड़क किनारे दुकान लगाने को मजबूर हैं। उन्हें छोटे-मोटे काम मिलते हैं, जिनमें ज्यादातर रफू आदि के होते हैं।
प्रतिस्पर्धा को चाहिए ऋण और प्रशिक्षण :
दो-ढ़ाई दशक पहले तक शादी-ब्याह और पर्व-त्योहार में दर्जियों की काफी मांग हुआ करती थी, लेकिन आज स्थिति बहुत बदल गयी है। आज महिलाएं ब्लाउज, लहंगा, सलवार सूट आदि महंगे बुटिकों में बनवाती हैं। पहले बुटीकों का प्रचलन ज्यादातर महानगरों में हुआ करता था, पर अब छोटे शहरों और इलाकों में भी ये प्रवेश कर चुके हैं। जिसने छोटे दर्जियों के व्यवसाय को प्रभावित किया है। रेडिमेड कपड़े ऑनलाइन मिल जा रहे। मॉल में बड़ी कंपनियां सेल लगाती हैं, जिनमें कम कीमत में सिले सिलाये मनचाहे वस्त्र मिल जाते हैं। ऐसे में लोग कपड़े खरीदने और दर्जियों की दुकानों में जाने की जहमत नहीं उठाना चाहते। ऐसे में दर्जियों को कारोबार बढ़ाने के लिए सस्ते ऋण और बेहतर प्रशिक्षण की जरूरत है। जानकारी के अभाव में सरकारी योजनाओं को लाभ नहीं मिल रहा।
मॉल में पैसे दे देते हैं, हमसे करते हैं मोलभाव :
सहेली टेलर के मालिक मो. खुर्शीद आलम का कहना है कि वह पिछले 22 वर्षों से दुकान चला रहे हैं। आज हालात बदल गए हैं। हमलोग मेहनत तो बहुत करते हैं, पर उस हिसाब से कमाई नहीं होती। दो-तीन खास पर्व और लग्न छोड़कर हमें काम का अभाव रहता है। आज कल लोग बुटीक और डिजाइनर कपड़ों पर हजारों-लाखों रुपये खर्च करते हैं, लेकिन हमारी मेहनत को नहीं समझते। हमें उस हिसाब से पैसे नहीं देते। मोल-भाव करने लगते हैं। हमारी भी मेहनत है, हमारा भी परिवार है, इस बात को लोग नहीं समझते हैं। दर्जी के काम को भी और व्यापार की मान्यता मिले। योजनाएं शुरू की जाएं, ताकि आने वाले वर्षों में भुखमरी की स्थिति न रहे।
लोन लेने में दिक्कत, नहीं बना लेबर कार्ड :
दर्जियों को अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए ऋण की आवश्यकता होती है, लेकिन बैंक उन्हें ऋण देने में आनाकानी करते हैं। इससे व्यवसाय को बढ़ाने में मुश्किलें आती हैं और वे आर्थिक संकट में पड़ जाते हैं। श्रम संसाधन विभाग की ओर से वर्षों पहले टेलरों को लेबर कार्ड देने का वादा किया गया था, लेकिन आज तक यह वादा अधूरा है। कई दर्जियों को इसके बारे में जानकारी नहीं है। इस कारण कई सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
शिकायतें
1. दर्जी के पेशे में आय अनिश्चित है, निरंतर काम के कारण स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं।
2. दर्जियों को अक्सर सरकार की ओर से दी जाने वाली योजनाओं और संसाधनों का लाभ नहीं मिल पाता है।
3. रेडीमेड कपड़ों के बढ़ते चलन ने दर्जी की सिलाई की मांग को कम कर दिया है।
4. बड़े उद्योगों और व्यवसायों की तरह छोटे दर्जियों के पास अपने काम के प्रचार-प्रसार के लिए कोई पूंजी नहीं है।
5. दर्जियों के लिए सरकार श्रमिक कार्ड की व्यवस्था नहीं कर रही।
सुझाव
1. सरकार को दर्जियों के लिए बनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार बेहतर ढंग से करना चाहिए, जिससे लाभ मिल सके।
2. दर्जियों के लिए बिहार में प्रशिक्षण और कौशल विकास जैसे प्रोग्राम शुरू होने चाहिए।
3. दर्जियों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उत्पाद बेचने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
4. दर्जियों को भी अन्य व्यवसाय की तरह बैंक से न्यूनतम दर पर और बिना शर्त लोन दिया जाए।
5. श्रमिक कार्ड योजना का लाभ मिले, छोटे व्यवसायियों को आर्थिक सुरक्षा दी जाए।
सुनें हमारी बात
दर्जी का कोई संगठन नहीं है, जिससे जुड़कर हम अपना अपनी बात रख सकें। हमें एक ऐसे प्लेटफॉर्म की आवश्यकता है जहां हम अपनी समस्याओं को साझा कर सकें और अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें। इससे हमारे व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी और हमारे परिवार का पालन-पोषण हो सकेगा।
-मो. फिरोज खान
पहले लग्न के मौके पर दर्जियों को 70 प्रतिशत काम मिलता था, लेकिन अब यह काम बहुत कम हो गया है। ऑनलाइन शॉपिंग और रेडीमेड कपड़ों के प्रचलन ने दर्जियों के व्यवसाय को प्रभावित किया है। अब लग्न के मौके पर भी काम नहीं के बराबर मिलता है। हमलोगों की हालात दिन प्रतिदिन और बदतर हो रही है।
- मो. खुर्शीद आलम
पहले कई बड़े लोगों के कपड़े सिलने का ऑर्डर मिलता था। पर अब यह भी बंद हो गया है। एक दिन में 2-4 ग्राहक बड़ी मुश्किल से आते हैं। आज इतनी महंगाई में राशन लेना बहुत मुश्किल हो गया है। पैसे नहीं जुटा पाते हैं, जिससे परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो जाता है।
-मो. बबलू
पुरुष दर्जी जो केवल पुरुषों के कपड़े बनाते हैं, उनके सामने कई समस्याएं हैं। ऑनलाइन शॉपिंग और रेडीमेड कपड़ों के प्रचलन ने उनके व्यवसाय को प्रभावित किया है। इसके अलावा प्रतिस्पर्धा भी बहुत अधिक है, जिससे उन्हें अपने ग्राहकों को बनाए रखने में मुश्किल होती है। आर्थिक संकट बड़ी समस्या है।
-मो. आशिक
जब तक हाथों में ताकत और आंखों में रोशनी होती है, तब तक ही हम कपड़े सिलाई का काम कर पाते हैं। बुढ़ापे में भुखमरी जैसी स्थिति हो जाती है। कई लोग वृद्धावस्था में भी काम करने को मजबूर हैं। उन्हें आर्थिक सहायता या पेंशन का लाभ मिलना चाहिए।
-मो. हारून
सरकार को दर्जियों के लिए बनी योजनाओं का प्रचार प्रसार बेहतर ढंग से करना चाहिए ताकि दर्जी समाज के लोगों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। अपने परिवार का भरण-पोषण बेहतर ढंग से कर सकें।
- मो. नसीम अंसारी
दर्जियों को अपनी कला को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास जैसे प्रोग्राम शुरू करने की जरूरत है ताकि दर्जी समाज भी प्रशिक्षण प्राप्त कर बाजार में कायम रह सके। अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके।
- मो. तौफिक अंसारी
दर्जियों को अपने कौशल को आधुनिक बनाने और नए डिजाइन सीखने की आवश्यकता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उत्पाद बेचने को लेकर सरकार द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- मो. इरशाद
दर्जियों को भी अन्य व्यवसाय की तरह बैंक से न्यूनतम दर पर और बिना शर्त लोन दिया जाए। ताकि दर्जी समाज भी अपने व्यापार को आगे बढ़ा सके और बाजार में कंपिटीशन कर सके।
- मो. अख्तर
सरकार को दर्जियों के लिए श्रमिक कार्ड योजना जल्द से जल्द शुरू करनी चाहिए। इसके बनने से छोटे व्यवसायियों को सुरक्षा मिल सकेगी। साथ ही लोग निर्भीक होकर अपने व्यापार को आगे बढ़ा सकेंगे।
- जियाउल
सरकार दर्जी समाज को सहायता दे तो अपने कारोबार को आगे बढ़कर अपने परिवार का भरण-पोषण आराम से कर सकते हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
- टब्लू ठाकुर
पहले कपड़ा सिलाई में कम पूंजी लगती थी लेकिन अब पूंजी अधिक लगती है और उस हिसाब से हमलोगों की कमाई काफी कम हो गई है। जिस कारण हमलोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- मो. मुर्शीद अंसारी
साल में दो से तीन महीने ही यह कारोबार ठीक ढंग से चलता है। लेकिन बाकी 9 माह हमलोग ग्राहक के इंतजार में रहते हैं। इस कारण दुकान में कार्य करने वाले लोगों को समय पर वेतन देने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- मो. शहाब अंसारी
पहले हमलोगों का कारोबार अच्छा चलता था लेकिन जब से रेडिमेड कपड़े की बिक्री बढ़ी है तब से हमलोगों का कारोबार में काफी गिरावट आई है। बहुत कम लोग कपड़ा सिलाने के लिए आते हैं।
- मो. शमशेर
पहले त्योहार और लग्न से काफी दिन पहले ही लोग कपड़ा सिलाने के लिए देते थे। अब वैसा नहीं रहा। लोग अब यह सोचते है कि कपड़ा सिलाने से अच्छा है कि रेडिमेड कपड़ा ही लिया जाए। इस कारण अब हमलोगों की कमाई काफी कम हो गई है।
- मो. साबीर
अब कपड़ा सिलाने के लिए लोग कम आते हैं जिस कारण हमलोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। परिवार का भरण-पोषण करने में भी परेशानी हो रही है।
-मो. मंसूर
बोले जिम्मेदार
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के अलावा मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत उन्हें सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है।
-मितेश कुमार शांडिल्य, जिला उद्योग महाप्रबंधक
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