बोले भागलपुर: नए कातिबों के लिए बने लाइसेंस, मेहनताना बढ़े
1991 से कातिबों को लाइसेंस देने का प्रावधान है, लेकिन 2003 के बाद से किसी को लाइसेंस नहीं मिला है। 64 कातिब काम कर रहे हैं, जिनका मेहनताना 13 साल से नहीं बढ़ा। कातिबों की समस्याओं में लाइसेंस, बैठने...
1991 से निबंधन कार्यालय के कातिबों को लाइसेंस देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन 2003 के बाद से किसी को लाइसेंस नहीं मिला है। इसके चलते कातिबों की संख्या कम होती जा रही है। वर्तमान में निबंधन कार्यालय में 64 कातिब काम कर रहे हैं। कातिबों के मेहनताना में भी 13 सालों से वृद्धि नहीं हुई है। इसकी लगातार मांग की जा रही है। लाइसेंसधारी कातिब के निधन पर अनुकंपा के आधार पर उनके आश्रितों को लाइसेंस देने का प्रावधान नहीं होने से परेशानी हो रही है। निबंधन कार्यालय में कातिबों को बैठने की बेहतर व्यवस्था नहीं है। शेड के नीचे बैठकर अपना काम कर रहे हैं। निबंधन कार्यालय में जमीन की खरीद-बिक्री में कातिबों (डीड राइटर) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दस्तावेज तैयार करने से लेकर निबंधन की पूरी प्रक्रिया में इनकी भागीदारी होती है। बावजूद कातिब आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। 2012 के बाद कातिबों के मेहनताना में सरकार ने वृद्धि नहीं की है। जबकि महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। नये लोगों को लाइसेंस नहीं मिलने से भी कातिब निराश हैं। बिहार दस्तावेज नवीस संघ के सदस्यों ने बताया कि सरकार द्वारा प्रत्येक तीन साल पर कातिबों के मेहनताना राशि में वृद्धि करने की परंपरा रही है। लेकिन 2012 के बाद से सरकार द्वारा मेहनताना में कोई वृद्धि नहीं की गयी है। वर्तमान में एक रुपये से एक लाख रुपये तक के दस्तावेज तैयार करने का 200 रुपये निर्धारित है। अधिकतम 2500 रुपये तय किया गया है। कातिबों का कहना है कि मेहनताना की राशि में सरकार को वृद्धि करनी चाहिए।
कातिबों की दूसरी बड़ी समस्या लाइसेंस को लेकर है। 1962 से कातिब का काम कर रहे बिहार दस्तावेज नवीस संघ के जिला अध्यक्ष गणेश प्रसाद सिंह ने बताया कि 1991 से सरकार द्वारा मेहनताना तय करते हुए लाइसेंस का प्रावधान किया गया। 2002 में सभी लाइसेंस को रद्द कर दिया गया। 2003 में परीक्षा में सफल होने पर 120 लोगों को कातिब का लाइसेंस मिला। इसके बाद से किसी हो लाइसेंस नहीं मिल रहा है। घटते-घटते कातिबों की संख्या 64 रह गयी है। इस दौरान कई कातिबों की मौत हो गई। लेकिन उनकी जगह उनके पुत्र को अनुकंपा के आधार पर लाइसेंस नहीं मिल रहा है। विभाग के अधिकारियों से संपर्क करने पर बताया जा रहा है कि इसमें रिटायर्डमेंट का प्रावधान नहीं है। इसके चलते अनुकंपा पर लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है।
संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष विभूति तिवारी ने कहा कि कातिबों के साथ सहयोग करने वालों की परीक्षा लेकर सरकार को लाइसेंस देना चाहिए। लेकिन सरकार संघ की मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है। 2003 में पांच लोगों को प्रशिक्षु कातिब का लाइसेंस दिया गया। लेकिन अभी तक उन्हें पूर्ण कातिब का लाइसेंस नहीं मिला पाया है। 2016 में हड़ताल पर चले जाने के चलते विभाग द्वारा सभी का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। बाद में हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में पुन: लाइसेंस दिया गया। संघ के भागलपुर शाखा के अध्यक्ष मदन गोपाल मंडल ने बताया कि सरकार पेपरलेस निबंधन प्रक्रिया शुरू करने पर विचार कर रही है। पेपरलेस होने पर उनलोगों की भूमिका क्या होगी यह सरकार द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है। इसके चलते भविष्य को लेकर संशय की स्थिति है। मध्य प्रदेश में कातिब को सर्विस प्रोवाइडर बनाया गया है। उन्हीं के द्वारा निबंधन की सारी प्रक्रिया पूरी की जाती है। बिहार में भी मध्य प्रदेश जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। कातिबों ने बताया कि किसी कातिब की मृत्यु होने पर उनके आश्रितों को बिहार दस्तावेज नवीस संघ द्वारा दस हजार की सहयोग राशि दी जाती है। सरकार के स्तर से भी ऐसा प्रावधान हो जिससे कातिबों की विशेष परिस्थिति में मौत होने पर उनके परिवार को आर्थिक सहयोग मिल सके।
काम के अनुसार नहीं मिलता है मेहनताना
भागलपुर। बिहार दस्तावेज नवीस संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष विभूति तिवारी ने बताया कि वर्तमान में एक रजिस्ट्री करने पर कातिबों को मात्र 2500 रुपये का मेहनताना मिलता है, जो उनके कार्य के अनुसार नहीं है। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्री के लिए निर्धारित राशि प्रतिशत के आधार पर होनी चाहिए, ताकि कातिबों की आय में सुधार हो सके। उन्होंने बताया कि पेपरलेस प्रक्रिया के कारण कातिबों की भूमिका समाप्त हो सकती है। उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ सकता है। जिससे कई कातिबों के परिवार प्रभावित हो सकते हैं। दस्तावेज नवीस संघ ने पेपरलेस प्रक्रिया में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने की मांग की है, ताकि कातिबों की आजीविका सुरक्षित रह सके और आम जनता को भी रजिस्ट्री प्रक्रिया में किसी प्रकार की असुविधा न हो।
पेपरलेस प्रक्रिया में हो कातिबों की भी भागीदारी
भागलपुर। बिहार दस्तावेज नवीस संघ के शाखा सचिव राकेश कुमार यादव ने बताया कि तकनीकी विकास के कारण रजिस्ट्री की प्रक्रिया सरल होती जा रही है और भविष्य में यह पूरी तरह पेपरलेस हो सकती है। उन्होंने बताया कि विभाग के द्वारा पेपरलेस प्रक्रिया में कातिबों की सहभागिता को स्पष्ट किया जाए, ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित रह सके। वर्तमान में कागज महंगे दाम पर मिल रहा है, उस अनुसार यह निर्णय सही है, लेकिन कातिबों की भूमिका और मेहनताना सुनिश्चित करना आवश्यक है, क्योंकि इसी से उनके परिवारों की जीविका चलती है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर संघ ने काला बिल्ला लगाकर विरोध प्रदर्शन भी किया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आया है।
कातिबों के बैठने के लिए समुचित व्यवस्था बने
भागलपुर। दस्तावेज नवीस संघ के जिलाध्यक्ष गणेश प्रसाद सिंह ने बताया कि कार्यालय परिसर में बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है। जिससे बुजुर्गों और महिलाओं को विशेष कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शुद्ध पेयजल की भी कमी है। गर्मी में लोगों को प्यास बुझाने के लिए महंगे दामों पर पानी खरीदना पड़ता है। उन्होंने बताया कि जिला निबंधन कार्यालय में प्रतिदिन हजारों लोग रजिस्ट्री और अन्य आधिकारिक कार्यों के लिए आते हैं, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है। उन्होंने बताया कि इससे पहले जिला निबंधन कार्यालय में सुविधाओं की कमी को लेकर आवाज उठाई गई है। उन्होंने बताया कि रोजाना दर्जनों रजिस्ट्री होने के बावजूद परिसर में कातिबों के बैठने के लिए उचित प्रबंध नहीं हैं। राजस्व प्राप्त होने के बावजूद बुनियादी सुविधाओं की कमी चिंता का विषय है।
ऑनलाइन प्रक्रिया में बिजली आपूर्ति बाधा
भागलपुर। दस्तावेज नवीस संघ के शाखा अध्यक्ष मदन गोपाल मंडल ने बताया कि ऑनलाइन निबंधन प्रक्रिया के कारण कातिबों और आम जनता को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि निबंधन का अधिकांश कार्य कंप्यूटर पर हो रहे हैं, कंप्यूटर संचालित करने के लिए बिजली की आपूर्ति आवश्यक है,लेकिन कार्यालय क्षेत्र में इसकी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि कातिबों के लिए जो भी बैठने की जगह है, वहां पर बिजली कनेक्शन होना चाहिए। वर्तमान में बिजली आपूर्ति की कमी से कंप्यूटर आधारित कार्य करने में कठिनाई हो रही है। कातिबों के लिए सुविधाजनक बैठने की भी व्यवस्था नहीं है, अगर एक है भी तो बंद पड़ा है,जिससे हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
निबंधन कार्यालय के आसपास बैठ काम कर रहे कातिब
भागलपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। जिला निबंधन कार्यालय के आसपास बैठकर कातिब (डीड राइटर) अपना काम कर रहे हैं। जहां जगह मिली वहीं शेड बनाकर कातिब काम कर रहे हैं। परिसर में शौचालय और पेयजल की भी बेहतर व्यवस्था नहीं है। ई-स्टाम्प का पर्याप्त काउंटर नहीं होने से भी परेशानी हो रही है। भागलपुर शाखा सचिव राकेश यादव ने बताया कि कातिबों के बैठने के लिए भवन निर्माण कराया गया है। लेकिन उसमें ताला लगा हुआ है। जिसके कारण कातिबों को खुले में शेड के नीचे बैठ कर काम करना पड़ता है। गर्मी एवं बारिश के दिनो में काफी परेशानी होती है। यदि बिजली की व्यवस्था कर कातिबों के बैठने की व्यवस्था की जाए तो ऑनलाइन या ऑफलाइन काम करने में सहूलियत होगी। लैपटॉप से काम करने पर उसे चार्ज करने के लिए बिजली चाहिए। यह तभी संभव है जब कातिबों को बैठने के लिए उचित व्यवस्था हो।
संघ के आय-व्यय निरीक्षक सच्चिदानंद सिंह ने कहा कि रोज काफी संख्या में लोग जमीन की खरीद-बिक्री करने के लिए निबंधन कार्यालय आते हैं। शौचालय और पेयजल की स्थिति भी अच्छी नहीं है। शौचालय की तरफ इशारा करते हुए कहा कि जाकर देख लीजिए। ताला लगा हुआ है। अंदर में अक्सर पानी वाली टोटी टूटती रहती है। बिहार दस्तावेज नवीस संघ का संचालन सदस्यों की सहयोग राशि से होता है। सदस्यों से सालाना 350 रुपए शुल्क लिया जाता है। संघ के किसी सदस्य के निधन पर उसके आश्रितों को बिहार दस्तावेज नवीस संघ द्वारा सहयोग राशि दी जाती है। सरकार के स्तर पर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि विशेष परिस्थिति में कातिब की मौत होने पर उनके परिवार को आर्थिक सहयोग मिल सके।
निबंधन कार्यालय में काउंटर की संख्या बढ़े
संघ के मीडिया प्रभारी राजीव किशोर भारती ने बताया कि ई-स्टांप के लिए निबंधन कार्यालय में एक काउंटर है। भीड़ के कारण ई स्टाम्प या चालान प्राप्त करने में परेशानी होती है। विभाग द्वारा काउंटर की संख्या बढ़ाकर पांच करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हर तीन साल पर बिहार दस्तावेज नवीस संघ का चुनाव होता है। चुनाव में प्रत्याशी सिर्फ वही बन सकता है जो मान्यता प्राप्त कातिब हैं।
बिहार के कातिबों को सर्विस प्रोवाइडर बनाया जाय
संघ के भागलपुर शाखा अध्यक्ष मदन गोपाल मंडल ने बताया कि जमीन रजिस्ट्री की प्रक्रिया पेपरलेस होने पर उनलोगों की भूमिका क्या होगी यह सरकार द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है, जिससे उनलोगों के मन में अपने भविष्य को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। यदि सरकार बिहार में पेपरलेस प्रक्रिया लागू करती है तो उसमें मध्य प्रदेश की तर्ज पर कातिबों को सर्विस प्रोवाइडर बनाया जाय।
शिकायत
1. चेंबर बनने के बावजूद काउंटर और कातिबों के बैठने के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है। खुले शेड के नीचे काम करने में परेशानी होती है।
2. कातिबों के साथ सहयोगी के रूप में वर्षों से काम करने वालों को लाइसेंस नहीं मिल रहा है।
3. सरकार की ओर से कातिबों को कोई आर्थिक सुविधा नहीं मिलती।
4. पर्याप्त साफ-सफाई का अभाव। शौचालय में ताला लगा होने से यहां काम करने वालों को परेशानी होती है।
5. ई स्टाम्प और चालान काउंटर कम होने से आम लोगों को काम कराने में काफी देर और परेशानी होती है।
सुझाव
1. पीढ़ी दर पीढ़ी काम करने वाले कातिबों और उनके बच्चों को अनुकंपा की तर्ज पर लाइसेंस मिले और आर्थिक लाभ भी।
2. लंबे समय से इस पेशे से जुड़कर कातिब के साथ काम करने वाले सहयोगियों को पूर्व की प्रक्रिया के तहत लाइसेंस निर्गत हो।
3. विशेष परिस्थिति में कातिब की मौत पर सरकार की ओर से पहल कर आर्थिक सहायता के लिए प्रवधान किया जाना चाहिए।
4. शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्था दुरूस्त होनी चाहिए।
5. मध्य प्रदेश की तर्ज पर बिहार में पेपरलेस प्रक्रिया लागू हो, कातिबों को सरकार द्वारा ऑनलाइन के लिए सर्विस प्रोवाइडर बनाया गया।
इनकी भी सुनिए
1. जिले में पहले 100 से अधिक कातिब कार्यरत थे, लेकिन समय के साथ उनकी संख्या में कमी आई है, डिजिटल युग में चुनौती बढ़ गई है, जिसके कारण कातिबों की जरूरत भी कम होती जा रही है।
-मिथलेश कुमार (शाखा उप सचिव)
2. वर्तमान में लाइसेंस प्रक्रिया पूरी तरह से परीक्षा आधारित है, लेकिन इसके बावजूद नई लोगों को भी लाइसेंस प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए।
-मो. इरशाद(कातिब)
3. काम के अनुसार उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है। पिछले तीन वर्षों तक मेहनताना में वृद्धि होने का प्रबन्धन है,लेकिन अब यह पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
-राजीव किशोर भारती(मीडिया प्रभारी)
4. कातिबों के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी है।बैठने की उचित व्यवस्था, शौचालय और पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं।
-अवध बिहारी पासवान(कातिब)
5. प्रशिक्षुओं को लाइसेंस नहीं दिया जाता है, जिससे उन्हें काफी परेशानी हो रही है।हम पांच लोग इस प्रक्रिया में शामिल हैं, लेकिन अभी तक हमें लाइसेंस नहीं मिला है, जबकि हमें भी इसका हक मिलना चाहिए।
-बलराम सिंह (कातिब)
6. बढ़ती महंगाई और काम के बढ़ते बोझ के बावजूद मेहनताना में कोई वृद्धि नहीं किया गया है, जिससे कातिबों में असंतोष बनी रहती है, काम के अनुसार मेहनताना मिले।
-मो मकसूद आलम(कातिब)
7. कातिबों के लिए समुचित बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे अपने कार्य को सुचारू रूप से कर सकें।वर्तमान में बैठने की पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण कातिबों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
-जनार्दन प्रसाद सिंह(कातिब)
8. पहले दस्तावेज तैयार करने और लिखित कार्यों के लिए कातिबों की बड़ी मांग थी, लेकिन डिजिटल दौर के कारण उनकी भूमिका सीमित होती जा रही है। अब अधिकतर कार्य कंप्यूटर टाइपिंग के माध्यम से किए जाने लगे हैं।
-सच्चिदानंद सिंह, (दस्तावेज नवीश संघ के आय व्यय निरीक्षक)
9. लाइसेंस प्रक्रिया को पुनः शुरू किया जाना चाहिए, ताकि इच्छुक युवाओं को रोजगार का अवसर मिल सके।अगर यह प्रक्रिया फिर से शुरू होती है, तो नए उम्मीदवारों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
-सोनू कुमार (कातिब)
10. रजिस्ट्री का अधिकांश कार्य अब कंप्यूटर आधारित हो गया है, लेकिन क्षेत्र में बिजली और नेटवर्क की समस्याओं के कारण कातिब अपना काम सुचारू रूप से नहीं कर पा रहे हैं।
-उदय कुमार सिंह (कातिब)
11. लाइसेंस मिलने की प्रक्रिया अनुकंपा आधारित भी होनी चाहिए, ताकि आश्रित परिवारों को लाभ मिल सके। कातिब की मृत्यु के बाद उनके आश्रितों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसलिए लाइसेंस देने की प्रणाली में अनुकंपा के आधार पर भी प्रावधान होना चाहिए।
-श्यामसुंदर दत्ता (कातिब)
12. वर्तमान में एक रजिस्ट्री करने पर मात्र 2500 रुपये मिलते हैं, जो वर्तमान समय में उचित नहीं है। बढ़ती महंगाई और काम की जटिलताओं को देखते हुए इस मेहनताना में वृद्धि होनी चाहिए।
-मो. माज उर्फ लकी (कातिब)
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