बोले सहरसा : सेशन बदलने के बाद दोबारा नामांकन फीस लेनी बंद करें
निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल हो रहा है। स्कूल फीस, किताबें, ड्रेस और अन्य सामग्रियों के लिए मनमानी वसूली की जा रही है। अभिभावक शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन की अनदेखी से...
निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल होता जा रहा है। स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से स्कूल की फीस ली जाती है। उसके बाद किताब, कॉपी, ड्रेस के लिए हजारों की राशि वसूली जाती है। किताबें व ड्रेस स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान से ही मिलते हैं। दुकान में मनमानी कीमत वसूली जाती है। निजी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने वाले अभिभावकों ने हिन्दुस्तान से अपना दर्द बयां किया।
02 सौ 84 से अधिक निजी स्कूल जिले के विभिन्न इलाकों में हैं प्रस्वीकृत, होती है पढ़ाई
05 से 07 हजार तक नए सत्र के दौरान स्कूल की किताब खरीदने में आता है खर्च
03 से चार हजार तक स्कूल ड्रेस व टाई के नाम पर स्कूलों द्वारा ली जा रही राशि
अभिभावक निजी स्कूलों के मनमानी से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि ना तो शिक्षा विभाग इस ओर ध्यान दे रहा है और ना ही जिला प्रशासन निजी स्कूलों की मनमानी पर किसी प्रकार की कार्रवाई कर रहा है।
स्कूलों द्वारा फीस के नाम पर हजारों की राशि ली जाती है। क्लास बदलने पर भी नामांकन शुल्क लिया जाता है। इसके बाद किताब खरीदने में हजारों की राशि लगती है। कारण साफ है कि स्कूल, प्रकाशकों व किताब दुकानदारों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा चल रहा है। जहां एनसीईआरटी की किताब एक हजार में आती है वहीं निजी प्रकाशकों की किताब खरीदने के लिए पांच से सात हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जिले में संचालित अधिकांश स्कूलों द्वारा हर साल सिलेबस बदल दिया जाता है ताकि सीनियरों की किताब से जूनियरों का काम नहीं चले बल्कि उन्हेंनईर् किताब खरीदनी पड़े। इस पूरे धंधे में एक तंत्र काम कर रहा है। विरोध करने पड़ स्कूल के मालिकों व प्राचार्यों द्वारा नाम काटने की धमकी तक मिल जाती है। लिहाजा बच्चों के भविष्य को देखते चुप रहना मजबूरी है।
अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधकों द्वारा स्कूल का नाम अंकित कॉपी खरीदने का दबाव दिया जाता है। यह कॉपी पर लिखित मूल्य पर ही मिलता है। जबकि सामान्य कॉपी हॉलसेल में खरीदने पर 15 से 20 प्रतिशत तक की छूट मिल जाती है। इसी तरह कई स्कूलों द्वारा निर्धारित काउंटरों से ही ड्रेस, टाई व बेल्ट खरीदने को कहा जाता है। निर्धारित दुकान पर ड्रेस की काफी कीमत रहती है। जिस कारण अभिभावकों की पहले से ढीली जेब पर और बोझ बढ़ जाता है। अभिभावकों का कहना है कि सरकारी तंत्र का किसी प्रकार का नकेल निजी स्कूलों पर नहीं है। कई बार शिकायत भी होती है लेकिन वह फाइलों में दबकर रह जाती है। लिहाजा निजी स्कूलों की मनमानी चलती रहती है। यहां तक जिले के 30 से 40 स्कूल ही ऐसे हैं जो मानकों पर खड़े हैं लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा रेवड़ियों की तरह प्रस्वीकृति बांटी गई है। अगर अभी भी सही ढंग से जांच हो तो जिले के अधिकांश निजी स्कूलों पर ताला लटक सकता है।
कमेटी बनी लेकिन सिर्फ फाइलों तक: मनमाने ढ़ंग से किताब का चयन और अभिभावकों के जेब पर बढ़ते बोझ को देखते हुए वर्ष 2016 में तत्कालीन डीएम के निर्देश पर तत्कालीन डीइओ ने डीपीओ के नेतृत्व में किताब चयन के लिए डीएक कमेटी भी गठित की थी लेकिन वह कमेटी फाइलों में दबकर रह गई।
कमेटी को निर्देश दिया गया था कि वह निजी स्कूलों को एनसीईआरटी की किताब के अलावा सस्ती किताब का ही चयन करे ताकि निजी स्कूल में बच्चे को पढ़ाने वाले अभिभावकों पर आर्थिक बोझ नहीं पड़े। निजी स्कूलों पर किसी प्रकार की बंदिश नहीं होने के कारण किताब मनमाने ढ़ंग से चयनित किया जाने लगा है। एनसीईआरटी की किताब तो अधिकांश स्कूलों के बच्चों को देखने तक को नसीब नहीं होती बल्कि उनकी जगह पर चेहते प्रकाशकों की किताब से पढ़ाई कराई जा रही है।
किताब की दुकान पर होता रहा है हंगामा
निजी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के अभिभावक जब किताब की दुकान पर पहुंचते हैं तो उन्हें किताब का बजट समझ से परे लगता है। मजबूरन वे कई किताब छोड़कर बच्चे की जरूरत पूरी करते हैं। किताब भी छपी मूल्य पर ही खरीदना होता है जिस कारण कई बार अभिभावक आक्रोशित हो उठते हैं और हंगामा भी कर बैठते हैं। पहली कक्षा की किताब तीन से चार हजार में मिलती है। ऊंची कक्षा की किताब तो काफी महंगी होती है। पिछले साल भी इस तरह का वाकया सामने आया था। हालांकि अभी नया सत्र शुरू नहीं हुआ है।
शिकायतें
1. नामांकन के नाम पर 5 से 6 हजार चार्ज किया जाता हैै
2. सेशन बदलने के नाम पर दुबारा नामांकन कराया जाता है।
3. स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान से ही किताब और कॉपी खरीदवाया जाता है।
4. स्कूल ड्रेस, टाई, बेल्ट व अन्य सामान भी निर्धारित दुकान से ही लेना अनिवार्य रहता है।
सुझाव
1. नामांकन के नाम पर अवैध वसूली पर रोक लगायी जाए।
2. सेशन बदलने के बाद दुबारा नामांकन कराना बंद हो।
3. अभिभावकों पर बच्चों किताब अपने मन से, किसी भी दुकान से खरीदने का छूट मिले।
4. स्कूल द्वारा चयनित किए गए दुकान से ही पाठय व अन्य सामग्री खरीदवाना बंद हो।
सुनें हमारी बात
बच्चे जब अपर क्लास में प्रवेश करते हैं तो फिर से नामांकन चार्ज नहीं हो।
अभय
निजी स्कूलों के मनमानी से गरीब व मध्यवर्गीय परिवार के बच्चे भी नहीं पढ़ पाते हैं।
संजय कामत
जिला प्रशासन द्वारा निजी स्कूल की मनमानी पर रोक लगाने के लिए टीम गठित हो।
बम कुमार
निजी विद्यालयों के द्वारा अभिभावकों को हर तरह से परेशान किया जाता है।
अर्जुन
एक सप्ताह में दो तरह ड्रेस लेने के नाम पर निजी स्कूलों के संचालक परेशान करते हैं।
सुबोध
निजी स्कूलों में नामांकन के नाम पर 5 से 7 हजार वसूली होती है जो गलत है।
मुकेश यादव
निजी स्कूलों द्वारा की जा रही अवैध वसूली पर जिला प्रशासन द्वारा रोक लगाई जाए।
पंकज
बच्चे का कॉपी भी स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान से ही खरीदना पड़ताहै।
टिंकू सोनी
निजी स्कूलों द्वारा चयनित बुक स्टोर से किताब खरीदने का प्रतिबंध हटे।
राजकुमार पासवान
चार से पांच हजार की किताब निजी पब्लिकेशन की खरीदने की व्यवस्था पर रोक लगे।
बबलू
हर वर्ष सेशन बदलने के बाद किताब बदल दिया जाता है। आर्थिक बोझ बढ़ता है।
पवन
अभिभावकों को जहां सुविधा में किताब एवं कॉपी मिले वहां से लेने दिया जाए।
रमेश कामत
एनसीईआरटी किताब की जगह स्कूल निजी प्रकाशक की किताब खरीदवाते हैं।
नीरज
ड्रेस, टाई, बेल्ट के नाम पर तीन से चार हजार का चार्ज निजी विद्यालयों द्वारा किया जा रहा।
पप्पू
जिला प्रशासन निजी स्कूलों पर संज्ञान ले जिससे आर्थिक बोझ कम पड़े।
लालो साह
बोले जिम्मेदार
निजी स्कूलों की सर्व शिक्षा अभियान द्वारा लगातार निगरानी की जा रही है। निजी स्कूलों को एनसीईआरटी या बीटीसी की किताब से पढ़ाई करानी चाहिए। जहां तक इस संबंध में कमेटी गठित करने का सवाल है तो इस बारे में एसएसए को निर्देश दिया जाएगा। निजी स्कूल में बच्चे को पढ़ाने वाले अभिभावकों पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पड़ने दिया जाएगा।
- अनिल कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी, सहरसा
निजी स्कूलों को आरटीई के तहत मिलने वाली राशि छह सालों से नहीं मिली है। उसे देने की प्रक्रिया शुरु की जाय, ताकि उनकी परेशानी कुछ हद तक दूर हो सके। 2016 में किताबों के लिए कमेटी गठित होने के बाद अधिकारी बदले तो इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। निजी स्कूलों को सुविधा मिले तो वह विभाग का निर्देश मानने को तैयार है। किताब चाहे एनसीईआरटी की हो अथवा बीटीसी की सभी से पढ़ाने को तैयार हैं।
- रामसुंदर साह, चिल्ड्रेन स्कूल एसोसिएशन
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