बोले जमुई : दिल्ली जाना हो तो किऊल व पटना से पकड़ते हैं रेलगाड़ी
भारतीय रेल तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन जमुई स्टेशन अब भी उपेक्षित है। यहां सुविधाओं का अभाव है, और यात्रियों को लंबी दूरी की यात्रा के लिए अन्य स्टेशनों पर निर्भर रहना पड़ता है। यात्री सफाई,...
भारतीय रेल दिनों दिन विकास की रफ्तार पकड़ रही है किन्तु हावड़ा-नई दिल्ली मुख्य रेलखंड पर अवस्थित जमुई स्टेशन आज भी उपेक्षित है। इस स्टेशन से रोज हजारों लोग उतरते एवं चढ़ते हैं किन्तु सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान जमुई स्टेशन पर यात्रियों ने बताया कि चार जिले के लोग यहां से रोज सफर करते हैं। ट्रेन में सामान्य श्रेणी की बोगियां कम हैं। यात्री भेड़-बकरियों की तरह सवार होते हैं। सफाई और सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली के लिए सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। इसके लिए किऊल या पटना जाना होता है।
02 ही प्लेटफॉर्म हैं जमुई रेलवे स्टेशन पर, लंबाई भी है कम
27 जोड़ी ट्रेनें रुकती हैं स्टेशन के अप व डाउन प्लेटफॉर्म पर
06 टिकट काउंटर हैं जमुई स्टेशन पर, इसे बढ़ाने की है जरूरत
17 लाख की आबादी वाले जिला मुख्यालय का स्टेशन होने के बावजूद जमुई स्टेशन पर लंबी दूरी की ट्रेनों का ठहराव नहीं है। यहां से नई दिल्ली के लिए रोज ट्रेन नहीं चलती है। इसके लिए किऊल या पटना जाना पड़ेगा। लोग इस स्टेशन से अपनी सुविधा के अनुसार सफर नहीं कर सकते और न ही अपनी इच्छा से आ सकते हैं। सप्ताह में तीन दिन ही दिल्ली जाने के लिए ट्रेन मिलेगी। इसके अलावा आईटी सेक्टर में पढ़ने और काम करने वाले लोग भी बेंगलुरु, पुणे, मुंबई की यात्रा जमुई से नहीं कर सकते। इसके लिए उन्हें पटना या अन्य स्टेशनों की सेवा लेनी पड़ती है। बीमार लोग इलाज के लिए दिल्ली, वेल्लौर, मुंबई नहीं जा सकते हैं। जिले के लोग लंबी दूरी की यात्रा के लिए अन्य स्टेशन का सहारा लेते हैं, जिससे उनकी परेशानी बढ़ जाती है।
लंबी वेटिंग लिस्ट से यात्री होते हैं असहज
बड़ी आबादी व लंबी दूरी के ट्रेन के अभाव के कारण यात्रियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें लंबी वेटिंग लिस्ट, कंफर्म सीट के लिए भीषण प्रतिस्पर्धा, टिकट ब्लैकमेलिंग होती हैं। बुकिंग काउंटर खुलते ही इस स्टेशन से कंफर्म टिकट मिलना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा खराब गुणवत्ता वाले खाने-पीने के सामान, यात्रियों और उनके सामान की सुरक्षा संबंधी चिंताएं रहती हैं। स्लीपर तथा जनरल कोचों में टॉयलेट की सफाई नहीं होती है। यात्री बताते हैं कि जब हम रेलवे से टिकट खरीदकर यात्रा करते हैं, तो हमें पूरी सुविधा मिलनी चाहिए।
स्टेशन पर बुजुर्गों के लिए हो लिफ्ट व स्वचालित सीढ़ी:
रेल यात्री धीरेंद्र सिंह ने बताया कि इस स्टेशन पर वृद्ध यात्रियों के लिए कोई सुविधा नहीं है। न ही बुजुर्गों के लिए अलग से टिकट काउंटर है और न ही अप से डाउन प्लेटफार्म पर जाने के लिए स्वचालित सीढ़ियां है। उन्हें एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है जिसमें वे हांफ जाते हैं। यहां पर स्वचालित सीढ़ियां लगनी चाहिए जिससे बूढ़ों और महिलाओं को आसानी हो। रेलयात्री नवल किशोर पांडेय ने बताया कि इस स्टेशन से खुलने वाली अधिकांश एक्सप्रेस ट्रेन में एसी और स्लीपर कोच की संख्या ज्यादा रहती है। सामान्य यात्रियों को सामान्य श्रेणी के डिब्बे में भेड़-बकरी की तरह ठूंस कर यात्रा करनी पड़ती है। यदि यात्री टिकट के पैसे देते हैं तो उन्हें इतनी तो सुविधा मिलनी चाहिए कि वे बैठ कर यात्रा कर सकें।
सामान्य श्रेणी की बोगियों में हो बढ़ोतरी:
रेल यात्री जयमंती देवी ने बताया कि हाल ही में प्रयागराज यात्रा के दौरान ट्रेन के कोचों में लोग, महिला और बच्चे, एक-दूसरे के ऊपर ठुंसे हुए थे। इस वजह से उनकी रिश्तेदार को गश आ गया और वे बेहोश हो गईं। यह स्थिति न केवल यात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरनाक है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इसी प्रकार बबलू यादव ने स्लीपर और जनरल क्लास के कोचों में यात्रियों की अत्यधिक भीड़ का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि इन कोचों में क्षमता से डेढ़ से तीन गुना अधिक यात्री यात्रा करते हैं, जिसके कारण कई यात्री कोच में नीचे चादर बिछाकर लेट जाते हैं। इससे महिलाओं और बच्चों को शौचालय का उपयोग करने में भी कठिनाई होती है। इन सभी समस्याओं के मद्देनजर, सरकार को रेलवे सेवाओं में सुधार लाने की जरूरत है। यात्रियों की सुरक्षा, आराम और सुविधा के लिए सरकार को अधिक ट्रेनें संचालित करनी चाहिए, साथ ही साथ बेहतर खानपान, सुरक्षित यात्रा और यात्री क्षमता की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। यह भारतीय रेलवे की जिम्मेदारी है कि वह अपने यात्रियों को एक सुरक्षित, आरामदायक और गुणवत्तापूर्ण यात्रा अनुभव प्रदान करे।
कुंभ स्नान के और भी ट्रेनों की हो व्यवस्था :
जिले से गुजरने वाली अधिकांश ट्रेनों में सालों भर भारी भीड़ रहती है। देश की सबसे अधिक आबादी निम्न और मध्यम वर्ग की है, लेकिन रेलवे में जनरल कोचों की संख्या बहुत कम है, जिससे यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसी तरह एक अन्य रेलयात्री साकेंद्र राम ने भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि स्टेशन के बगल में नाला है जिसकी दुर्गंध से यात्री परेशान हो जाते हैं। उनका मानना है कि रेलवे को प्रयागराज के लिए और अधिक ट्रेनें चलानी चाहिए। सोशल मीडिया के माध्यम से भी वह अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं।
ट्रेन में महिलाओं की सुरक्षा हो सुनिश्चित :
रेल प्रशासन से यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। जैसे ट्रेन में महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस का प्रबंध, चलती ट्रेनों में पूछताछ सहायता की सुविधा और आपातकालीन चिकित्सा सेवा का प्रबंध करना चाहिए। इन कदमों से यात्रियों की यात्रा को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जा सकता है। इन समस्याओं का समाधान रेलवे प्रशासन द्वारा प्रभावी उपायों के माध्यम से किया जा सकता है। अधिक जनरल कोच, अतिरिक्त ट्रेनें और यात्रियों की सुरक्षा के लिए सुविधाओं का विस्तार इन मुद्दों का हल हो सकता है। इससे यात्री अधिक आराम से और बिना किसी डर के अपनी यात्रा कर सकेंगे, खासकर जब वे महत्वपूर्ण धार्मिक अवसरों पर यात्रा कर रहे हों।
शिकायतें
1. रेल प्रशासन को भीड़ के समय अधिक टिकट काउंटर नहीं खोलता। आसानी से कंफर्म टिकट नहीं मिल पाता।
2. रेल प्रशासन को अनधिकृत वेंडरों को ट्रेन में और रेलवे प्लेटफॉर्म पर खाने-पीने की बिक्री पर रोक नहीं लगाता।
3. पर्व-त्योहार व विशेष मौके पर रेल प्रशासन को भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था नहीं होती। सही जानकारी नहीं मिलती।
4. स्टेशन पर बुजुर्गों के लिए लिफ्ट या स्वचालित सीढ़ी की व्यवस्था नहीं होने से परेशानी होती है।
सुझाव
1. टिकट लेकर ही यात्रा करें, ट्रेन में सीट न मिलने पर ट्रेन सुपरिंटेंडेंट से मिलें। कंफर्म टिकट के साथ ही यात्रा करें।
2. प्लेटफार्म और ट्रेन दोनों में केवल ब्रांडेड सील्ड पानी बोतल की बिक्री सुनिश्चित की जानी चाहिए।
3. यात्रा के दौरान अपने सामान पर नजर बनाए रखें और अजनबियों से खाने-पीने के सामान न लें।
4. आपातकाल में रेलवे हेल्पलाइन नंबर 139 पर संपर्क करें। यात्री अपने नजदीकी संबंधी का मोबाइल नंबर लिखकर रखें।
सुनें हमारी बात
मधुपुर स्टेशन जाना है। इंटरसिटी एक्सप्रेस की सामान्य बोगी में पैर रखने की जगह नहीं थी। रेल प्रशासन को सभी ट्रेनों में सामान्य बोगी की संख्या बढ़ानी चाहिए।
अजय राम, महादेव सिमरिया
जमुई स्टेशन पर वरिष्ठ नागरिक की सुविधा का ख्याल नहीं रखा गया है। एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए एस्केलेटर का होना जरूरी है। सीढ़ी के माध्यम से बुजुर्ग हांफ जाते हैं।
धीरेंद्र सिंह, मलयपुर
जमुई स्टेशन पर टिकट कटाने में यात्रियों के पसीने छूट जाते हैं। कारण भीड़ के अनुसार यहां टिकट काउंटर नहीं खुलता है।
गोरेलाल यादव, जावातरी
डाउन प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। प्लेटफार्म के बगल की नाली से बदबू आती है इसे देखने वाला कोई नहीं है।
नबल किशोर पांडेय, जमुई
जमुई स्टेशन पर महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं है। जो है वह भी गंदा रहता है। आवश्यकता पड़ने पर हम कहां जाएं।
जयमन्ती देवी, महादेव सिमरिया
माता-पिता को ट्रेन पर चढ़ाने जमुई स्टेशन आए हैं। इन्हें प्रयागराज जाना है। ये लोग पहले झाझा स्टेशन जाएंगे फिर वहां से ट्रेन पकड़कर प्रयागराज। अगर डायरेक्ट ट्रेन होती तो पैसा और समय दोनों बचता।
संजीव कुमार, थाना चौक जमुई
हावड़ा स्टेशन जाना है। सुबह जनशताब्दी एक्सप्रेस के बाद हावड़ा स्टेशन जाने के लिए फिर शाम 5 बजे हावड़ा मोकामा पैसेंजर है। सरकार को यात्री सुविधा को देखते हुए ट्रेनों की संख्या बढ़नी चाहिए।
बब्लू यादव, कुंदर, लखीसराय
रात में स्टेशन पर उतरने के बाद जिला मुख्यालय आने में वाहन चालक काफी परेशान करते हैं। प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है। यात्रियों का शोषण न हो।
रितेश कुमार
डाउन प्लेटफार्म छोटा है। कभी-कभी लंबी बोगियां वाली ट्रेन प्लेटफार्म के बाहर रह जाती है। इससे यात्री परेशान हो जाते हैं। प्लेटफॉर्म की लंबाई बढ़ाई जाए।
डॉ निरंजन कुमार दुबे
प्लेटफार्म पर काफी कम क्षेत्र में शेड है। बारिश और गर्मी के समय में यात्रियों को परेशानी होती है। शेड का आकार बढ़ाना चाहिए।
प्रीति कुमारी
अब से डॉउन प्लेटफॉर्म को जोड़ने वाली ओवरब्रिज की सीढ़ियां जर्जर हो गई हैं। सुधार की आवश्यकता है। एस्केलेटर बने।
उपेंद्र तिवारी
ट्रेन की बोगियां नंबर के हिसाब से कहां खड़ी होगी, इसकी समुचित व्यवस्था प्लेटफार्म पर नहीं है। कभी-कभी परेशानी हो जाती है।
मनोरमा देवी
पीने के पानी की दोनों प्लेटफार्म पर समुचित व्यवस्था नहीं है। इसके लिए पीने के पानी के पॉइंट को बढ़ाने की जरूरत है ।
रंजन दुबे
ट्रेनों से अधिक यात्री उतरने पर बाहर जाने का मार्ग छोटा पड़ जाता है। बाहर निकालने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग की भी व्यवस्था रहनी चाहिए।
रवि कुमार सिंह
जमुई से दिल्ली जाने के लिए केवल एक ट्रेन है जबकि पहले चार ट्रेनें थीं। अब सिर्फ पूर्वा के भरोसे लोगों का दिल्ली तक का सफर होता है। उसमें हमेशा सीट फुल रहती है।
अनिल कुमार सिंह
जमुई जिला मुख्यालय का स्टेशन है। कई जिले के यात्री ट्रेन पकड़ते हैं। बावजूद रेलवे प्रशासन सुविधा उपलब्ध नहीं कराता है। जबकि यहां रोज चार से पांच लाख रुपए का टिकट बिकता है।
शिवशंकर साहू
बोले जिम्मेदार
जमुई स्टेशन पर कुछ असुविधा है। इसकी सूचना विभाग के अधिकारियों को दी गई है। अभी कंस्ट्रक्शन कार्य चल रहा है। कंस्ट्रक्शन कार्य पूरा होने पर असुविधा भी खत्म हो जाएगी। जमुई स्टेशन नया फुटओवर ब्रिज भी बन चुका है जिसे चालू कर दिया गया है। इसके अलावा अन्य सुविधाएं के लिए भी कार्य किया जा रहा है। टिकट काउंटर पर भीड़ कम हो इसके लिए भी काउंटर बढ़ाया गया है।
-नीतीश कुमार, स्टेशन प्रबंधक, जमुई
बोले जमुई फॉलोअप
रेलवे क्वार्टर की टूटी चहारदीवारी नहीं हुई ठीक
जमुई। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए रेलवे क्वार्टर की स्थिति दिन-प्रतिदिन जर्जर होती जा रही है। कई रेलवे क्वार्टर पर अवैध कब्जा है। रेलवे द्वारा आवंटित क्वार्टर में रेलकर्मी रहना नहीं चाह रहे हैं। बताया जाता है कि झाझा लोकोशेड में दस हजार से अधिक रेलवे कर्मचारी कार्य करते थे। उस समय रेलवे क्वार्टर के लिए मारामारी होती थी। रेलवे क्वार्टर की स्थिति काफी अच्छी थी। लेकिन जब से लोकोशेड यहा से उजड़ा है तब से रेलवे क्वार्टर दिनोंदिन जर्जर होते जा रहे हैं। दर्जनों जर्जर रेलवे क्वार्टर को आईओडब्लू ने अबेंडेंड घोषित कर रखा है। अन्य क्वार्टर की भी स्थिति काफी दयनीय है। रेलवे क्वार्टर की जर्जर स्थिति के संदर्भ में कई बार रेलवे कर्मचारियों ने आवाज उठाया जिसपर कई क्वार्टर की मरम्मती भी हुई। इसके बावजूद कई क्वार्टर में गंदा पानी, शौचालय, गंदगी आदि की समस्या है। ज्ञात हो कि झाझा आईओडब्लू के तहत लगभग एक हजार क्वार्टर अभी भी ठीक है जिसमें रेलवे कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते हैं। कई रेलवे कर्मचारी क्वार्टर को छोड़ भाड़े के मकानों में रहने को मजबूर हैं। इस संदर्भ में आईओडब्लू कार्यालय ने बताया कि जो भी समस्या आती है उसको प्राथमिकता से पूरा किया जाएगा। इसके अलावा झाझा का रेलवे सड़क भी काफी बदहाल है। इन टूटी सड़कों के मरम्मत पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन इसपर पैदल चलना भी काफी मुश्किल भरा होता है।
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