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बोले मुंगेर : वेतन में हो बढ़ोतरी, रिक्त पड़े पदों पर की जाए बहाली

बिहार के मुंगेर में आईटीसी कारखाने के 2000 कर्मियों में से अब केवल 575 कार्यरत हैं। मशीनीकरण और महंगाई ने उनकी आजीविका पर गंभीर प्रभाव डाला है। यूनियन चुनाव में देरी और श्रमिकों की समस्याएं अनसुलझी...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरTue, 18 Feb 2025 11:02 PM
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बोले मुंगेर : वेतन में हो बढ़ोतरी, रिक्त पड़े पदों पर की जाए बहाली

बिहार के मुंगेर जिले में स्थित आईटीसी (इंडियन टोबैको कंपनी) का कारखाना लंबे समय से स्थानीय लोगों के रोजगार एवं मुंगेर की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह न केवल क्षेत्र के लोगों को रोजगार प्रदान करता है, बल्कि यहां के कर्मियों एवं श्रमिकों की आजीविका का भी प्रमुख साधन है। हालांकि हाल के वर्षों में इस उद्योग से जुड़े कर्मियों एवं श्रमिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जिससे उनके जीवन और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और बढ़ती महंगाई से उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। यहां कार्यरत कर्मी अपनी समस्याओं को लेकर लगातार विभिन्न मंच पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज अभी तक कहीं नहीं सुनी गई है। ऐसे में आज मुंगेर के आईटीसी कर्मी पूरी तरह से परेशान हैं।

02 हजार कर्मी काम करते थे कभी इंडियन टोबैको कंपनी में

05 सौ 75 रह गई है वर्तमान में कंपनी के कर्मियों की संख्या

50 हजार रुपये कंपनी देती है मेडिकल भत्ता पूरे कार्यकाल के दौरान

वर्ष 1907 में मुंगेर में स्थापित आईटीसी देश एवं मुंगेर की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। इसके साथ ही यह कंपनी मुंगेर के लोगों को रोजगार देने में अग्रणी नहीं रहा है। कभी यहां लगभग 2000 से अधिक कर्मी कार्यरत थे। किंतु, आज के अत्यधिक मशीनी युग में विकसित तकनीक के कारण यहां के लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है। आज मशीनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण इस कंपनी में कार्य करने वाले कर्मियों की संख्या मात्र 575 रह गई है। कंपनी के लगातार मशीनीकरण किए जाने के कारण लगातार कर्मियों की संख्या में कमी आ रही है। कंपनी में काम करने वाले कर्मियों की संख्या में कमी आने के बावजूद वर्तमान में कार्यरत कर्मियों की आर्थिक स्थिति बेहतर होने की बजाय और खराब ही हुआ है। आज वे कई तरह की समस्याओं से घिरे हुए हैं। अपनी समस्याओं के समाधान के लिए वे आंदोलन करते रहे हैं, किंतु उनकी अधिकांश मांगें अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं।

आईटीसी कर्मियों ने संवाद के क्रम में कहा कि आज कंपनी में हमारा अस्तित्व खतरे में है। कंपनी के साथ हम कर्मियों का प्रतीक 4 साल पर लॉन्ग टर्म एग्रीमेंट होता है। यह एग्रीमेंट मजदूर यूनियन के माध्यम से होता है। लेकिन, वर्तमान में कंपनी में कोई भी यूनियन कार्यरत नहीं है। वर्ष- 2014 में यहां के मजदूर यूनियन के तत्कालीन अध्यक्ष अजफर शमशी द्वारा युनियन चुनाव कराने के विरुद्ध कोर्ट में दायर मुकदमा का अभी तक फैसला नहीं आया है। जिसके चलते मजदूर यूनियन काअभी तक चुनाव अटका हुआ है। बाद में गठित दूसरे यूनियन की कंपनी मान्यता कंपनी ने रद्द कर दी है। अब हमारी निगाह कोर्ट के फैसले पर टिकी है। ऐसे में कंपनी के साथ हमारा एग्रीमेंट किसके माध्यम से होगा यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह बना हुआ है और हमारे अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है। उन्होंने कहा कि, कंपनी यूनियन के चुनाव के प्रति पूरी तरह से उदासीन है। क्योंकि, यूनियन के नहीं रहने से उसे कोई घाटा नहीं हो रहा है। वैसे भी बिना यूनियन के कंपनी पूरी तरह से स्वतंत्र है।

सेवानिवृत्ति के बाद भी अधिकारियों को दे दिया जाता है एक्सटेंशन:

आईटीसी अपने अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार एक्सटेंशन देकर काम पर रख रही है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद काम करने में सक्षम हम कर्मियों को कंपनी सेवा विस्तार नहीं देती है। पूर्व में सेवानिवृत्त कर्मियों के बच्चों को ही कंपनी में नौकरी दी जाती थी। उस समय भी कर्मियों को पेंशन दिया जाता था,जो काफी कम था। लेकिन, आश्रितों को नौकरी देने से हम पेंशन को ज्यादा महत्व नहीं देते थे। वहीं, महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है। वर्तमान में कर्मियों की बहाली प्रक्रिया में भी कंपनी मनमानी कर रही है। वर्ष 2006 में कंपनी के साथ हुए समझौते में यह तय हुआ था कि, जब भी कंपनी में बहाली होगी हमारे वर्कर्स के बच्चों को प्राथमिकता दी जाएगी। क्योंकि वहीं से हमारे बच्चों ने अप्रेंटिसशिप किया है। लेकिन कंपनी ने फिलहाल इस समझौता को ताक पर रख दिया है। वहीं नियुक्ति की प्रक्रिया में भी प्रदर्शित नहीं है।

कंपनी में काफी संख्या में विभिन्न तरह के पद हैं खाली:

मजदूरों ने बताया कि, कंपनी में काफी संख्या में विभिन्न तरह के पद खाली हैं जिस समय पर भरा नहीं जा रहा है और जैसे तैसे काम लिया जा रहा है। इसका प्रभाव हम पर पड़ रहा है। हमारे किसी साथी के छुट्टी में चले जाने पर उसका काम दूसरे साथी को करना पड़ता है। लेकिन, इसके बदले हमें कोई अतिरिक्त राशि कंपनी प्रदान नहीं करती है। कर्मियों ने बताया कि, कार्य के दौरान सस्पेंड होने पर वेतन का 75 प्रतिशत देने का प्रावधान है। लेकिन, ऐसा नहीं होता। इसके साथ ही हम पर इस्तीफा देने का दबाव भी बनाया जाता है।

हम कर्मियों को कंपनी मेडिकल सुविधा तो देती है लेकिन हमारे परिवार को कोई मेडिकल सुविधा हासिल नहीं है। जबकि, दूसरे जगहों पर कर्मियों के परिवार को भी मेडिकल सुविधा दी जाती है। हमें बीमार पड़ने पर कोई अलग से मेडिकल सहायता नहीं मिलती है। पूरे कार्यकाल के दौरान केवल एक बार हमें 50000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। यदि कोई लंबे समय के लिए बीमार हो जाता है तो 1 महीने के बाद कंपनी उसका वेतन बंद कर देती है। ऐसे में बीमार कर्मियों के परिवार के समक्ष भयंकर आर्थिक संकट खराब हो जाता है। रात्रि में काम करने के पहले हमें नाम मात्र का अलाउंस मिलता है। वर्षों से इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसके साथ ही वर्ष- 1988 में प्रोडक्शन पर जो हमें एफिशिएंसी राशि मिलती थी उसमें अब तक कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसके साथ ही कंपनी में बने माल को बाहर की दूसरी कंपनी को बेचने पर हमें जो भत्ता मिलता था, उसमें पिछले 30 वर्षों से नहीं बढ़ा है। हमें इस भत्ता के रूप में केवल 3.50 रुपया ही मिलता है।

मृतक कर्मियों के आशिकों को अनुकंपा पर कंपनी में कब नियुक्ति मिलेगी इसकी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। हमारे आश्रितों को नियुक्ति देने में कंपनी कई वर्ष लगा देती है। कभी हमारा वेतन केंद्रीय कर्मचारियों से अधिक था, लेकिन आज भयंकर महंगाई के दौर में केंद्र के चतुर्थ वर्गीय कर्मियों से भी हमारा वेतन कम हो गया है। कर्मियों ने बताया कि पूर्व में आईटीसी द्वारा तरह-तरह का सोशल एक्टिविटीज संचालित किया जाता था। लेकिन आज केवल खानापूर्ति की जाती है।

समस्याएं:

1. कंपनी में यूनियन के बिना श्रमिकों की समस्याओं को उठाने और एग्रीमेंट करने में कठिनाई हो रही है।

2. कर्मचारियों को सस्पेंशन, डिसचार्ज और इस्तीफे का दबाव दिया जा रहा है, जिससे वे मानसिक तनाव में हैं।

3. कंपनी में भर्ती प्रक्रिया में कंपनी के कर्मियों के बच्चों को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है, जबकि समझौते में ऐसा करने की बात कही गई थी।

4. महंगाई के बावजूद वेतन में कोई संतोषजनक वृद्धि नहीं हुई है, पेंशन भी अपर्याप्त है और नाइट शिफ्ट अलाउंस तथा अन्य भत्तों में वृद्धि नहीं हुई है।

5. कर्मचारियों के परिवार को मेडिकल सुविधा नहीं मिलती, लंबी बीमारी के दौरान वेतन बंद कर दिया जाता है, और कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) फंड का सही उपयोग नहीं हो रहा है।

सुझाव:

1. सरकार और न्यायालय के समक्ष अपील कर यूनियन का जल्द- से-जल्द चुनाव कराने की मांग की जाए।

2. कंपनी को समझौते का पालन करने के लिए बाध्य किया जाए, ताकि कंपनी के कर्मचारियों और उनके बच्चों को नौकरी में प्राथमिकता मिले।

3. कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, नाइट शिफ्ट अलाउंस और अन्य भत्तों में महंगाई के अनुसार उचित वृद्धि की जाए।

4. कर्मचारियों के परिवार को भी मेडिकल सुविधाएं दी जाएं और बीमार कर्मियों के लिए विशेष सहायता योजना बनाई जाए।

5. कंपनी द्वारा बहाली की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए और अनुकंपा नियुक्तियों में अनावश्यक देरी को समाप्त किया जाए।

सुनें हमारी बात

कंपनी हमें विश्वास में लिए बिना मनमाने तरीके से फैक्ट्री का आधुनिकीकरण कर रही है। इससे मजदूरों की छंटनी हो रही है। इसके साथ ही कंपनी में रोजगार के अवसरों की कमी हो रही है।

-अश्विनी कुमार

कंपनी से अपनी ही एक दिन की छुट्टी मांगने पर कंपनी के अधिकारी हमें नहीं देना चाहते हैं। किसी आवश्यक कार्य से छुट्टी नहीं मिलने के कारण हमारी परेशानी बढ़ जाती है।

-शंकर कुमार

किसी कर्मी के छुट्टी पर चले जाने पर उस कर्मी का काम दूसरे कर्मी को करना पड़ता है। लेकिन, इस अतिरिक्त कार्य के बदले उसे कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं मिलती है।

-संतोष तांती, आईटीसी

दूसरी जगह काम करने वाले कर्मियों के परिवार को भी मेडिकल सुविधा मिलती है। लेकिन आईटीसी में हमारे परिवार के लिए कोई मेडिकल सुविधा नहीं है। इसके लिए हमें बीमारी के समय कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है। पूरे कार्यकाल के दौरान केवल एक बार आर्थिक सहायता मिलती है।

-प्रशांत कुमार

जो वर्कर बीमारी की वजह से एक महीने से अधिक मेडिकल छुट्टी लेते हैं उन्हें आईटीसी एक महीने के बाद वेतन देना बंद कर देती है। यानी नो वर्क नो पे का नियम लागू करती है। ऐसे में, बीमार कर्मी के परिवार के समक्ष भयंकर आर्थिक संकट खराब हो जाता है।

-सचिन कुमार

रात्रि में काम करने के बदले हमें नाम मात्र का अलाउंस मिलता है। जो वर्षों पहले मिलता था वहीं अब भी मिल रहा है। इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है।

-वीर विक्रम सिंह

प्रोन्नति होने पर भी हमें कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है। वर्षों पूर्व जो मिलता था वही अब भी मिल रहा है। महंगाई चरम सीमा पर है, लेकिन हमारे वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।

-रविंद्र शर्मा

वर्ष 1988 में प्रोडक्शन पर हमें जो एफिशिएंसी राशि मिलती थी, उसमें अब तक कोई वृद्धि नहीं हुई है। महंगाई के अनुरूप राशि की वृद्धि होनी चाहिये।

-परमानंद शाह, आईटीसी कर्मी

कंपनी में बने माल को बाहर की दूसरी कंपनी को बेचने पर हमें जो भत्ता मिलता है, उसमें पिछले 30 वर्षों से वृद्धि नहीं हुई है। हमें इस भट्ट के रूप में केवल 3.50 रुपए ही मिलते हैं।

-अमन राज

मृतक कर्मियों के आश्रितों को अनुकंपा पर कब नियुक्ति होगी, इसकी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। आश्रितों को आईटीसी में नियुक्ति मिलने में कई वर्ष लग जाते हैं।

-अरुण यादव

एक समय ऐसा था जब हमारा वेतन केंद्रीय कर्मचारियों से अधिक था। आज हमारी स्थिति यह है कि, केंद्र के चतुर्थ वर्गीय कर्मियों का भी वेतन हमसे ज्यादा है।

-धर्मेंद्र कुमार

आईटीसी में मजदूर संघ का चुनाव नहीं होने के कारण कई समस्याएं हैं। मामला अभी तक कोर्ट में लटका हुआ है। ऐसे में हम मजदूरों के हितों का हनन कर रही है।

-अभिषेक कुमार

कार्य के दौरान सस्पेंड होने पर कर्मियों को उनके वेतन का 75 प्रतिशत वेतन देने का प्रावधान है। किंतु आईटीसी के एचआर मैनेजर द्वारा इस 25 प्रतिशत करने की बात कही जाती है। इसके साथ ही हम पर इस्तीफा देने का भी दबाव बनाया जाता है। यह अनुचित है।

-आदित्य राज, आईटीसी कर्मी

कंपनी के कर्मियों के साथ-साथ उसके आश्रितों को भी कंपनी के खर्चे पर इलाज की सुविधा मुंगेर में ही मिलनी चाहिए। एक महीना से अधिक समय तक कर्मियों के बीमार होने पर हमारा वेतन रुकना नहीं चाहिए।

-अमित मिश्रा

हम आईटीसी कर्मियों को कंपनी के अधिकारी तुच्छ समझते हैं। उनका व्यवहार हमारे प्रति अच्छा नहीं है। कंपनी हम कर्मियों के साथ हुए समझौते को भी लागू नहीं कर रही है। ऐसे में हम कर्मियों के बीच निराशा एवं क्षोभ बढ़ते जा रहा है।

-एसके पॉल

आईटीसी, मुंगेर पूरे देश में कंपनी की सभी शाखाओं की मदर कंपनी है। लेकिन, यहां की सुविधाओं को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है। जबकि, अन्य शाखाओं में सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। यह इतिहास को मिटाने जैसा है।

-दौलत कुमार

बोले प्रतिनिधि

हमारी समस्याओं का मूल कारण कंपनी का प्रबंधन बना हुआ है। जब बैलेट से चुनाव नहीं हुआ था तो तो फर्जी चुनाव को कंपनी ने मान्यता क्यों दी? इसके कारण हम कर्मी अधर में है। इस कंपनी की मंशा पर शक होता है। कंपनी अपनी मनमानी करने के लिए यथास्थिति बनाए रखना चाहती है। एक तरफ कंपनी से बात सेवानिवृत्त अधिकारी को सेवा में विस्तार देती है, दूसरी तरफ हम कर्मियों के लिए सेवा विस्तार की कोई योजना कंपनी के पास नहीं है। कंपनी अपनी नीति मजदूरों के हक में बदलाव करे।

- जयराज गौतम, आईटीसी कर्मी सह मजदूर नेता

बोले जिम्मेदार

आईटीसी कर्मियों ने अपनी समस्याओं से संबंधित कोई भी सूचना मुझे नहीं दिया है। यदि पूर्व में दिया होगा तो मुझे जानकारी नहीं है। वे अपनी समस्याओं एवं मांग से संबंधित ज्ञापन हमें दें। हम निश्चित रूप से समुचित कार्रवाई करेंगे।

-सत्य प्रकाश, श्रम अधीक्षक, मुंगेर

बोले टीएम वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष:

कंपनी पालिसी के तहत लांग टर्म एग्रीमेंट में लोगों की तनख्वाह 10 हजार से 50 हजार तक हुआ है। पूर्व में परंपरागत बहाली को खत्म कर दी गयी थी, जससे मुंगेर की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। यानि बाप के बदले बेटे को नौकरी देने की प्रथा खत्म कर दी गयी। मेरे आने के बाद मैंने उसे बहाल करायी। ऑन रोल इम्प्लाई को कंपनी के रूल्स के मुताबिक पूरी मेडिकल सुविधा दी जाती है। चुनाव का मुद्दा हाई कोर्ट में है।

डा. अजफर शमशी, अध्यक्ष, टीएम वर्कर्स यूनियन

कंपनी के मुंगेर ब्रांच के अधिकारियों ने साधी चुप्पी:

कंपनी में काम करने वाले मजदूरों की समस्या और उनके समाधान के संबंध में मंगलवार को आईटीसी मुंगेर ब्रांच के मैनेजर से पूछने की कोशिश की गयी। मंगलवार को फोन पर उनसे तीन बार संपर्क किया गया लेकिन बात नहीं हो पाई। इसे बाद कंपनी के एक अन्य अधिकारी वाई पी सिंह से फोन पर संपर्क किया गया। वाई पी सिंह ने कहा वे तत्काल इस संबंध में कुछ भी बताने में असमर्थ हैं। इस तरह दोनों अधिकारियों से मजदूरों के हित के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी।

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