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जन्म के साथ ही थायराइड की बीमारी लेकर पैदा हो रहे नवजात

जन्म लेने वाले 4.28% नवजातों में जांच में पायी जा रही थायराइड की बीमारी

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरFri, 11 Oct 2024 01:15 AM
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जन्म के साथ ही थायराइड की बीमारी लेकर पैदा हो रहे नवजात

भागलपुर, वरीय संवाददाता। जिले के नवजात जन्म लेने के साथ ही थायराइड की बीमारी लेकर पैदा हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में नवजातों का सही से विकास नहीं हो पाता है। जन्म लेते ही उनकी हालत गंभीर होती है और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में बच्चों के लिए बनी आईसीयू (नीकू) में भर्ती करना पड़ता है। आंकड़ों की मानें तो जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (मायागंज अस्पताल) में जन्म लेने वाले 4.28 प्रतिशत नवजातों में थायराइड की बीमारी जांच में पायी जा रही है। चिकित्सकों की मानें तो ऐसे बच्चे जो कि समय से पूर्व पैदा होते हैं या फिर पैदा होते ही उन्हें नीकू वार्ड में भर्ती करने की नौबत आती है, वैसे बच्चों के जन्म लेने के तीसरे या चौथे दिन थायराइड टेस्ट करा लेना चाहिए।

90 प्रतिशत मामलों में नवजात बिना थायराइड ग्रंथि या अल्पविकसित ग्रंथि के पैदा हो रहे

जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल (मायागंज अस्पताल) के स्त्री एवं प्रसव रोग विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बीते चार माह में विभाग में सिजेरियन या फिर सामान्य प्रसव के जरिये कुल 537 बच्चे पैदा हुए। इनमें से 126 बच्चे प्री मेच्योर बेबी यानी नौ माह के पहले ही पैदा हुए थे। शिशु रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि चार माह में जन्म लेने वाले बच्चों का इलाज किया तो पाया कि 4.28 प्रतिशत यानी 23 बच्चों में थायराइड की बीमारी है। इन बच्चों में से ज्यादातर को इलाज के लिए नीकू वार्ड में भर्ती करना पड़ा। उन्होंने बताया कि हार्मोनल असंतुलन वाले ज्यादातर नवजात बच्चे बिना थायराइड ग्रंथि के ही पैदा हो रहे हैं। कुल मामलों में से करीब 90 प्रतिशत मामलों में तो नवजात बच्चे या तो बिना थायराइड ग्रंथि के या फिर अल्पविकसित ग्रंथि के बिना पैदा हो रहे हैं।

समय पर इलाज नहीं होने पर बढ़ जाती है बीमारी

शिशु रोग विभाग, जेएलएनएमसीएच के विभागाध्यक्ष डॉ. अंकुर प्रियदर्शी बताते हैं कि बच्चों के जन्म के शुरुआती दौर में थायराइड डिसहॉर्मोजेनेसिस को थायराइड के स्तर में कमी एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है। यह असंतुलन और कमी थायराइड की बीमारी के अंतिम परिणाम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसके लिए बच्चों को नीकू वार्ड में भर्ती करना पड़ता है। अगर समय पर इलाज न हो तो ये बीमारी की गंभीरता को और बढ़ा सकता है।

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