बोले मुंगेर : आरा मिल का लाइसेंस व सस्ता लोन दिया जाए
मुंगेर जिले में बढ़ई समाज के लोग लकड़ी के फर्नीचर के व्यवसाय में गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। बढ़ती कीमतें, सरकारी नीतियों की जटिलता और प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी आय में कमी आई है। 80,000 की आबादी...
जिले में लगभग 80,000 की आबादी वाला बढ़ई समाज पारंपरिक रूप से फर्नीचर निर्माण के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। वर्षों से यह समाज लकड़ी के फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियां और अन्य घरेलू वस्तुओं का निर्माण करता आ रहा है। वर्तमान में लोहा, स्टील एवं प्लास्टिक के फर्नीचरों ने लकड़ी के सामान की मांग घटाई है। व्यवसाय में पूंजीपतियों का प्रवेश, सरकारी नीतियों की जटिलता और तकनीक की कमी के कारण व्यवसाय पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। लकड़ी का बढ़ता मूल्य, दूसरे राज्यों से आयातित लकड़ी पर निर्भरता, सरकारी प्रतिबंधों और वित्तीय समस्याओं के कारण आय सीमित होती जा रही है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान मुंगेर के पूरब सराय में बढ़ई समाज के लोगों ने अपनी समस्या रखी।
80 हजार जनसंख्या है जिले में बढ़ई समाज के लोगों की
15 आरा मिलें हैं जिले में, चिराई की दर कम करने की जरूरत
06 सीएनसी मशीनें हैं जिल में लकड़ी पर डिजाइनें उकेरने के लिए
मुंगेर में फर्नीचर डिजाइनिंग के लिए केवल 6 सीएनसी मशीनें उपलब्ध हैं, जिससे उत्पादन की गति और गुणवत्ता प्रभावित होती है। जिले में 15 आरा मिलें हैं, लेकिन लकड़ी चीरने की दर अन्य जिलों की तुलना में अधिक है। अन्य जिलों में 80 रुपये में लकड़ी की चिरई जाती है, वहीं मुंगेर में 100 रुपये लगते हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा लकड़ी चीरने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे छोटे व्यवसायियों को आरा मिल मालिकों की मनमानी झेलनी पड़ती है। यदि इस प्रतिबंध को हटाया जाए, तो न केवल बढ़ई समाज को राहत मिलेगी, बल्कि बड़े आरा मिलों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति पर भी रोक लगेगी।
संवाद के दौरान बढ़ई समाज के लोगों ने बताया कि फर्नीचर के छोटे व्यवसायी आरा मिलों से लकड़ी खरीदकर अपनी दुकानों में फर्नीचर तैयार करते हैं और फिर उन्हें बेचते हैं। लेकिन मुंगेर में फर्नीचर बनाने के लिए स्थानीय तौर पर लकड़ी उपलब्ध नहीं है। मुंगेर में अधिकांश लकड़ी दूसरे राज्यों से आते है। ऐसे में दूसरे राज्यों में लकड़ी की कीमत कम होने के बावजूद परिवहन संबंधी कठिनाइयों के कारण उसकी लागत बढ़ जाती है। वहीं, बाहर से लकड़ी मंगाने में रास्ते में विभिन्न जगहों पर पुलिस प्रशासन भी धर-पकड़ करती है। मुंगेर आते-आते लकड़ी का मूल्य काफी बढ़ जाता है और हमारे द्वारा बनाया गया फर्नीचर भी महंगा हो जाता है। लकड़ी की अनुपलब्धता एवं उसका बढ़ता मूल्य ही हमें प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि बाजार में आधुनिक डिजाइनों के लकड़ी की तुलना में कम कीमत में उपलब्ध लोहा, स्टील एवं प्लास्टिक के फर्नीचर भी हमारे व्यवसाय को प्रभावित कर रहा है। अधिकांश लोग अब इन फर्नीचरों का उपयोग करने लगे हैं। ऐसे में अब शादी विवाह के समय ही मुख्य रूप से हमारे द्वारा बनाए गए फर्नीचरों की बिक्री होती है।
पूंजीपतियों के व्यवसाय में आने से मजदूर हो गए बढ़ई :
फर्नीचरों के व्यवसाय में बड़ी-बड़ी कंपनियों एवं बड़े-बड़े पूंजी पतियों ने भी अपना कदम रख दिया है। ऐसी कंपनियां और ऐसे बड़े-बड़े पूंजी पति कम कीमत पर सीधे विदेशों से अथवा दूसरे राज्यों के बड़े व्यवसाईयों से कम कीमत पर लकड़ी मंगा लेते हैं। उनके पास आधुनिक डिजाइनों के फर्नीचर बनाने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें हैं। ऐसे में फर्नीचर बनाने में उनका लागत मूल्य काफी कम हो जाता है और वे कम कीमत पर भी अपने द्वारा बनाए गए फर्नीचर को बेचकर अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। ऐसे में हमारे व्यवसाय के समक्ष प्रतियोगिता बढ़ गई है। लेकिन, अन्य परेशानियों के साथ-साथ हमारे पास इस प्रतियोगिता में टिके रहने के लिए अपेक्षित पूंजी भी नहीं है। सरकार की विश्वकर्मा योजना का लाभ बढ़ई समाज को नहीं मिल पा रहा है। बैंक से लोन प्राप्त करना भी मुश्किल है, क्योंकि कागजी प्रक्रियाएं जटिल हैं और ऋण लेने के लिए 10 प्रतिशत तक कमीशन की मांग की जाती है। ऐसे में, पूंजी की कमी के कारण कई छोटे व्यवसायी अपना कारोबार बढ़ाने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, बढ़ई समाज को आरा मिल एवं अन्य चीजों के लाइसेंस में सरकारी आरक्षण भी नहीं मिल रहा है, जबकि हमें अन्य व्यवसायियों की तुलना में अधिक कर देना पड़ता है। इसके साथ ही सरकार द्वारा कराए जाने वाले निर्माण कार्यों में भी बुनकर समाज की तरह हमें प्राथमिकता नहीं दी जाती है। ऐसे में वर्ष के कुछ समय को छोड़कर हम कारीगरों को पर्याप्त काम नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि, हमें से अधिकांश कारीगरों को महीने में केवल 10 दिन का काम ही मिल पाता है। हमारी मजदूरी 600 रुपया है। ऐसे में हमारी कमाई महीने में 6 से 7 हजार रुपया ही हो पाती है। इस कमाई से बढ़ती महंगाई के बीच हमारे लिए घर चलाना कठिन होते जा रहा है। ऐसे में हमारे समाज के अधिकांश लोग इस व्यवसाय को छोड़ते जा रहे हैं और दूसरे कार्यों को करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
बैंक से ऋण की प्रक्रिया हो सरल :
बढ़ई समाज की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे। लकड़ी चीरने की अनुमति को सरल बनाया जाए और छोटे व्यवसायियों को बिना बाधा काम करने दिया जाए, ताकि बड़े आरा मिल की मनमानी रोकी जा सके। हम छोटे व्यवसाईयों को 18 इंच के बैंड शो का लाइसेंस दिया जाना चाहिए, जिससे सभी प्रकार की लकड़ी काटने की सुविधा मिले। इसके अलावा, विश्वकर्मा योजना का लाभ बढ़ई समाज तक पहुंचाने के लिए विशेष पहल की जानी चाहिए। बैंक ऋण प्रक्रिया को सरल किया जाए और बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के लोन उपलब्ध कराया जाए। शादी-विवाह के मौसम में ही फर्नीचर की अधिक मांग होने के कारण, सरकार को इस व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियां बनानी चाहिए। यदि लाइसेंस मिले और सरकारी संरक्षण मिले तो बढ़ई समाज भी एक समृद्ध समाज होगा। यदि समय रहते सरकार ने इन समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो हम बढ़ई समाज का व्यवसाय धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा और हमारे समुदाय के हजारों लोगों के सामने आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। इसलिए, सरकार और प्रशासन को मिलकर हमारी समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए, ताकि यह पारंपरिक व्यवसाय फिर से फल-फूल सके और हमारा बढ़ई समाज आर्थिक रूप से सशक्त बन सके।
समस्याएं
1. लोहे, स्टील एवं प्लास्टिक के रेडीमेड फर्नीचर की बढ़ती मांग के कारण परंपरागत लकड़ी के फर्नीचर का बाजार सिकुड़ता जा रहा है।
2. लकड़ी चीरने की सरकारी अनुमति नहीं मिलने और आरा मिल मालिकों की मनमानी के कारण व्यवसायियों को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है।
3. बैंक से ऋण प्राप्त करना मुश्किल है, क्योंकि कागजी प्रक्रिया जटिल है और रिश्वत देनी पड़ती है।
4. मजदूरों को नियमित काम नहीं मिल रहा, जिससे उनकी आय अस्थिर है और वे जीवनयापन में कठिनाई महसूस कर रहे हैं।
5. विश्वकर्मा योजना और अन्य सरकारी लाभ बढ़ई समाज तक नहीं पहुंच रहे, जिससे वे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
सुझाव
1. लकड़ी चिराई से प्रतिबंध हटाया जाए और छोटे बढ़ई व्यवसायियों को सीधा लाइसेंस देकर आरा मिल मालिकों की मनमानी रोकी जाए।
2. मुंगेर में अधिक सीएनसी मशीनें उपलब्ध कराई जाएं, जिससे फर्नीचर की गुणवत्ता और उत्पादन दर में सुधार हो सके।
3. बैंक ऋण प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि बिना रिश्वत दिए व्यवसायियों को पूंजी मिल सके।
4. विश्वकर्मा योजना और अन्य सरकारी लाभों को बढ़ई समाज तक पहुंचाने के लिए विशेष जागरूकता और सहायता केंद्र स्थापित किए जाएं।
5. लकड़ी के फर्नीचर को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय स्तर पर विशेष मेले और सरकारी खरीद एवं कार्यों में बढ़ई समाज के उत्पादों को प्राथमिकता दी जाए।
सुनें हमारी बात
हमारा पारंपरिक व्यवसाय धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। हमें ना तो प्रतिदिन काम मिलता है और ना ही सालों भर व्यवसाय चलता है। ऐसे में हम बढ़ई समाज की स्थिति दिन-प्रतिदिन दनीय होते जा रही है।
- अमरदीप कुमार
रेडीमेड फर्नीचरों की दुकानों ने हम बढ़ई समाज के पारंपरिक व्यवसाय पर बड़ा असर डाला है। हम धीरे-धीरे बेरोजगार हो रहे हैं। सरकार हम व्यवसाईयों को लकड़ी और ऋण मुहैया कराए।
- महेश
हमारे व्यवसाय में दिन-प्रतिदिन गिरावट आ जा रही है। स्थिति यह है कि हम लोगों का मजदूरी भी अब नहीं निकल पा रहा हैं। सरकार बुनकर समाज की तरह हमें भी संरक्षण दे।
- करण कुमार
दूसरी जाति के भी लोगों ने भी बढ़ई समाज के काम को करना शुरू कर दिया है। उनके पास पूंजी की कमी नहीं है। उनसे प्रतियोगिता करना हमारे लिए संभव नहीं है। इसके कारण हमारे समक्ष व्यावसायिक संकट खड़ा हो गया है।
- संदीप कुमार
बढ़ई समाज को भी व्यवसायिक आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार को आसानी से हम छोटे व्यवसाईयों को ऋण मुहैया कराना चाहिए। इसके साथ ही हमारे व्यवसाय में आने वाली सरकारी बाधाओं को दूर करना चाहिए।
- सूचित शर्मा
बढ़ई समाज को विश्वकर्मा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। हमें आसानी से बैंक से कर्ज नहीं मिलता है। पूंजीपतियों एवं बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ व्यावसायिक प्रतियोगिता बढ़ गई है। हम परेशान हैं।
- शंभू शर्मा
सरकार द्वारा आरा मिल चालू करने के लिए लाइसेंस निर्गत करना चाहिए। बाहर से लकड़ी मंगाने पर पुलिस परेशान ना करे। सरकारी कार्यों में हमारे द्वारा बनाए गए फर्नीचरों को वरीयता दी जाए।
- आकाश शर्मा
आरा मिल स्थापित करने में हमारे समाज के लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए। ताकि हमारा भी आर्थिक उन्नयन हो सके।
- विकास कुमार
हमारे यहां लकड़ी काफी महंगी है। पूंजी की कमी के कारण सभी लोग दूसरे राज्यों से लकड़ी मांगा नहीं सकते हैं। ऐसे में हमारे बनाए गए फर्नीचर महंगे होते हैं। इस कारण ग्राहकों की संख्या में कमी आई है।
- अनिल शर्मा
मुंगेर में लकड़ी गुजरात, बंगाल से लाई जाती है। इसके कारण परिवहन खर्च काफी अधिक आता है। रास्ते में जगह-जगह पुलिस भी तंग करती है। ऐसे में मुंगेर पहुंचते-पहुंचते लकड़ी का मूल्य काफी बढ़ जाता है।
- धीरेंद्र कुमार
बढ़ई समाज को आसानी से सब्सिडी पर ऋण मुहैया कराई जाए। बैंक लोन की कागजी प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि, हम लोग लोन नहीं ले पाते हैं। बैंक में 10 प्रतिशत कमीशन अलग से मांगा जाता है।
- रामू शर्मा
लकड़ी के फर्नीचर की मांग कम होती जा रही है। इसके कारण हमें महीने में मात्र 10 दिन ही काम मिलता है और समुचित कमाई नहीं हो पाती है। घर चलाने में भी अब समस्या आ रही है।
- इजहार अहमद
वन विभाग की ओर से किए जाने वाले लड़कियों की नीलामी में बढ़ई समाज को आरक्षण मिलना चाहिए। जिससे बाजार की अपेक्षा सस्ते दामों में हमें लकड़ी मिल सके इससे सस्ता फर्नीचर तैयार करने में हमें काफी मदद मिलेगी।
- रूपेश कुमार
शादी-विवाह में लकड़ी का सामान पहले अधिक बिकता था। लेकिन अब ग्राहक लोहा, स्टील, एवं प्लास्टिक के फर्नीचर की मांग ज्यादा कर रहे हैं। ऐसे में हमारा धंधा मंद पर रहा है।
- बबलू शर्मा
बैंक से हमें ऋण आसानी से नहीं मिल पाता है। बाजार में बड़े-बड़े पूंजीपति एवं बड़ी-बड़ी कंपनियां आ गई हैं। हमारे समक्ष पूंजी के अतिरिक्त अन्य कई समस्याएं हैं।
- संजय शर्मा
फर्नीचर के व्यापार से जुड़े बढ़ई समाज के कामगारों के लिए सरकारी योजनाओं की कमी है। जो योजनाएं हैं, उनका भी हमें लाभ नहीं मिल पा रहा है। हम पूंजी की कमी से जूझ रहे हैं।
- मनोहर
बोले जिम्मेदार
केंद्र एवं राज्य सरकार ने किसी भी तरह के उद्योग की स्थापना के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। इसके तहत प्रधानमंत्री विश्वकर्म योजना, मुख्यमंत्री उद्यमी योजना एवं बिहार लघु उद्यमी योजना सहित कई योजनाएं हैं। इन योजनाओं के माध्यम से विश्वकर्मा समाज के लोग अनुदान पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं। यही नहीं, बिहार लघु उद्यमी योजना के तहत व्यवसाय चलाने अथवा उद्योग स्थापित करने के लिए 200000 रुपए तक का पूर्ण रूप से अनुदान पर ऋण दिया जाता है। यह सहायता केवल उद्योग चलाने वालों के लिए है। इसमें तीन किस्तों में अनुदान दिया जाता है। यह अनुदान वापस नहीं लिया जाता है। विश्वकर्मा समाज इस संबंध में विभाग से आवश्यक जानकारी लेकर आवेदन करें और इस योजना का लाभ लेकर अपनी पूंजी की समस्या को दूर कर व्यवसाय को बढ़ायें। इसके अतिरिक्त अन्य विभागों द्वारा भी कई तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं। उसकी जानकारी लेकर हुए इसका लाभ उठा सकते हैं। इस समाज के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आगे आना होगा।
- विंध्याचल कुमार, जिला उद्योग परियोजना प्रबंधक, मुंगेर
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