बोले भागलपुर: नोबेल पुरस्कार विजेता के सम्मान में रविन्द्र भवन बने
भागलपुर की बंगाली समुदाय ने यहां की संस्कृति और शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन आज भी यह समाज असुरक्षा और उपेक्षा का सामना कर रहा है। स्थानीय नेता चाहते हैं कि उनकी विरासत को सहेजने के लिए...
भागलपुर अंग-बंग संस्कृति के लिए मशहूर रहा है। यहां बड़ी संख्या में बंगाली समाज के लोग रहे हैं। इनमें कई नामचीन हस्तियां हैं। जैसे किशोर कुमार और अशोक कुमार का ननिहाल यहीं था। महान लेखक शरतचंद्र भी भागलपुर की गलियों में ही पले-बड़े हैं। एशिया की पहली महिला डॉक्टर कादंबिनी गांगुली का जन्म भी भागलपुर में ही हुआ था। ऐसे कई नाम हैं जिनपर भागलपुर गर्व करता है। समाज के लोगों का कहना है कि कई लोगों को डरा-धमकाकर जमीन और घर पर कब्जा कर लिया गया। एक तरफ इन्हें जहां असुरक्षा का भाव है वहीं रिफ्यूजी कहे जाने की टीस भी महसूस करते हैं। भागलपुर में अंग-बंग की संस्कृति के लिए जाना जाता है। कला संस्कृति, शिक्षा और सेवा कार्यों में बंगाली समाज की अपनी विशेष भूमिका रही है। पूरी दुनिया को मानवता और धर्म का संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद के 48 घंटे तक किए ध्यान की भूमि, मशहूर उपन्यासकार शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय और प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता अशोक कुमार, किशोर कुमार और अनूप कुमार का ननिहाल और कई महान विभूतियों का जुड़ाव भागलपुर की धरती से रहा है। बीते कुछ दशकों में ऐसी घटनाएं हुईं जिससे आज की तारीख में भी यह समाज खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में समाज के लोगों ने बताया कि समाज के कई लोग कोलकाता सहित अन्य जगहों पर पलायन कर गए।
बिहार बंगाली समिति के पूर्व सचिव निरुपम कांतिपाल ने बताया कि रवीन्द्रनाथ टैगोर भागलपुर आए थे। पर्यटन की दृष्टि से देश के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता के सम्मान में रविन्द्र भवन बनाने की मांग हुई। लेकिन आज तक ध्यान नहीं दिया गया। जिस समुदाय ने स्कूल, कॉलेज, समेत कई सामाजिक कार्यों के लिए अपनी जमीन दान की, आज उन्हीं के बच्चों को वहां प्राथमिकता नहीं मिल पाती है। बिहार बंगाली समिति के सचिव असीम कुमार पाल ने बताया कि कई सौ वर्षों से भागलपुर से बंगाली समाज का नाता रहा है। समय के साथ इस समुदाय के साथ होने वाली उपेक्षाओं के कारण समाज की स्थिति कमजोर होती चली गई। रोजगार की कमी से समाज के सबसे निचले स्तर पर जीवन बसर करने वाले शरणार्थियों के परिवार कई तरह की दिक्कतें झेल रहे हैं। बंगाली समुदाय के जरूरतमंद सभी परिवारों को प्रधानमंत्री आवास की सुविधा मिलनी चाहिए।
बिहार बंगाली समिति बरारी के अध्यक्ष तरूण घोष ने बताया कि बंगाली समाज के बहुत सारे मोहल्ले और गलियों में रोड, नाला, पानी एवं बिजली के पोल की व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण लोगों को आवागमन के साथ कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है। इनके समाधान के लिए सरकार और प्रशासन को सुविधाओं से वंचित बंगाली समाज के लोगों को हर तरह की योजनाओं एवं सुविधा का लाभ उपलब्ध कराने की जरूरत है।
भागलपुर जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा ने बताया कि एक समय में अंग-बंग की संस्कृति की काफी चर्चा होती थी, लेकिन समय के साथ अंग प्रदेश से बंग की संस्कृति लुप्तप्राय होती जा रही है, जिसे हम सभी को एकजुट होकर सहेजने और बचाने की जरूरत है। गौतम बनर्जी ने बताया कि करीब 30 हजार वोटर वाले बंगाली समुदाय का गढ़ माने जाने वाले भागलपुर से विजय मित्रा के बाद किसी भी पार्टी ने बंगाली समुदाय से किसी को भी चुनाव का टिकट नहीं दिया। बिहार विधान परिषद में एक सीट बंगाली समुदाय के लिए आरक्षित होना चाहिए, जिससे राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी इस समाज को मिल सके।
भागलपुर की डॉ. कादंबिनी गांगुली को एशिया की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव प्राप्त
उत्तम देबनाथ ने बताया कि भागलपुर की पहचान एशिया की पहली महिला चिकित्सक कादंबिनी गांगुली से भी है, जिनकी प्राथमिक शिक्षा भागलपुर के मोक्षदा बालिका विद्यालय से हुई थी। इसके बाद मेडिकल से स्नातक कर ये भारत की पहली महिला फिजिशियन डॉक्टर बनीं, जिन्हें न सिर्फ भारत बल्कि एशिया की पहली महिला चिकित्सक बनने का गौरव प्राप्त है। भारत में महिला सशक्तीकरण की अग्रदूत डॉ. कादंबिनी गांगुली का जन्म 18 जुलाई 1861 को बंगाली कायस्थ परिवार में कादंबिनी बसु के रूप में हुआ था, जो ब्रह्म सुधारक ब्रज किशोर बसु की पुत्री थी। तब भागलपुर ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता था। जबकि 1911 में बंगाल से बिहार के अलग होने के बाद भागलपुर बिहार का हिस्सा बन गया।
शरतचंद्र की स्मृति को सहेजने की जरूरत
तापस घोष ने बताया कि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, जिन्होंने अपनी शिक्षा भागलपुर के दुर्गाचरण हाई स्कूल से पूरी की थी, उनकी विरासत को सम्मान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले दुर्गाचरण स्कूल में बांग्ला भाषा पढ़ाई जाती थी, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता और कुछ राजनीतिक कारणों से यह परंपरा लगभग समाप्त होने के कगार पर है। वर्तमान में स्कूल में शरतचंद्र की एक छोटी मूर्ति जरूर स्थापित है, लेकिन इससे उनके योगदान को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि दुर्गाचरण हाई स्कूल में दोबारा बांग्ला भाषा की पढ़ाई शुरू की जाए, ताकि बंगाली समुदाय के बच्चे अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ सकें। यह मांग प्रसिद्ध साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की स्मृति को सहेजने का सार्थक कदम है।
बांग्ला भाषा की पढ़ाई स्कूल-कॉलेजों में हो
काकुली बनर्जी ने बांग्ला भाषा और संस्कृति को लेकर बताया कि शहर में वर्तमान में ऐसा कोई स्कूल नहीं है जहां बांग्ला भाषा की पढ़ाई होती हो। पहले दुर्गाचरण हाई स्कूल और अन्य कई स्कूलों में यह सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन अब वह धीरे-धीरे समाप्त हो गई है। एसएम कॉलेज में भी एक समय बांग्ला भाषा का एक विभाग हुआ करता था, लेकिन उसे भी बंद कर दिया गया। इसके चलते बंगाली समुदाय के बच्चों की शिक्षा को लेकर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि यह वही भागलपुर है जो स्वामी विवेकानंद और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान हस्तियों की गौरवशाली गाथा से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में बंगाली परिवारों को अपनी सांस्कृतिक और शैक्षणिक गरिमा को बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
बरारी स्थित वाटरवेज में पार्क की व्यवस्था हो
तरुण घोष ने बरारी स्थित वाटरवेज क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा की स्थापना को लेकर नगर निगम प्रशासन द्वारा प्रतिमा स्थापित किए जाने की सराहना की, लेकिन साथ ही कुछ जरूरी मांगें भी सामने रखी। उन्होंने बताया कि वहां एक पार्क, स्टेज और ग्रीन रूम की व्यवस्था की जाए, ताकि स्वामी विवेकानंद जयंती सहित अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सके। हर वर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती पर वाटरवेज में कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण आयोजकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि घंटाघर क्षेत्र में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की आदमकद प्रतिमा स्थापित की जाए। घंटाघर के पास स्थित रोड को बंगाली रोड कहा जाता है और उस क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंगाली समुदाय के लोग निवास करते हैं।
कर्ण नगर कॉलोनी में भी मूलभूत सुविधा मिले
अशोक चंद्र सरकार ने जिला प्रशासन का धन्यवाद करते हुए बताया कि शहर की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण रिफ्यूजी कॉलोनी, जहां लगभग 300 बंगाली परिवार निवास करते हैं, उनका नाम बदलकर अब कर्ण नगर कॉलोनी कर दिया गया है। यह बंगाली समुदाय और पूरे क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक कदम है। उन्होंने कहा कि इस कॉलोनी में बुनियादी समस्याओं की कमी है। क्षेत्र में नाला की समस्या गंभीर है। पानी की आपूर्ति बेहद सीमित है। जो नाले बने हैं वह भी अधिकतर खराब स्थिति में हैं। कॉलोनी की सड़कें जर्जर हो चुकी हैं, जिससे बारिश के दिनों में गड्ढों में पानी भर जाता है और आवागमन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि साफ-सफाई की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है। जिसके कारण गंदगी फैलती है।
बांग्ला संस्कृति के विरासतों की पहचान मिटाने की कोशिश
भागलपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। भागलपुर के अलग इलाकों में रहने वाले बंगाली समुदाय के लोगों ने यहां विकास में बड़ा योगदान दिया है। जिसका प्रमाण यहां की कई सड़कें भी हैं, जो बंगाली समाज के लोगों के नाम से जानी जाती है। वहीं एक ओर जहां इस समाज की जड़ें मजबूती से फैल रही हैं वहीं दूसरी ओर यहां की विरासतों और महापुरुषों के ऐतिहासिक स्थलों से छेड़छाड़ कर उसकी पहचान को मिटाने और बांग्ला संस्कृति की विरासत को समाप्त करने की भी कोशिश हो रही है। इससे समाज के लोग आहत हैं। इस कड़ी में भागलपुर का बंगाली माइनॉरिटी एजुकेशन सोसाइटी के अंतर्गत चलने वाला दुर्गाचरण प्राथमिक विद्यालय है। जहां पहले तो बांग्ला भाषा की पढ़ाई बंद कर दी गई, जबकि बीते कुछ दिनों पूर्व विद्यालय के मुख्य द्वार पर बांग्ला भाषा में लिखे बोर्ड को भी हटा दिया गया। इसको लेकर बिहार बंगाली समिति के सदस्य तापस घोष ने बताया कि पूरी दुनिया के प्रसिद्ध उपन्यासकारों में शामिल शरद चन्द्र चटोपाध्याय का ननिहाल भागलपुर है, जहां से उनकी विरासत जुड़ी है। उनलोगों की सरकार से मांग है कि जहां शरत चन्द्र चटोपाध्याय की प्रतिमा स्थापित है, वहां से विद्यालय को नई बिल्डिंग में शिफ्ट कर उस स्थान पर शरत ग्रंथालय बनाया जाय। जहां उनके द्वारा रचना की गई उपन्यासों और पुस्तकों को रखने के साथ उनसे जुड़ी सामग्रियों को भी सहेजकर रखा जाय। जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ी ऐसे महापुरुषों के बारे में जान सकें और बंगाली समाज के प्रतीकों की रक्षा हो सके। उन्होंने बताया कि छोटी दुर्गाचरण के नाम से प्रचलित दुर्गाचरण प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को वेतन सरकार देती है, लेकिन यहां बंगाली भाषा पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं। जिसके कारण समाज के बच्चे बंगाली भाषा की शिक्षा और बोलचाल से दूर होते जा रहे हैं।
लुप्त होती जा रही बांग्ला भाषा को सम्मान मिले
देवाशीष बनर्जी ने कहा कि अल्पसंख्यक आयोग में भाषा के आधार पर बंगाली समुदाय भी आता था, इसलिए स्कूलों में एक पद बांग्ला भाषा के शिक्षक का होना चाहिए। जिससे लुप्त होती जा रही बांग्ला भाषा को सम्मान मिले। बामा खेपा से जुड़े महाशय ड्योढ़ी तांत्रिक पीठ, रविन्द्र भवन, स्वामी विवेकानंद स्मारक, शरद चन्द्र चटर्जी समेत बंगाली समाज से कई ऐसे विभूति और विरासतें रही हैं, जिनको सहेजकर रखने की जरूरत है।
प्रशासन ने कई महापुरुषों की प्रतिमा हटवा दी
प्रशासन द्वारा जिस स्थान को आज क्लीवलैंड मेमोरियल परिसर बनाया गया है, वहां रामकृष्ण मिशन स्कूल चलता था। जहां गरीब बच्चे पढ़ते थे और इस परिसर में मां काली के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस, माता शारदा और स्वामी विवेकानंद के अलावा कई महापुरुषों की प्रतिमा स्थापित थी। लेकिन प्रशासन की ओर से इसे हटा दिया गया। 1890 में स्वामी विवेकानंद ने बरारी वाटर वर्क्स के समीप 48 घंटे तक ध्यान किया।
शिकायत
1. स्वाधीनता के सात दशक पश्चात भी किसी व्यक्ति या स्थान को रिफ्यूजी रूप में पहचानना बहुत ही अशेभनीय है।
2. शरद चंद्र चटर्जी की प्रतिमा के समक्ष चल रहे स्कूल को नए भवन में स्थानांतरित नहीं करने और महान उपन्यासकार की उपेक्षा हो रही है।
3. रविन्द्र भवन और बंगालियों का प्रेक्षगृह नहीं बना, आर्ट गैलरी भी नहीं बन सकी। बंगाली बच्चों के भविष्य से किया जा रहा खिलवाड़।
4. बंगालियों को पलायन से रोकने के लिए कोई पहल नहीं की गई, सुरक्षा के अभाव में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर बेचनी पड़ी जमीन।
5. सैंडिस में रामकृष्ण परमहंस की जगह क्लीवलैंड मेमोरियल बनाना, गुलामी की निशानी है।
सुझाव
1. रोजगार की कमी है, सभी शरणार्थी को प्रधानमंत्री रोजगार की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
2. गरीब तबके को मिलने वाला राशन कार्ड सभी शरणार्थी परिवार को पाने का अधिकार है। बंगाली समुदाय को भी सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले, जिससे सभी मुख्यधारा में जुड़कर आगे बढ़ सकें।
3. सभी जरूरतमंद बंगाली और शरणार्थी परिवार को भी प्रधानमंत्री आवास की सुविधा मिलनी चाहिए। इसके लिए वहां स्थित खुले मैदान में एक कैम्प लगाकर यह सुविधा सबको उपलब्ध कराने की जरूरत है।
4. बहुत सारे गली में रोड, नाली, पानी और बिजली का पोल नहीं है। इसके लिए सर्वेक्षण करके सुविधा उपलब्ध कराने की जरूरत है।
5. रिफ्यूजी कॉलोनी का नाम परिवर्तन के बाद सभी निवासियों के लिए उनके कुछ आवश्यक दस्तावेज पर परिवर्तन आवश्यक है। समाधान के लिए इस कॉलोनी में ही अस्थायी कैंप लगाया जाय।
इनकी भी सुनिए
दुर्गाचरण स्कूल में पहले बांग्ला भाषा की पढ़ाई होती थी, जिससे बंगाली समुदाय के बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता था। लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था समाप्त हो गई, जिससे समुदाय की सांस्कृतिक और शैक्षणिक पहचान कमजोर हो रही है।
-अम्लान कुमार दे
बरारी स्थित वाटरवेज में अक्सर बंगाली समाज द्वारा सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण आयोजन में कई मुश्किलें आती हैं। एक उचित पार्क, मंच और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए।
-रूपा रानी साहा
शहर में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की आवश्यकता है। वर्तमान में ऐसा कोई स्कूल नहीं है, जहां बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई का अवसर मिले। इस कमी के कारण बंगाली समुदाय के बच्चों को शिक्षा के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ रहा है, जिससे उन्हें कई तरह की परेशानी होती है।
-निरुपम कांति पाल
चंपानगर स्थित जमींदारी शाही संपत्ति है। यह संपत्ति ऐतिहासिक रूप से एक बंगाली परिवार की थी, लेकिन वर्तमान में कुछ असामाजिक या बाहरी तत्वों द्वारा इसे अपने अधीन कर लिया गया। इस मामले की गंभीरता से जांच कराई जाए और संपत्ति का सर्वेक्षण करवाया जाए।
-देवाशीष बनर्जी
एक समय बंगाली समाज की राजनीतिक भागीदारी थी। जब समाज से प्रभावशाली नेता राजनीति में सक्रिय थे, लेकिन अब समाज की राजनीतिक भागीदारी काफी कम हो गई है। बंगाली समाज की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए और राजनीति में उनकी उचित भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
-गौतम बनर्जी
रिफ्यूजी कॉलोनी के नाम बदलने के बाद भी इस क्षेत्र में न तो पर्याप्त नाले की व्यवस्था है और न ही सड़कें ठीक हालत में है। सड़कों की स्थिति जर्जर हो चुकी है, जिससे बारिश के दिनों में जलभराव और कीचड़ की समस्या बढ़ जाती है।
-अजय कुमार पाल
समाज के कई बच्चे उच्च शिक्षा और कॅरियर की संभावनाओं के लिए बाहर जरूर गए हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि बंगाली समाज की उपस्थिति या महत्व भागलपुर में कम हो गया है। बंगाली समाज की सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक जड़ें भागलपुर में गहराई से स्थापित हैं।
-अंजलि घोष
रोजगार के अवसरों की कमी के कारण शहर के युवा बेहतर भविष्य की तलाश में बाहर जाने को मजबूर हो रहे हैं। अगर भागलपुर में रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था हो तो युवाओं को अपने शहर और समाज से दूर नहीं जाना पड़ेगा। पहले दुर्गाचरण हाई स्कूल समेत कई संस्थानों में बांग्ला भाषा पढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था लगभग खत्म हो गई है।
-सकेल घोष
बंगाली समाज के लोग घुलने मिलने और संस्कृति से जुड़े होते हैं, बंगीय साहित्य परिषद में समाज के लोगों का समय-समय पर जमावड़ा होता है, लेकिन अपनी संस्कृति को बचाए बिना खुद को मजबूत नहीं किया जा सकता है। आर्थिक और समाजिक स्थिति कमजोर होने के कारण भी यह समाज पिछड़ता गया, जिसका नुकसान अपनी विरासत और महापुरुषों की उपेक्षा के रूप में सामने आ रही है। पूजा पाठ और कुछ सांस्कृतिक आयोजन से समाज में लोग एकजुट होकर आगे आते हैं, इसे बढ़ाने की जरूरत है।
-डॉ. हेमशंकर शर्मा
बंगाली समाज के उत्थान के लिए किसी खास दायरे में बंधकर जब समुदाय की बात करते हैं तो यह व्यवहारिक विकास का प्रयत्न कभी नहीं हो सकता। वर्तमान पद, प्रतिष्ठा और पैसा से अलग हटकर व्यवहारिक सोच को बुजुर्गों तक सुदूर गांव तक पहुंचकर, बेरोजगार युवाओं तक, अविवाहित युवक-युवतियों तक और सामान्य जन-जीवन जी रहे लोगों तक पहुंचना अनिवार्य है।
-अमरेन्द्र कुमार घोष
भारत में महिला सशक्तीकरण के अग्रदूत प्रथम महिला चिकित्सक कादंबिनी गांगुली का जन्म बंगाली कायस्थ परिवार में कादंबिनी बसु के रूप में हुआ था, जो गर्व की बात है। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का गौरव भी प्राप्त है। लेकिन कोई प्रतिमा या स्मारक नहीं है।
-उत्तम देबनाथ
स्वाधीनता के सात दशक बाद भी किसी व्यक्ति या स्थान को रिफ्यूजी रूप में पहचानना बहुत ही अशोभनीय है। जिसके परिवर्तन के लिए यहां के नागरिक बिहार बंगाली समिति के बरारी शाखा के सहयोग से प्रयास किया गया। जगह को कर्ण नगर के रूप में नयी पहचान मिला है। इसके लिए हम गर्व महसूस करते हैं।
-असीम कुमार पाल
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।