बोले बेगूसराय : कंसार-भूंजा कारोबार से जुड़े लोगों की स्वास्थ्य जांच को लगे शिविर
कंसार एक पारंपरिक उद्योग है जहां गांव की महिलाएं भूंजा बनाती थीं। बदलते समय में फास्ट फूड ने इसे प्रभावित किया है। कंसार को लघु उद्योग का दर्जा देने की मांग हो रही है ताकि इसे संरक्षित किया जा सके।...
सामाजिक एकता की मजबूत मिसाल है कंसार। जहां गांव भर की महिलाएं भूंजा भूंजने के लिए जमा होती थी और अपना व दूसरों के सुख-दुख को बांटती थीं। लेकिन बदलते दौर में खाने-पीने की अभिरुचि बदली और कंसार की सोंधी महक विलुप्त होने के कगार पर है। चाउमिन, पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड ने गेहूं, मक्के, चना सहित कई तरह के भूंजा की जगह ले ली है। धुआं के बीच काम करने वाले इन लोगों की स्वास्थ्य जांच के लिए नियमित शिविर लगाने की जरूरत है। आज भी किसी गांव की गलियों से गुजरें तो कभी-कभी कंसार के आसपास भूंजे हुए अनाज की सोंधी महक आपको आकर्षित कर सकती है। हलांकि अब इसकी संख्या बहुत कम रह गई है। लेकिन कई गांवों व कस्बों में इसकी महक मौजूद है। लगभग 20 वर्ष पहले सभी गांवों में एक कंसार होते थे। लेकिन धीरे-धीरे विलीन हो रहे हैं। इसकी संख्या लगातार घट रही है।
समाज की उपेक्षा के कारण आने वाले समय में कंसार विलुप्त हो जाने की आशंका है। माना जाता है कि परपरागत मक्के का उलवा, सत्तू के लिए, चना भूनने के साथ कई मेलिट्स अनाज- ज्वार, बाजरे, मक्का, चना, मटर, खेसारी, मेथी, गेहूं, बर्री, शामा, कोदो व रागी के साथ अनेक प्रकार के अनाजों को भूनकर आहार के रूप में सेवन करते थे। चूंकि परम्परागत कंसार संचालन के लिए जलावन का अभाव होने लगा। अब आधुनिक प्रशिक्षित कंसार श्रमिक बिजली से संचालित अपने कंसार संयंत्र से मेलिट्स आहार भूनने के साथ तीसी और मरूआ का गोली व कैप्सूल बनाकर चिकित्सीय रूप में बाजार से आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकती है। आधुनिक कंसार में बनी गोली दवा से दमा और मधुमेह जैसी जटिल व पुरानी बीमारियों से निजात मिल सकती है। कंसार उद्योग में लगे कानू समाज आदिवासी जैसा जीवन जी रहे हैं।
अंग्रेज और मुगलशासन काल से पहले से ही कानू समाज द्वारा भूंजा भूंजने की प्रथा चली आ रही है। कंसार एक उद्योग है। कंसार संचालित करने के लिए आदिकाल से ही कंसारन निकट के जंगलों से जलावन लाया करती थी। अब जंगल लुप्त होने पर कंसार संचालन में परेशानी हो रही है। आदिवासी जीवन यापन करने वाले कानू समाज को आजादी के तुरंत बाद ही सरकार इसे अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल कर देना चाहिए था। लगातार उपेक्षा की वजह से मेहनती और सामाजिक, सांस्कृतिक धरोहर के मुख्य अंग कानू समाज को अब तक बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाई है। इससे इससे उन्हें कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। कानू समाज के लोगों का कहना है कि उनके समाज के लोगों को उनके बच्चों को न तो पढ़ाई की समुचित व्यवस्था की गई है, न अस्पताल और न बेहतर जीवन यापन की ही व्यवस्था की गई है। इससे निरंतर कानू समाज के लोगों द्वारा कंसार चलाना छोड़कर परदेस में जाकर दैनिक मजदूरी करने पर विवश है। गांव की अधिकतर महिलाएं जो कंसारन का काम करती थी, आज दूसरे राज्यों में मजदूर बनकर अपने बच्चों का लालन पालन कर रही है। कई लोगों का कहना है कि अब तक उन्हें राजनीति से अलग रखा गया। पंचायतों से लेकर विधानसभा व लोकसभा में कानू कंसारन का काम करने वाले लोगों को हिस्सेदारी नहीं दी गई है। इससे उनके बारे में सोचने वाले लोग नहीं है। इनकी आर्थिक स्थिति बदतर है। बाहरी लोगों द्वारा बनारसी भूंजा दुकान खोलकर इनके पुश्तैनी धंधा पर कब्जा कर लिया है। ये लोग परंपरागत उद्योग को अपनाकर बाजार में भूंजा बेचने का काम करने लगे हैं। इससे गांव देहात की महिलाओं का कारोबार प्रभावित होने लगा है। इससे कानू समाज के महिला पुरुष परिवारों का भरण पोषण के लिए मजदूरी करने को अभिशप्त है।
कंसार को मिले लघु उद्योग का दर्जा
कंसार एक परंपरागत उद्योग है। कानू समाज के लोगों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। लेकिन अब तक उपेक्षाओं के दंश झेल रहे इन समुदायों ने भी अपना हक व हिस्सेदारी को लेकर सरकार और समाज से कई मांग कर रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख है कंसार को लघु उद्योग धंधा का दर्जा देने का। अगर इसे कुटिर या लघु उद्योग का दर्जा मिल जाता है तो इससे जुड़े लोगों की परेशानी कम होगी। 2018 में विधानसभा के बजट सत्र में कंसार को लघु उद्योग का दर्जा देने की मांग किए जाने पर सरकार द्वारा ध्वनिमत से स्वीकृति भी दी गयी। तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री ने कंसार श्रमिकों को जीविका दीदीयों के साथ जोड़कर प्रशिक्षित करने एवं आधुनिक कंसार पद्धति को लागू करने की घोषणा की थी। लेकिन अब तक इस घोषणा पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं किए जाने से कंसार श्रमिकों में रोष है। लोगों का कहना है कि विधानसभा व विधान परिषद में घोषणा होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो तो उन्हें समझ नहीं आता है कि उन्हें क्या करना चाहिए। कानू समाज को नेतृत्व करने वाले लोगों ने बताया कि इसके लिए निरंतर धरना प्रदर्शन और हड़ताल आदि कर रहे हैं। कंसार श्रमिक महिलाओं का कहना है कि अगर इस रोजगार को लघु उद्योग का दर्जा मिल जाता है तो इन महिलाओं द्वारा कई तरह के उत्पाद बनाए जाते और देश के अन्य राज्यों में स्वच्छ व स्वस्थ्य भूंजा को अच्छी तरह से पैकेजिंग कर बेचा जा सकता है। महिलाओं ने बताया कि दूध उत्पादन, मधुमक्खी पालन सहित कई रोजगारों में महिलाएं लगी हुई हैं। कंसार उद्योग को भी आगे बढ़ाने में महिलाएं अपनी पूर्ण भागीदारी दे सकती है। इससे उनके समक्ष बेराजगारी और आर्थिक संकट की समस्या नहीं रहेंगे।
सुझाव
1. कंसार कार्य में लगे महिलाओं को प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
2. कई महिलाएं निरक्षर हैं। इन्हें साक्षर बनाने की आवश्यकता है।
3. उद्योग का दर्जा के साथ-साथ आर्थिक मदद देने की जरूरत है।
4. इस कार्य में लगे महिलाओं को आधुनिक मशीन की जरूरत है। इससे जलावन की समस्या से नहीं जूझना होगा।
5. बाजार में कंसार उत्पादों के बारे में प्रचार प्रसार हो तो लोगों का झुकाव स्वस्थ्य खानपान की ओर होगा।
शिकायतें
1. सरकार और समाज द्वारा उपेक्षित किया जाता रहा है।
2. इनके बच्चों के लिए न शिक्षा की व्यवस्था है और न स्वास्थ्य की।
3. आर्थिक तंगी के कारण परदेस में मजदूरी करने को मजबूर हैं।
4. आजादी के इतने वर्षों बाद भी आदिवासी की तरह जलावन चुनना और कंसार चलाना पड़ता है।
5. राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर कंसार चलाने वाले लोग पिछड़े हैं।
उभरा दर्द
कंसार व कानू समाज को सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर कमजोर किया गया। कंसार को उद्योग धंधे से जोड़कर ही कंसार के पारंपरिक रोजगार को बचाया जा सकता है।
योगी गुडाकेश कुमार, अध्यक्ष, कंसार श्रमिक संघ
कंसार व भूंजा बनाने का काम पुश्तैनी एवं पारंपरिक है। इसे नष्ट कर बाजार में बीमारू फास्ट फूड व बेकरी फूड का प्रचलन बढ़ाया जा रहा है। यह खतरनाक है।
पप्पु कानू, मीडिया प्रभारी
कंसार हमारे जीने का साधन है। लेकिन सरकार इसे उपेक्षित कर रही है। इससे हमारे रोजी रोटी पर असर पड़ रहा है।
सुप्रिया कुमारी, फुलबड़िया।
सामाजिक स्तर पर भी कंसार से बने सामानों को सराहना नहीं मिल रही है। इससे धीरे-धीरे यह रोजगार बंद होने के कगार पर है।
संजू देवी, फुलबड़िया।
कंसार में काम करने वाले लोगों के बच्चों को पढ़ने लिखने एवं अन्य सुविधाओं का घोर अभाव है। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें उचित मार्गदर्शन भी नहीं मिल पाता है।
प्रतिभा कुमारी, कंसार संचालक की पुत्री
सरकार द्वारा विधान सभा में कंसार को उद्योग का दर्जा देने की घोषणा की गई थी। लेकिन अब तक उस पर अमल नहीं होना कंसार एवं कानू समाज के प्रति उदासीनता का भाव है।
लक्ष्मी साह, गढ़हरा।
कंसार में पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्द्धक भूंजों व सत्तू का उत्पादन होता है। इसे संरक्षित करने व संवारने की जरूरत है।
उर्मिला देवी, कंसार संचालिका
कंसार संचालन के लिए उन्हें जंगल झाड़ियों में जाकर जलावन की व्यवस्थाकरनी पड़ती है। लेकिन सुरक्षा के कोई साधन नहीं रहने से हमेशा कीड़े मकोड़े का भय रहता है।
मरनी देवी, कंसार संचालिका
गर्मी, बरसात और ठंड में भी कंसार के स्वस्थ्य भूंजे को बनाने के बाद उसे बाजार में बेचना काफी मुश्किल लगता है। बाजार के अभाव में उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव नहीं आ रहे हैं।
सुनीता देवी, फुलबड़िया
सरकार द्वारा हमें किसी तरह की मदद नहीं मिलती। आवास, शौचालय और बच्चों के लालन पालन में भी सरकार उनकी उपेक्षा करती है।
नीलम देवी, फुलबड़िया।
अभी तक कंसार फूस की झोपड़ी में ही चलता है। इसके लिए शेड की व्यवस्था होनी चाहिए। शेड के अभाव में जानवरों द्वारा कंसार को तोड़ दिया जाता है।
मनीष विद्यार्थी, आलापुर
कंसार संचालकों के छोटे बच्चों के लिए बगल में पालना घर होना चाहिए। कई महिलाएं छोटे बच्चों को घंटों छोड़कर कंसार का संचालन करती हैं।
अरविन्द साह, रशीदपुर
भूंजा बनाने के नाम पर दूसरे वर्ग के लोगों द्वारा इस व्यवसाय को अपनाना चाहते हैं। इसलिए एकजुट होकर अपने अधिकार के लिए लड़ने की आवश्यकता है।
नरेश साह, नागदह।
मूलभूत सुविधाएं भी भूंजा बनाने वाले व बेचने वाले परिवारों को उपलब्ध नहीं है। समाज के मुख्य धारा मेंलाने के लिए सरकार को हमारी सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है।
रामबिलास साह, महना
राज्य व केन्द्र सरकार की उपेक्षाओं के कारण कंसार एवं भूंजा कारोबार को पहचान नहीं मिल सकी है। भूंजा कारोबार में लगे अधिकतर लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
सुरेश साह जुग्नु
गांव से शहर तक भूंजा का कारोबार फैला है। अगर कंसार संचालकों को प्रशिक्षित किया जाय तो यह स्वास्थ्य बिगाड़ने वाले सैकड़ों उत्पादों पर असर डालने में कामयाब होगा।
प्रभाष साह,
कंसार का संचालन सदियों से हो रहा है। लेकिन आपसी एकजुटता नहीं रहने के कारण उसे कई तरह का अधिकार अब तक नहीं मिल पाया है।
सोनू कुमार, ग्राहक
कंसार द्वारा बनाए गए भूंजा का प्रयोग हम कई वर्षों से कर रहे हैं। यह स्वस्थ्य एवं पौष्टिक है। इसको आगे बढ़ाने का काम कियाजाना चाहिए।
चंदन कुमार, ग्राहक
कंसार के संचालन में आधुनिक मशीनों का प्रयोग से उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी और आमदनी भी बढ़ेगी। लेकिन इसके लिए सरकार कोई व्यवस्था नहीं कर रही है।
धर्मेन्द्र कुमार साह
सरकार और समाज सभी लोगों की इच्छा शक्ति से कंसार और भूंजा कारोबारियों के जीवन में खुशहाली आएगी। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है।
ज्ञानेश कुमार, महना
प्रस्तुति:- अशोक कुमार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।