चूजे मरे तो टूट जाती है पूंजी, बने डंपिंग प्वाइंट
बेतिया में सात हजार चिकन दुकानदार कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। वेस्टेज प्रबंधन में नगर निगम की लापरवाही, चिकन में बीमारियों की जांच की कमी और बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी सहायता का अभाव है।...
बेतिया में छोटे-बड़े सात हजार चिकन दुकानदार कई चुनौतियों से घिरे हैं। दुकान से निकलने वाले वेस्टेज उठाने में निगमकर्मी आनाकानी करते हैं। कई बार वेस्टेज दुकान में ही रह जाता है। उन्हें खुद साफ करना पड़ता है। मुर्गा में कई बार बीमारियां हो जाती हैं। इसकी जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कई बार उनकी मौत हो जाती है। इससे दुकानदारों को काफी नुकसान होता है। इससे उनकी पूंजी तक डूब जाती है। लोन के लिए बैंक की शाखा में जाने पर कोई सुननेवाला नहीं है। ऐसे में महाजनों से कर्ज लेकर दुकान चलाना पड़ता है। कमाई हुई राशि कर्ज व पूंजी जुटाने में ही चली जाती है। इससे बच्चों को बेहतर स्कूलों में शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। चिकपट्टी के चिकेन कारोबारी तौसीफ उर्फ सोनू कहते हैं कि चिकन कटिंग करने के बाद उससे निकलने वाले वेस्टेज को उठाने के लिए नगर निगम कर्मी तैयार नहीं होते। अतिरिक्त राशि देकर उनसे वेस्टेज उठवाया जाता है। इसके लिए बार-बार आग्रह करना पड़ता है। हमें प्रशासन की ओर से सुविधाजनक ऋण व रोजगार मिले तो हमारी स्थिति सुधर सकती है। लखनऊ ,गोरखपुर, कानपुर, मोतिहारी, चकिया व पटना के आसपास से छोटे-बड़े कारोबारी ट्रांसपोर्ट के माध्यम से चिकेन मंगवाते हैं। सुरक्षित चिकन मंगवाने में भी जगह-जगह टैक्स देना होता है। इससे आर्थिक परेशानी होती है।
बाहर से मंगाए गए चिकन को दुकानदार अपने घर में बनाए गए स्टॉक रूम में ही रखते हैं। इसे हमेशा चिकन के बीमार होने अथवा मर जाने की आशंका बनी रहती है। प्रशासन की ओर से इनके मेंटेनेंस के लिए कोई सुविधा प्रदान नहीं की गई है। बेहतर रख-रखाव व संक्रमण का खतरा नहीं हो इसके लिए प्रशासन की ओर से कोई प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अगर चिकन खराब हो जाए तो उस दिन छोटे दुकानदारों के घर का चूल्हा भी नहीं जलता। कई दुकानदारों का चिकन नहीं बिकता तब परिवार चलाने में भी परेशानी होती है। परिवार चलाने के लिए महाजन से कर्ज लेने की नौबत आ जाती है। अधिकतर दुकानदारों ने बताया कि वह अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, ताकि उनको इस तरह का काम नहीं करना पड़े। लेकिन शहर के निजी स्कूलों में जब वे नामांकन के लिए जाते हैं तो उनको किसी प्रकार की रियायत नहीं मिलती। फीस की मोटी राशि देना उनके वश की बात नहीं होती। सरकार ने शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब परिवार के बच्चों के नामांकन के लिए नियमावली जरूर बनाई है। लेकिन इसका लाभ उन्हें नहीं मिलता।
अशिक्षा के माहौल में हमारे समाज के बच्चे भी दुकान चलाने को विवश होते हैं। चिकन की सफाई करने में वे अक्सर बीमार पड़ जाते हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों में इलाज के समय आयुष्मान भारत से उचित सुविधा नहीं मिलती है। अगर चिकन की मांग अधिक रहती है तो मांग को पूरा करने में चिकन कटर की तबीयत खराब हो जाती है। संक्रमण की वजह से उसकी बीमारी ठीक नहीं होती। इससे आमदनी रूक जाती है। सबसे अधिक आवश्यकता डंपिंग जोन की है। हमारे समाज की महिलाओं के स्वावलंबन के लिए सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलता। अगर प्रशासन इस दिशा में हमारी मदद करें तो छोटे स्तर पर दुकान चलाने वाले लोगों के घर की महिलाएं भी स्वावलंबी बन सकेंगी। इससे परिवार का गुजर बसर करना आसान हो जाएगा। इन सब के अलावा प्रशासन की ओर से हमारे समाज के लोगों का निशुल्क बीमा भी करना चाहिए, ताकि कारोबार में मंदी आने पर भी हमारी पूंजी नहीं डूबेगी। हमसभी को बैंक से ऋण की सुविधा भी मिलनी चाहिए। ताकि महाजन से कर्ज नहीं लेना पड़े। हमारे बच्चों को भी आरटीई के तहत शिक्षा मिलनी चाहिए। इसके लिए प्रशासन को हमारी सहायता करनी चाहिए। हम लोगों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि व्यवसाय के संचालन में सुविधा हो।
प्रस्तुति- मनोज कुमार राव
बिहार लघु उद्योग योजना के तहत जिले के वैसे गरीब, जिनकी मासिक आय छह हजार से कम है उनको तीन अलग-अलग तीन किस्तों में कुल दो लाख की राशि प्रदान की जाएगी। चयनित आवेदकों को तीन दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिदिन दो हजार रुपये स्टाइपेंड के रूप में दिये जाएंगे। इसका लाभ लेकर कारोबार से जुड़े 61 ट्रेड के लिए इच्छुक महिला व पुरुष उद्योग विभाग को ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। यह योजना गरीब
तबके के सामान्य, पिछड़ा, अति पिछ़डा,अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए है। आवेदक को बिहार का निवासी होना आवश्यक है।
-रोहित राज, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग
सुझाव
1. नगर निगम के अधिकारियों को चिकेन व्यवसाय से जुड़े कटिंग वेस्टेज को डंप करने के लिए जगह निर्धारित करनी चाहिए। हमारे समाज के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में पहल होनी चाहिए।
2. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए प्रशासन को शिक्षा के अधिकार के तहत सभी नियमावली का पालन करना चाहिए ।
3. चिकेन कटिंग करने वाले लोगों को कई बार त्वचा संबंधित रोग का सामना करना पड़ता है। उनके इलाज की बेहतर सुविधा होनी चाहिए। आयुष्मान कार्डधारक का अस्पताल में सही इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए।
4. चिकन व्यवसाय से जुड़े छोटे बड़े कारोबारी के घर की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास होना चाहिए। महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में भी प्रशासन को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
5. इस कारोबार से जुड़े सभी छोटे-बड़े कारोबारी के लिए निशुल्क बीमा भी होनी चाहिए। इस दिशा में सरकार को योजना बनानी चाहिए। बाहर से मंगाए गए चिकेन की खेप को घर में रखना कई बार नुकसानदेह होता है।
शिकायतें
1. चिकन व्यवसाय से जुड़े लोगों को चिकन कटिंग के बाद उससे निकले वेस्टेज को डंप करने की समस्या सबसे अधिक है।
2. बाहर से चिकन आपूर्ति करते समय ट्रांसपोर्टिंग को लेकर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जगह-जगह नजराना देना पड़ता है। इससे आर्थिक परेशानी होती है।
3. छोटे व्यवसाय करने वाले लोगों को स्वावलंबन के लिए सरकार की ओर से कोई विशेष योजना नहीं है। इससे परेशानी होती है। हमारे समाज की महिलाओं को भी बेहतर प्रशिक्षण देकर रोजगार लायक बनाने की दिशा में कार्य होना चाहिए।
4. चिकन व्यवसाय से जुड़े लोगों के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए सरकार की ओर से कोई विशेष योजना नहीं है। इससे पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही जैसा काम करने की मजबूरी बनी हुई है ।
5.लगातार काम करने से कई बार बीमार होने पर सरकारी अस्पतालों में विशेष सुविधा नहीं मिलती है। आयुष्मान कार्ड धारकों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है।
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