श्राद्ध भोज के बदले गरीबों के बीच बांटे कंबल
भरगामा, एक संवाददाता सामूहिक श्राद्ध का भोज की प्रथा कई परिवार को आर्थिक रूप
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भरगामा, एक संवाददाता सामूहिक श्राद्ध का भोज की प्रथा कई परिवार को आर्थिक रूप से तोड़ देती है। इससे शोकाकुल परिवार पर जहां मानसिक,शारीरिक व आर्थिक बोझ पड़ता है, वहीं इस परंपरा के कारण कई परिवार कर्ज तले दबकर उजड़ भी जाते हैं। इसी को ध्यान में रखकर अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु को प्रारंभिक शिक्षा देने के साथ दर्जनों क्रांतिवीर स्वतंत्रता सेनानी को अवतरित करने वाली सिमरबनी की धरती ने पुन: एक सामाजिक चेतना का काम किया है। मंडल समुदाय बाहुल्य सिमरबनी के रूपेश कुमार जो उत्क्रमित मध्य विद्यालय छर्रापट्टी में एचएम के पद पर कार्यरत हैं ने समाज के सामने नजीर पेश किया है। उन्होंने अपने पिता व प्रखर समाजसेवी सुरेंद्र प्रसाद मंडल के निधन पर श्राद्ध भोज न कर गरीब और असहाय लोगों के बीच कंबल का वितरण किया। बता दें कि रूपेश कुमार ने अपनी मां व कन्या प्राथमिक विद्यालय सिमरबनी से सेवानिवृत प्रधान शिक्षिका के निधन पर भी 51 गरीब एवं असहाय के बीच कंबल का वितरण किया था। उस समय भी लोगों ने रूपेश कुमार के निर्णय का दबे जुबान से विरोध भी किया था बावजूद भोज नहीं किया गया। आनंदमार्ग पद्धति से साधारण तरीके से कर्म के उपरांत गरीबों के बीच कंबल का वितरण किया। इस बावत रूपेश कुमार ने बताया कि श्राद्ध भोज का खामियाजा आर्थिक रूप से विपणन परिवार को झेलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि भोज करने के लिए वे सक्षम थे लेकिन उन्होंने पिता के निधन के बाद 31 गरीबों के बीच कंबल का वितरण किया। गरीब लोग इस परंपरा के कुचक्र में पड़कर बर्बाद हो रहे हैं। बहरहाल रूपेश कुमार का यह निर्णय आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा व लोगों के बीच नई रोशनी लाने का काम करेगा। इधर पूर्व प्रमुख दिव्य प्रकाश यादवेंदु ने रूपेश के इस साहसिक निर्णय कि प्रशंसा करते हुए कहा कि समाज में ये नई नजीर पेश करेगा।
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