कब बदलना चाहिए टायर, ऑयल और ब्रेक पैड? आपकी कार देती है इशारा; नहीं समझा तो नुकसान!
- आपकी जिंदगी में एक हमसफर ऐसा भी है जिसके साथ आप सबसे ज्यादा ट्रैवल करते हैं। ये हमसफर कोई और नहीं बल्कि आपकी चहेती कार है। जी हां, घर से ऑफिस जाना हो या ऑफिस से घर आना है। मार्केट जाना या फिर कहीं घूमने-फिरने, हर मौके पर कार ही आपका साथ देती है।
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आपकी जिंदगी में एक हमसफर ऐसा भी है जिसके साथ आप सबसे ज्यादा ट्रैवल करते हैं। ये हमसफर कोई और नहीं बल्कि आपकी चहेती कार है। जी हां, घर से ऑफिस जाना हो या ऑफिस से घर आना है। मार्केट जाना या फिर कहीं घूमने-फिरने, हर मौके पर कार ही आपका साथ देती है। कार में सिर्फ पेट्रोल या डीजल डलवाकर इससे बिंदास घूम सकते हैं। हालांकि, आपको अपने इस हमसफर का ध्यान रखना भी जरूरी है। दरअसल, एक समय के बाद कार कार में टायर्स, ब्रेक शू, इंजन ऑयल और कूलेंट को बदलवाने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए कार इंडिकेशन भी देती है।
आपने कार की इस इंडीकेशन को नहीं समझा, तब इसमें एडिशनल खर्च आ सकता है। तो बस आज की इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि कार ये टायर्स, ब्रेक शू, इंजन ऑयल और कूलेंट को कब बदलना चाहिए। इसके लिए कार कौन से इशारे करती है। ताकि आपका ये हमसफर सालों-साल फिट रहे और बिना किसी टेंशन के आप इससे घूमते रहे। बता दें कि इन दिनों ज्यादातर गाड़ियों में MID पर इन बातों की डिटेल मिल जाती है।
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Mahindra BE 6
₹ 18.9 लाख
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Tata Punch EV
₹ 9.99 - 14.29 लाख
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Toyota Urban Cruiser Hyryder
₹ 11.14 - 19.99 लाख
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Tata Nexon EV
₹ 12.49 - 17.19 लाख
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1. कार टायर्स बदलने का सही समय और इंडिकेशन
टायर बनाने वाली दो बड़ी कंपनियां सीएट (CEAT) और अपोलो (Apollo) के मुताबिक, टायर्स की बेहतर लाइफ के लिए आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और इसे कब बदलना चाहिए? इसकी डिटेल इन्होंने शेयर की है। चलिए आपको एक-एक कर इन तमाम बातों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
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>> ये कंपनियां (सीएट और अपोलो) बताती हैं कि टायर को आम तौर पर हर 5 से 6 साल में बदलने की जरूरत होती है, भले ही उसका ट्रेड घिसा हुआ ना हो। गाड़ी की सेफ्टी के लिहाज से ऐसा करना जरूरी होता है। यदि आपको टायर के चलने वाले हिस्से यानी ट्रेड में 6mm से ज्यादा डायमीटर का छेद दिखाई देता है, तो टायर बदल लेना चाहिए। आम तौर पर टायर्स की लाइफ 30,000 से 50,000 किलोमीटर ही होती है। टायर्स और ट्रेड की नियमित रेगुलर जांच की जानी चाहिए।
>> अगर आपको लगता है कि ट्रेड घिस गया है, तो नया टायर खरीदने का समय आ गया है। आम तौर पर कार सर्विसिंग के दौरान मैकेनिक टायर्स की भी जांच करते हैं। एक अच्छा मैकेनिक ट्रेड के घिसने के सभी संकेतों को पहचानता है। वो आपको टायर बदलने में मदद कर सकता है। अगर आपकी कार का एक्सीडेंट हुआ है जिसमें टायर्स को भी हल्का नुकसान पहुंचा है, तब भी टायर्स को बदल लेना चाहिए। यदि गाड़ी का बैलेंस किसी एक दिशा की तरफ है, ये भी टायर्स खराब होने का इंडिकेशन है।
>> अगर आप अपनी कार को लगातार खराब सड़कों पर चला रहे हैं तब आपको अपने टायर्स की जांच जल्दी-जल्दी कराना चाहिए। आपको जल्दी टायर बदलने की भी जरूरत पड़ सकती है। खासकर ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर गाड़ी चलाना, बहुत सारे गड्ढों वाली सड़कें, गीली सड़कें, अत्यधिक तापमान वाला वातावरण, अगर आप बर्फ वाली सड़कों पर गाड़ी चला रहे हैं, तो टायर्स को तेजी से नुकसान पहुंचता है।
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टायर को लेकर ऑटो एक्सपर्ट अमित खरे (Ask CarGuru यूट्यूब चैलन) ने बताया कि हर कंपनी साइज और कैपेसिटी के हिसाब से अलग-अलग तरह के टायर्स का इस्तेमाल करती है। जिसमें अलग-अलग रेटेड टायर्स शामिल हैं। नॉर्मल कारों में 180Km/h की स्पीड तक काम करने वाले टायर्स, परफॉर्मेंस कारों में 240Km/h की स्पीड तक काम करने वाले टायर्स और सुपर स्पोर्ट्स कारों में 280Km/h से 300Km/h से ज्यादा की स्पीड तक काम करने वाले टायर्स का इस्तेमाल होता है। सभी टायर्स में अलग तरह की रबड़ का इस्तेमाल किया है। ये नॉर्मल और किसी स्पेसिफिक कंडीशन जैसे बर्फ, खराब रास्ते, रेसिंग या अन्य के लिए होते हैं। भारत में ज्यादातर एक ही तरह टायर्स लगाए जाते हैं।
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अमित खरे बताते हैं कि टायर जल्दी घिसने के कई अलग-अलग कारण होते हैं। जैसे व्हील बैलेंसिंग या व्हील एलाइनमेंट खराब होने पर टायर्स एक तरफ से घिसते हैं। यदि टायर्स में लगातर हवा कम है तो वो किनारों से घसने लगते हैं। इसी तरह टायर में हवा ज्यादा है तब वो बीच से घिसने लगता है। नॉर्मली टायर को 40,000Km तर चलाया जा सकता है। वहीं, बेहतर राइडिंग कंडीशन में 70,000Km तक चल जाते हैं। टायर्स के ट्रेड में एक कॉइन को डालकर भी चेक कर सकते हैं। यदि कॉइन इसमें छिप रहा है तब उसकी लाइफसाइकिल अभी बची है।
2. कार इंजन ऑयल बदलने का सही समय और इंडिकेशन
इसे लेकर अमित खरे ने कहा कि किसी भी कार में इंजन ऑयल कब चेंज किया जाएगा इस बात को कंपनी के द्वारा ही तय किया जाता है। जैसे अधिकतम कारों में कंपनी 10,000Km के बाद इंजन ऑयल बदलने की सलाह देती हैं। वहीं, कुछ कंपनियां जैसे वोक्सवैगन और स्कोडा अपनी कारों में 15,000Km के बाद इंजन ऑयल बदलने के लिए कहती हैं। हालांकि, वो इसके लिए सिंथेटिक ऑयल ही डालने की सलाह देती हैं। इसके लिए कंपनियां कुछ स्पेसिफिक इंजन ऑयल भी सजेस्ट करती हैं।
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इंजन ऑयल कब खराब हो जाता है ये बात अलग-अलग कंडीशन के हिसाब से तय होती है। जैसे, इंजन का ऑयल बार-बार गंदा हो रहा है तो इसका मतलब ये है कि इंजन ऑयल को ज्यादा कंज्यूम कर रहा है, या फिर वो ऑयल को ज्यादा घिस रहा है। ऐसी कंडीशन में ऑयल को 8000Km पर ही बदल लेना चाहिए। इन दिनों मार्केट में जो नई कार आ रही हैं उसमें इंजन ऑयल 15,000Km तक भी आराम से काम करता है। इंजन ऑयल को समय पर चेंज नहीं किया तो बहुत ज्यादा स्टिकी हो जाता है। ऐसी स्थिति में वो ज्यादा फ्यूल खर्च करने लगेगा। इससे कार का माइलेज गड़बड़ हो जाएगा। यदि इंजन ऑयल में किसी तरह से कूलेंट मिक्स होने लगा तब स्थित ज्यादा खराब हो सकती है।
कूलेंट की बात करें तो ये एक ऐसा प्रोडक्ट है जिसे आसानी से बदलने की जरूरत नहीं होती है। कूलेंट का मुख्य काम ये है कि वो अपने अंदर ज्यादा गर्मी या ज्यादा ठंडक को बचाकर रखे। उसका नेचर तेजी से गर्म होना या ठंडा होने का होना चाहिए। इसके लिए उसमें कई तरह के कैमिलल का इस्तेमाल किया जाता है। ताकी वो उसकी गर्मी को सोखकर रेडिएटर को ठंडा कर दे। कूलेंट को 40,000Km से 70,000Km की अलग-अलग कंडीशन के हिसाब से बदला जा सकता है। इसके बदलने की मुख्य वजह इसमें मेटल के कुछ पार्ट्स का आ जाना होता है। एक समय के बाद इसकी डेनिसिटी भी कम हो जाती है, तभी इसे बदलने की जरूरत पड़ती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि ये कहीं से लीक तो नहीं हो रहा।
3. कार ब्रेक पैड बदलने का सही समय और इंडिकेशन
ऑटो एक्सपर्ट अमित खरे ने बताया कि कार कंपनियों की मानें तो वो हर 10,000Km पर ब्रेक पैड या ब्रेक शू को बदलवाने के लिए कहती हैं। कंपनियां सिर्फ उसी कंडीशन में ब्रेक पैड को नहीं बदलता जब उसकी स्थिति नई जैसी होती है। कई लोग कार के ब्रेक को इतने बेहतर तरीके से लगाते हैं कि वो 20,000Km के बाद भी नहीं घिसते। ऐसे में यदि ब्रेक पैड 40% तक भी बचा है तब कंपनी उसे नहीं बदलतीं, या फिर उसे बदलने की एक डेडलाइन भी दे देती हैं। कार के ब्रेक कम लग रहे हैं तो ये भी इस बात का एक इंडिकेशन होता है कि ब्रेक पैड बदलवान का समय आ गया है।
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ब्रेक पैड को फिजिकली देखकर ही इस बात का बता चलता है। इसके अलावा, यदि ब्रेक पैड ज्यादा घिस चुके हैं तब वो ब्रेक लगाने पर ज्यादा आवाज करने लगते हैं। बहुत ज्यादा घिस चुके हैं तब इसमें से चिंगारी भी आने लगती है। इस तरह ब्रेक पैड की पहचान हो सकती है। ब्रेक पैड समय पर चेंज नहीं करवाया तब एक्सीडेंट का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, गाड़ी के जब अचानक से ब्रेक लगाने पड़ते हैं तब वो बेहतर काम नहीं करते। ऐसे में गाड़ी गड्डे से कूद सकता है। मोड़ पर गाड़ी बहक सकती है। साथ ही, कार का व्हील एलाइनमेंट, व्हील बैलेंसिंग भी गड़बड़ होती है। कार के सस्पेंशन पर भी इसका बुरा असर होता है।
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