मौनी अमावस्या पर शंकराचार्यों से जानें कैसे करना चाहिए स्नान, मौन रहने के लाभ भी बताए
वृष राशि गते जीवे मकरे चंद्र भास्करौ, अमावस्या तदा योग: कुम्भख्यस्तीर्थ नायके।’ इस श्लोक से मौनी अमावस्या का महात्म्य समझाते हुए शंकराचार्य स्वामी अभिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कहते हैं कि जब सूर्य चंद्रमा मकर, गुरु वृष राशि पर हों
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वृष राशि गते जीवे मकरे चंद्र भास्करौ, अमावस्या तदा योग: कुम्भख्यस्तीर्थ नायके। इस श्लोक से मौनी अमावस्या का महात्म्य समझाते हुए शंकराचार्य स्वामी अभिमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कहते हैं कि जब सूर्य चंद्रमा मकर, गुरु वृष राशि पर हों और अमावस्या की तिथि हो तो तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ का योग होता है। कुम्भ योग में मौनी अमावस्या ही प्रमुख पर्व है। मौन स्नान के माहात्म्य पर प्रस्तुत है शंकराचार्यों के विचार-
गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती कहते हैं कि यह पर्व संयम का द्योतक है। मौनी अमावस्या के विशेष पर्व काल में स्नान करने पर विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास का तो महत्व है ही मौनी अमावस्या पर मौन स्नान करने पर ईश्वर भक्ति से जीवन तृप्त हो जाते हैं और तीर्थराज का अनुग्रह प्राप्त हो जाता है। शास्त्रत्तें में वर्णित है कि पवित्र जल में ऊर्ध्वाधर आकृति में डुबकी लगा कर स्नान करना चाहिए। जल में खड़े होकर दातून नहीं करना चाहिए। जल से भीगे तौलिए से शरीर नही पोंछना चाहिए। स्नान के समय तैरना भी नहीं चाहिए। ग्रह नक्षत्रों के संयोग से माघ महीने में अमावस्या का विशेष योग होता है।
शक्ति संचय का सबसे उत्तम साधन है मौन : स्वामी सदानंद
श्रीद्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती कहते हैं कि अध्यात्मिक दृष्टि से मौन हमारे शक्ति संचय का सबसे उत्तम साधन है। सत्य बोलने के बहुत साधन हमारे पास नहीं होते हैं। मनुष्य सहज में मिथ्या भाषण कर देता है। झूठ बोल देता है। मौन रहने पर इन विकारों से एक दिन बचा जा सकता है। मनुष्य को ध्यान रखना चाहिए वाणी से किसी को कष्ट न पहुंचे, वाणी हमेशा मधुर हो, वाणी निकले तो मधुर निकले न निकले तो मौन हो जाओ। मौन का तात्पर्य कम से कम एक दिन स्नान के पहले हमारे मुख से कोई ऐसा शब्द न निकले जो अपवित्र हो, दूषित हो।
तो अपने आप आ जाती है शांति: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कहते हैं कि अमावस्या से 15 दिन पहले और 15 दिन बाद की तिथियां अमावस्या के प्रभाव से प्रभावशाली होकर धार्मिक ऊर्जा का संचार करती हैं। यानी कुम्भ योग में अन्य स्नान पर्वों का महत्व मौनी अमावस्या के साहचर्य के प्रभाव से है। मौनी अमावस्या के दिन संकल्प के साथ मौन रहकर स्नान करने से असीम पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मौन का तात्पर्य शांति से है। जब हम ध्वनि करते हैं तो उससे तरंगे निकलती हैं। पहले हम वाणी का मौन स्वीकार करते हैं, जब वाणी का मौन सध जाता है तो हम मन का मौन स्वीकार करते हैं।
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