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Mahashivratri: यह स्वयं महाशिव हो जाने की रात्रि है

  • सत्यं शिवं सुंदरम् के प्रतीक शिव और उनकी रात्रि, महाशिवरात्रि जागरण की रात्रि है, जो चेतना से भरी है। यहस्वयं महाशिव हो जाने की रात्रि है।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, आनंदमूर्ति गुरुमांTue, 25 Feb 2025 10:18 AM
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Mahashivratri: यह स्वयं महाशिव हो जाने की रात्रि है

आदि देव महादेव, जो आशुतोष भी हैं और भोले शंकर भी। एक ओर गृहस्थों के आदर्श हैं तो दूसरी ओर औघड़दानी, श्मशान साधक भी हैं। सत्यं शिवं सुंदरम् के प्रतीक शिव और उनकी रात्रि, महाशिवरात्रि जागरण की रात्रि है, जो चेतना से भरी है। यहस्वयं महाशिव हो जाने की रात्रि है। शिव पुराण में भगवान शंकर की बहुत-सी लीलाओं का वर्णन आता है। शिव जी के भक्त उनकी हर बात को ‘लीला है’ कहकर आनंदित हो जाते हैं। पर ज्ञान की दृष्टि से अगर देखें और समझें तो हर लीला का एक आध्यात्मिक अर्थ है। अगर आप उस आध्यात्मिक अर्थ को जान पाएं और समझ लें तो आपकी बुद्धि का अज्ञान दूर हो जाता है। इसलिए इन लीलाओं को समझना इतना सहज नहीं है।

कृष्ण एवं राम के जन्म का समय हमें मालूम है, लेकिन ब्रह्मा, विष्णु और महादेव शंकर इन तीन देवताओं के जन्म के समय का उल्लेख कहीं पर भी नहीं है। इन तीनों का एक बाहरी स्वरूप है और एक आध्यात्मिक स्वरूप है। भगवान शंकर के लिए यह कहा गया है कि यह मृत्यु के देवता हैं। प्राणियों की मृत्यु इनकी मर्जी से होती है, इसलिए अगर किसी की मृत्यु का योग हो तो ज्योतिष शास्त्र यह कहता है कि वह महामृत्युंजय का जप करें, मृत्यु का योग टल जाएगा। हालांकि मृत्यु का योग टल जाता है, इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी मौत नहीं होगी। जो पैदा हुआ है, वह तो मरेगा ही लेकिन मौत का डर दूर हो जाएगा। खयाल रहे, मृत्यु से ज्यादा मृत्यु का डर मार देता है। उस भय से मुक्ति पाने के लिए महामृत्युंजय का जप करने को कहा गया है।

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महामृत्युंजय मंत्र सिर्फ एक शुरुआत है। वास्तविकता यह है कि देह मरती है, देह मरेगी ही। लेकिन उस देह से पार जो तुम्हारा असली स्वरूप है, वह वही है, जो भगवान शंकर का है। जो शंकर का आत्मदेव है, वही तुम्हारा भी आत्मदेव है। लेकिन जो अपनी देह के साथ आसक्त है, वह शिव को नहीं समझ सकता। शिव अर्थात कल्याणस्वरूप, शिव अर्थात सत्यस्वरूप, शिव अर्थात चैतन्यस्वरूप, शिव अर्थात आनंदस्वरूप। जिसने अपने भीतर सत्-चित्-आनंद स्वरूप शिव को जान लिया, वह सदा के लिए जन्म-मरण के चक्र से ही बाहर निकल जाता है।

भगवान शंकर की मूर्ति पर तीसरी आंख को मस्तिष्क के बीचोबीच बनाया जाता है। याद रहे तुम्हारी भी तीसरी आंख तुम्हारे मस्तिष्क के बीचोबीच है। योगशास्त्र के अनुसार यह तीसरा नेत्र ही आज्ञा चक्र है। जब शंकर अपनी तीसरी आंख खोलते हैं तो प्रलय हो जाती है। जब तक आपका यह तीसरा नेत्र बंद है, तब तक माया, ममता, राग, द्वेष, अभिनिवेश, न जाने कैसी-कैसी वासनाओं के संस्कार आपके चित्त में भरे रहते हैं। पर जिस दिन ध्यान करते-करते शक्ति का जागरण हो जाता है और शक्ति मूलाधार चक्र से उठती हुई आज्ञा चक्र तक पहुंच जाती है, तब यह तीसरा नेत्र खुल जाता है अर्थात ज्ञान के प्रकाश का उदय हो जाता है। जब महादेव शिव की तीसरी आंख खुलती है तो प्रलय हो जाती है। ऐसे ही जब आपका यह ज्ञान नेत्र खुलता है, तो आपके चित्त से माया, ममता इत्यादि का नाश हो जाता है। हमारी यह तीसरी आंख खुलेगी कैसे? उसके लिए साधना करें।

जिस प्रकार महादेव शंकर के शरीर पर नाग है, उसी प्रकार आपके शरीर में भी एक नाग है, लेकिन वह कुंडली मारकर सोया पड़ा है, इसी कारण से उसे ‘कुंडलिनी’ कहा जाता है। हम सबके शरीर में मूलाधार चक्र पर यह शक्ति कुंडलिनी रूप से मौजूद है। यह शक्ति जब तक सुप्त है, तब तक जुबान से चाहे लाखों बार राम-राम कहते रहो, कुछ नहीं होगा। जब आप किसी संत या जाग्रत ब्रह्मज्ञानी गुरु द्वारा बताई विधि से अभ्यास करते हैं तो कुछ ही दिनों में आपकी यह शक्ति जाग्रत होने लगती है। यही शक्ति जब ऊर्ध्वगामी होकर सहस्रार चक्र तक पहुंचती है, तब शिव और शक्ति का मिलन होता है।

भगवान महादेव के रूप-स्वरूप से भी हमें हमारी साधना के लिए बहुत-से सूत्र मिलते हैं, जैसे महादेव अपनी देह पर श्मशान की भस्म, चिता की भस्म लगाते हैं। यह संकेत है कि संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जो हमेशा बनी रहे। तुम्हारी देह भी भस्म हो जाएगी और ऐसे ही बाकी सब चीजें भी समाप्त हो जाएंगी। जब तक शरीर है, संसार है, वस्तुएं हैं, तब तक उनको इस्तेमाल करो, लेकिन उनके साथ मोह मत बांध लेना। हम जिस चीज से प्यार-मोहब्बत करेंगे, जिस चीज के साथ अपने मन को जोड़ लेंगे, वह चीज अंतत: राख हो जाएगी। हम जिस देह को लेकर जी रहे हैं, यह शरीर एक दिन चिता में जल जाएगा, लेकिन इसी देह में जो चैतन्यस्वरूप शिव हैं, वह कभी नहीं मरेंगे, वह कभी खत्म नहीं होंगे। सवाल यह उठता है कि क्या आपने अपने अंदर मौजूद उस शिव को जाना है, समझा है या नहीं समझा है?

महादेव के लिए प्रसिद्ध है कि वह औघड़दानी हैं। अगर असुर भी तपस्या करके कुछ मांगते हैं, तो उनको भी दे देते हैं। सत्य यह है कि आपके मन में भी जो विचार उदित होता है, कभी-न-कभी वह मूर्त रूप ले ही लेता है। आपका मन जितना एकाग्र होगा, आपका विचार उतनी ही जल्दी साकार रूप लेगा। मन जितना सशक्त होगा, आप अपने जीवन में सुंदर-सुंदर परिवर्तन ला सकते हैं।

शिवरात्रि पर्व है— शिव और शक्ति के मिलन का। हमारे जीवन में शिवरात्रि तब घटित होती है, जब हम तपस्या, साधना के द्वारा मन को शुद्ध करते हैं। तपस्या, साधना, मंत्र जप आदि करते हुए शरीर को जो कष्ट होता है, यह कष्ट आपके पापों को दूर कर देता है। पापरहित होकर, शुद्ध मन से ज्ञान साधना के द्वारा अज्ञान की निवृत्ति करके हम जान पाते हैं कि मैं ही शिवस्वरूप हूं। शिव पुराण में वेदव्यास जी ने शिवरात्रि के विषय में शंकर जी के मुख से ही कहलवाया है कि शिवरात्रि पर जो अन्न-जल का त्याग करके मेरे नाम का जप करेगा, वह मनोवांछित वस्तु को प्राप्त करेगा। भगवान के पास आपको देने के लिए सब कुछ है, अब यह आपके ऊपर है कि आप भस्मासुर की तरह सिर्फ माया, दौलत, दुनियावी शक्ति मांगेंगे या ज्ञान और तपस्या प्राप्त करके आप स्वयं शिव हो जाओगे।

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